Monday, May 30, 2011

वो पागल लड़का...

मेरे कॉलेज के नोटिस बोर्ड के पास खड़ा वो लड़का आज भी जब-तब मुझे याद आ जाता है। जिसका मैंने दिल तोड़ा। उसका मेरे प्रति लगाव और सबसे करीब आने की चाहत आज भी रह-रहकर मेरे जहन में आ जाती है। उस दिन न जाने क्यूं नितांत अजनबी होते हुए भी वो मुझे अपना सा लगा था। दिखने में सामान्य सा ही था। फिर भी कोई तो बात उसमें जरूर थी, जिसकी वजह से मुझे वो एक भरोसेमंद इंसान लगा। कई बार ऐसा होता है कि आप एकाएक किसी ऐसे शख्स से टकरा जाते हैं, जो पहली नजर में ही आपकी तबीयत का सा लगने लगता है। जैसे की ऊपरवाले ने उसे खास तौर पर आपके पास भेजा हो। मैं उस वक्त बिल्कुल अकेली खड़ी थी। कोई मेरी परेशानी सुलझाने वाला वहां नहीं था। मैं उस कॉलेज से बिल्कुल अनजान थी। मुझे लगा कि यह लड़का मेरे काम आ सकता है। यह सोचकर मैंने उससे बात शुरू की। 'क्या आप यहीं के हैं..?' यह पहला सवाल था मेरा उससे। बड़ी सादगी से उसने मेरे सवालों के जवाब दिए। उसने मेरे प्रवेश फार्म और मुझमें भी बड़ी दिलचस्पी दिखाई। मुझे लगा यह अपने काम आ सकता है। विदा होते हुए मैं उसके मोबाइल नम्बर लेना नहीं भूली। न जाने क्यूं पहली ही मुलाकात में मैंने बेतकल्लुफी से उससे उसके मोबाइल नम्बर मांग लिए। न जाने क्यूं मैंने भी बिना सोचे-समझे अपने नम्बर भी उसे दे दिए। फिर दोस्ती का कभी न खत्म होने वाला सिलसिला शुरू हो गया। हर दिन की हर बात उसे बताना जरूरी सा हो गया था। बातें थी कि, एक खत्म होती तो दूसरी उपज जाती। लड़ते-झगड़ते, रूठते-मनाते कब वक्त उड़ता चला गया। पता ही नहीं चला। न जाने कितनी ही ऐसी घटनाएं हुई, जब मैंने उसे बुरा-भला कहा। उससे नाराज होती और वो मुझे मनाता रहता। मैं उसे मजाक में कहती,
- तुम मेरे दोस्तों की लिस्ट में छठे नम्बर पर हो।
- अच्छा! तो पहले नम्बर पर आने के लिए क्या करना होगा ?
- पहले नम्बर पर तो तुम कभी हो ही नहीं सकते।
- वो हंसकर बोलता, कोशिश करने में क्या जाता है? मुझे हर हालत में एक नम्बर पर आना है।
- मैं तुम्हारे सबसे करीब आना चाहता हूं।
उस पल कितना आसान लगा था ये सब कहना। पर आज महसूस होता है कि ये बातें उसे कितनी कचोटी होगी। वो बिल्कुल पागल था। मेरी हर बात को हंसकर सह जाता। मेरा बहुत खयाल रखता। मेरे साथ वक्त बिताने के लिए कोशिश करता। कॉलेज में उसका अलग ही रुतबा था। हर गतिविधि, हर कार्यक्रम में वो आगे रहता। इस कारण शिक्षकों का प्रिय था तो स्टूडेंट्स में लोकप्रिय। कॉलेज का कोई भी कार्यक्रम उसके बिना अधूरा था। कहीं भी जाता, अपनी उपस्थिति दर्ज कराए बिना नहीं रहता। सबकी मदद करता था। बहुत सारी चीजों का नॉलेज था उसे। मेरे फार्म, किताबें, प्रेक्टिकल सारे काम उसके ही जिम्मे थे। बेहद ऊर्जावान था वो। उसे यह ऊर्जा मुझसे मिली है, ऐसा वो अक्सर कहता था। वो मेरे लिए क्या-क्या करता रहता। मुझे पता ही नहीं चलने देता। अच्छा-खासा कमाता भी था। मुझ पर खुद से ज्यादा भरोसा करता था। वो हमेशा मेरा अच्छा ही सोचता था। पर कह नहीं पाता था। मैं हमेशा उसे झिड़क देती थी। मैंने उससे बात नहीं करने के लिए अपने मोबाइल नम्बर भी बदल लिए। उफ!!! कैसा लगा होगा उसे। कितनी ठेस लगी होगी उसके दिल पर। मुझे आज भी याद है, जब एक रेस्टोरेंट में हम बैठे थे। तो कितने कठोर शब्दों में मैंने उसको नम्बर देने से मना कर दिया था। उसका दर्द चेहरे पर आ गया था। थोड़ा सा उदास और मुझे निहारती हुई उसकी आंखें। शायद, पलकें गीली हो गई थी।
फिर भी वो मुझसे दोस्ती बनाए रखना चाहता था। और मैं इसके बिल्कुल खिलाफ थी। जब वो मेरे पास आने की कोशिश करता, मैं उससे दूर चली जाती। उसे मेरी बैरूखी का सब पता था। फिर भी वो सब कुछ समझकर भी नासमझ बना रहता।
उस दिन भी वो मुझे मनाने ही मेरे करीब आया था। दीपावली की शुभकामना देने के बहाने से उसने बात शुरू की। और मैं उस पर बिफर पड़ी। 'तुम्हें एक बार में कही बात समझ में नहीं आती है क्या..? मुझे नहीं करनी बात तुमसे। फिर कहते हो तुमने इसके सामने बोल दिया, सबके सामने बोल दिया।' 30 अक्टूबर को क्लास में मैंने यह कहकर उसे सबके सामने अपमानित कर दिया था। वो अगले ही पल खामोश हो गया था। उसने अपनी गर्दन झुका ली थी, जैसे कि वो कोई गुनहगार हो। कुछ नहीं बोला था वो उस वक्त। उसने शायद कभी भी मेरे इस व्यवहार की उम्मीद नहीं की होगी। बेबस सी उसकी आंखें बस छलकने को तैयार थी। तीर की तरह मैंने अपने शब्दों से उसका दिल छलनी छलनी कर दिया था।
वो दिन और आज का दिन.....उसने कभी मुझसे बात नहीं की। न फोन, न एसएमएस। कभी ई-मेल भी नहीं किया। मेरी तरफ देखा तक नहीं। मैंने सॉरी भी नहीं बोला था उस वक्त। झूठ भी नहीं बोला गया था मुझसे। वो तो शायद इससे ही खुश हो जाता। ना जाने क्यूं मैं इतनी कठोर हो गई थी। उसे कैसा लगेगा, यह बात मैंने उस वक्त बिल्कुल नहीं सोची। पर, आज मन में एक हूक सी उठती है। जब उसके बारे में सोचती हूं, तो सिहर जाती हूं। चाहता तो वो भी मुझे उस पल कुछ बोल सकता था, पर वो मेरी खातिर अपना अपमान भी सह गया। पता नहीं मैंने उसे कितना दु:ख दे दिया। जबकि वो मेरी हर समस्या का समाधान था। हर मुश्किल का हल था। हर सवाल का जवाब था। उसके बाद मैंने उसे मनाने की बहुत कोशिश की। मगर, शायद मेरी कोशिश नाकाफी थी। मैंने एक ऐसी भूल की, जिसकी सजा भी उसने अपने ऊपर ले ली। उसने अपनी राह अलग कर ली, जो वह कभी नहीं चाहता था। वक्त बीतता गया। मुझे आज भी उसकी बहुत याद आती है। शायद उसे भी आती होगी या फिर यकीनन आती होगी। उसे मेरी बहुत परवाह जो थी। वो अक्सर मुझसे कहता था। 'इतनी नाराज मत होओ। देखना! एक दिन मैं तुम्हें छोड़कर चला जाऊंगा तो तुम बहुत रोओगी। पर, मैं वापस नहीं आऊंगा। वो वास्तव मैं चला गया। वो गया तो पता चला कि उसकी अहमियत क्या थी। वो मेरा कितना खयाल रखता था। वो मेरे लिए क्या था। यह मैंने अब जाना। पर, शायद अब बहुत देर हो चुकी है। आज जब वो मेरे साथ नहीं है, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे पहले नम्बर का दोस्त मेरे साथ नहीं है...।

Friday, May 20, 2011

उस दिन दुल्हन के लाल जोड़े में...

उस दिन दुल्हन के लाल जोड़े में,
उसे उसकी सहेलियों ने सजाया होगा।

मेरी जान के गोरे हाथों पर
सखियों ने मेहंदी  को लगाया होगा।

बहुत गहरा चढे़गा
मेहंदी
का रंग,
उस
मेहंदी
में उसने मेरा नाम छुपाया होगा।

रह-रह कर रो पड़ेगी वो,
जब-जब उसको ख़याल मेरा आया होगा।

खुद को देखगी जब आईने में,
तो अक्स उसको मेरा भी नज़र आया होगा।

लग रही होगी बला सी सुन्दर वो,
आज देख कर उसको चाँद भी शरमाया होगा।

आज मेरी जान ने
अपने माँ-बाप की इज़्ज़त को बचाया होगा।

उसने बेटी होने का
दोस्तों आज हर फ़र्ज़ निभाया होगा।

मजबूर होगी वो सबसे ज़्यादा,
न जाने किस तरह उसने खुद को समझाया होगा।

अपने हाथों से उसने
हमारे प्रेम के खतों को जलाया होगा।

खुद को मजबूत बना कर उसने
अपने दिल से मेरी यादों को मिटाया होगा।

टूट जाएगी जान मेरी,
जब उसकी माँ ने तस्वीर को टेबल से हटाया होगा।

हो जाएँगे लाल मेहन्दी वाले हाथ,
जब उन काँच के टुकड़ों को उसने उठाया होगा।

भूखी होगी वो जानता हूँ मैं,
कुछ ना उस पगली ने मेरे बगैर खाया होगा।

कैसे संभाला होगा खुद को,
जब उसे फेरों के लिए बुलाया होगा।

कांपता होगा जिस्म उसका,
हौले से पंडित ने हाथ उसका किसी और को पकड़ाया होगा।

में तो मजबूर हूँ पता है उसे,
आज खुद को भी बेबस सा उसने पाया होगा।

रो-रो के बुरा हाल हो जाएगा उसका,
जब वक़्त उसकी विदाई का आया होगा।

बड़े प्यार से मेरी जान को
मां-बाप ने डोली में बिठाया होगा।

रो पड़ेगी आत्मा भी
दिल भी चीखा और चिल्लाया होगा।


आज अपने माँ बाप के लिए
उसने गला अपनी खुशियों का दबाया होगा

रह ना पाएगी जुदा होकेर मुझसे
डर है की ज़हर चुपके से उसने खाया होगा।

डोली में बैठी इक ज़िंदा लाश को
चार कंधो पेर कहरों ने उठाया होगा।