Sunday, November 17, 2013

...और वो तेरी बाहों की दुनिया


प्रिय...
अच्छा हुआ। तुम आ गईं। बस एक ही बात कहनी थी तुमसे कि तुम याद आती हो मुझे। अकेलेपन में..... जहां तुम्हारा अहसास मेरे साथ रहता था। दुनिया की भीड़ में..... जहां मैं तुम्हें दूर से पहचान लिया करता था। और उस सूनी सड़क पर... जहां अक्सर टहलते हुए मैं फोन पर तुमसे बतियाता रहता था। कॉलेज में... जहां अक्सर हम झगड़ा करते रहते थे। क्लास में.... जहां मेरा ध्यान तुमसे हटता ही नहीं था। रेलवे स्टेशन पर.. जहां ट्रेन को तुम्हें साथ ले जाते देखकर अपने अंदर कुछ टूटता हुआ सा महसूस किया था मैंने। और वो अनजाने शहर में चार मार्च का दिन.... जहां नाराजगी की सभी दीवारों को गिराते हुए करीब साल भर बाद हम बीती यादों में खो गए थे। तुम्हारे साथ ने वो दिन मेरे लिए अविस्मरणीय बना दिया था। उस दिन जब तुमने बिना किसी औपचारिकताओं के मुझे अपने दिल का हाल सुनाया था। तब कितनी अपनी सी लगी थी तुम मुझे। बताना मुश्किल है मेरे लिए। उस दिन विपरीत परिस्थितियों के चलते तुम्हें पहली बार इस तरह रोते हुए देखा था मैंने। बड़ी मुश्किल से खुद को रोने से रोका था मैंने। हां, पलकें गीली हो गई थीं। सच कहूं, तो उस वक्त... मैं भी तुम्हें गले लगाकर रोना चाहता था। और उस वक्त भी जब.... जब मैं तुम्हें हॉस्टल के पास छोडऩे के बाद विपरीत दिशा में जाने के लिए मुड़ गया था। फिर पलटकर वापस आया था तुम्हारे पास। बाय करने के लिए। तुमने शायद गौर नहीं किया, पर मैं तुम्हें गले लगाने के लिए ही पलटकर आया था। लेकिन नहीं कर पाया मैं ऐसा। वो दिन, तुम्हारे साथ... और वो रात, ट्रेन में तुम्हारी यादों के साथ ही काटी थी मैंने। दिन-रात के किसी भी पहर में ऐसा कोई पल था ही नहीं। जिसमें तुम मेरे साथ नहीं थी। सच कहूं तो तुम्हारे जाने के बाद इस शहर से और इस जगह से मुझे कोई मोह नहीं रहा। पर तुम्हारी यादों से गहरा लगाव मुझे यह जगह छोडऩे नहीं देते। मैं कभी-कभी उस अतीत में लौट जाना चाहता हूं। जहां मैं तुम्हारे सपने देखता था। और अक्सर आज भी मैं उस कॉलेज में.. उस क्लास में... नोटिस बोर्ड के पास.. तुम्हारी गली में... मेरे ऑफिस के बाहर सूनी सड़क पर....रेलवे स्टेशन पर.. जहां-तहां बिखरे तुम्हारी यादों के टुकड़ों को चुनता रहता हूं। इन दिनों मैं जहां हूं, वहां बेचैनियां हैं। इतनी की फुरसत के लम्हे भी काटते हैं मुझको। मैं हर बीत गए पल को कितना भी मुड़ कर देखूं, किन्तु तुमको वहां नहीं पाता। बस एक साया है तुम्हारा। तुम हजारों किलोमीटर दूर जहां रहती हो, वहां से कोई सुकून का एक टुकड़ा मुझे भेज दो। सुकून की करवटें जो तुम अपने साथ ले गईं थी। उनमें एक हिस्सा मेरा भी है। बिस्तर की सलवटों में जो कई दिन उलझे हैं। उनमें से एक दिन मेरे लिए भी भेज देना। बालकनी में कॉफी के मध्य ठहरी होगी तुम्हारी हंसी। उसका एक टुकड़ा भेज देना। और भेज देना, वो बेपरवाह रातों की किस्सागोई। वो अहसासों की गठरी...और वो तेरी बाहों की दुनिया। जो सदा मेरे लिए एक ख्वाब ही रही है। आज जब तुम मेरे साथ... मेरे सामने बैठी हो... तो क्या ये बांहों की दुनिया मेरी हो सकती है..? क्या मैं कुछ देर तुम्हें गले लगाकर रो सकता हूं...?

Saturday, August 3, 2013

अनकही रहेंगी, अनकही सी बातें

मेरे इस सृजन संसार की रचयिता तुम ही हो। मेरी सृजनात्मक में निखार लाने का श्रेय तुमको ही है। जो शब्द मैंने लिखे हैं, उनकी प्रेरणा तुम ही हो। तुम्हारे लिए लिखे गए मुझे इन शब्दों से बेहद लगाव है। तुम यकीन नहीं करोगी पर सच यही है कि जितनी खुशी और उत्सुकता मुझे तुमसे बात करने में होती है। तकरीबन उतनी ही खुशी और उत्सुकता मुझे तुम्हारे लिए लिखी गई इन कहानियों को पढऩे से भी होती है। आज भी जब भी नेट शुरू करता हूं तो एक टेब में ब्लॉग ही खुला रहता है। हमेशा। नियमित रूप से। दिन में एक बार तो इन कहानियों को पढ़ ही लेता हूं मैं। अजीब है, पर सच है। इनको पढ़े बिना मन नहीं लगता मेरा। कुछ अधूरा सा लगता है। वो बातें जो मैं तुमसे कहना चाहता था पर किसी वजह से वो अनकही रह गई थी। हालांकि उनको कहने का जरिया ही था यह। पर फिर भी मैंने यह सारे लफ्ज तुमको खुशी देने के लिए लिखे थे। तुमको तकलीफ देने के लिए नहीं। मैं तुमको ऐसी कोई चीज देना चाहता था, जो तुमको इस पूरी दुनिया में मेरे अलावा और कोई नहीं दे सकता। मेरी नजर में यह चीज शब्द ही थे। एक ही उद्देश्य था कि तुम इनको पढ़ो तो बीती यादें जीवंत हो जाए। तुम मुस्कुराने लगो। पर शायद मैं गलत था। मेरे शब्दों ने तुम्हें तकलीफ दी है। जो मैं नहीं चाहता था। सो अब न मैं लिखूंगा। न तुम पढ़ोगी। न तकलीफ होगी। मेरे शब्द अब किसी का दिल नहीं दुखाएंगे। अब सारी बातें अनकही रहेंगी।

Tuesday, July 30, 2013

कभी समेटेगा वो मुझे पागलों की तरह...।

30 जुलाई। मेरी जिन्दगी का सबसे खास या फिर अहम दिन। मेरे लिए यही फ्रेंडशिप डे होता है। तुमने भी इस खास दिन अहमियत समझी है। इस बात की खुशी है मुझे। यूं तो अब तुमसे बात करने की कोई खास इच्छा या वजह बची नहीं है मुझमें, पर फिर भी इस अहम मौके पर तुमसे बात करने......तुम्हारी आवाज सुनने की तलब हुई थी। पर मेरे कहने के बावजूद आज तुमने मुझसे बात नहीं की। मेरे कहने के बावजूद.... तुमने बात, नहीं की। हालांकि यह जरूरी नहीं कि जैसा मैं चाहूं, वो तुम भी चाहो। मैं मानता हूं कि केवल मेरे चाहने भर से मैं तुमसे बात नहीं कर सकता। इसके लिए तुम्हारी इच्छा का होना भी जरूरी है। यह दिन मेरे लिए स्पेशल है, तुम्हारे लिए नहीं। इसलिए मैं तुम्हारे बात करने या नहीं करने को लेकर इतना अफसोस महसूस नहीं कर रहा हूं। पर यह सच है कि यह दिन साल में बस एक बार आता है, जिसकी हर बात मेरी यादों के खजाने को भरती जाती है। देखते-देखते पांच बरस बीत गए उन बातों को। कॉलेज की वो अलसाई सी दोपहर। तुम्हारे इंतजार में अक्सर मैं पहले ही पहुंच जाता था वहां। उन दिनों तुम्हारे पास एक ब्लेक रंग का मोबाइल था। मैं अक्सर यह देखने की कोशिश में रहता कि तुमने अपने मोबाइल में मेरे नम्बर किस नाम से सेव कर रखे हैं। यह अलग बात है कि मेरी यह कोशिश कभी कामयाब नहीं हुई। पता नहीं कौनसी दुनिया थी वो मेरी-तुम्हारी। जो कभी 'हमारी' नहीं हुई।
खैर.. वो बीती यादें अब बस एक सुनहरा अध्याय बनकर रह गई है मेरे लिए। पर फिर भी हर 30 जुलाई की तरह आज जब कॉलेज गया तो गेट पर सिटी बस को देखकर ठिठक सा गया मैं। ऐसा लगा कि तुम उसमें जाओगी। पर अब तुम उसमें नहीं जाती। अंदर प्रवेश किया तो लगा कि तुम बस मेरे आगे-आगे ईयरफोन लगाकर जोर-जोर से मोबाइल पर बात करते हुए जा रही हो। अक्सर ऐसा ही तो होता था। क्लासरूम के पास गया तो लगा कि तुम अंदर बैठी हो। बस मेरे जस्ट आगे की सीट पर। या यूं कहूं कि मैं जस्ट तुम्हारे पीछे की सीट पर। और फिर झगड़ा शुरू हो गया। यह भी तो एक वजह होती थी उन दिनों नाराजगी की। उन आखिरी दिनों में जब तुम्हारे पास स्कूटी आ गई थीं तो तुम्हारे चेहरे पर अजीब से खुशी महसूस की थी मैंने। शुरुआत में कितना डरते-डरते तुम स्कूटी चलाती थी। हा...हा...। और पता है जब मैं नोटिस बोर्ड के पास खड़ा था तो वहीं पर एक लड़की एक लड़के से कुछ पूछ रही थी। दोनो काफी देर तक गुफ्तगु कर रहे थे। वो अपनी बातों में खोये थे और मैं कुछ ही कदम की दूरी पर खड़ा उनको निहार रहा था। पता नहीं क्यूं मेरे चेहरे पर एकदम से हल्की सी मुस्कुराहट आ गई। उनको इत्मीनान से बतियाते देखकर यूं लगा जैसे वो लड़का मैं हूं और वो लड़की तुम। जैसे कुछ भी नहीं बदला उस नोटिस बोर्ड के पास। आज भी। मैं इंतजार करता हूं। तुम आती हो। एक-दूसरे से मिलते हैं, पर बात नहीं करते। गुस्सा होते हैं, पर एक-दूसरे का खयाल रखते हैं। जैसे आज भी सब कुछ वैसा ही है उस नोटिस बोर्ड के पास। उस क्लास के पास। जैसे सब कुछ वैसा ही है। उन दिनों (या फिर आज भी) तुम्हारा किसी और से बात करना सहन नहीं होता था मुझसे। पता नहीं क्या हो जाता था मुझे। मेरे लिए तुम्हारी दोस्ती सदा गर्व का विषय रही और तुम्हारे लिए मेरी दोस्ती शायद इसके बिल्कुल विपरीत वाला शब्द। यह बात मुझे शुरू से पता थी। पर मैंने इसे बदलने का संकल्प ले लिया था कि तुम्हारे लिए भी मेरी दोस्ती एक दिन गर्व का विषय बनेगी।

मैं टूटा हूं, जिसके हाथों से गिरकर।
मुझे यकीन है, कभी समेटेगा वो मुझे पागलों की तरह।।
 

Monday, June 10, 2013

Meri aashiqui ab tum hi ho...

Kyunki tum hi ho, ab tum hi ho
Zindagi ab tum hi ho..
Chain bhi, mera dard bhi
Meri aashiqui ab tum hi ho...

Friday, May 24, 2013

बस तुम्हें देखने की हसरत..!

...तो तुम नहीं मिल पाई मुझसे..। कोई बात नहीं. मैं जानता हूं, तुम्हारी व्यस्तताएं और मजबूरियां। पर मैं भी उतना ही जिद्दी हूं. अपनी धुन का पक्का। तुम्हें बस एक नजर देखने के लिए चला आया रेलवे स्टेशन. तुमने बताया था कि 23 को वापस जाओगी. और उस दिन इंटरनेट पर देखा तो एक ही ट्रेन थी तुम्हारे शहर के लिए...और वो भी सुबह-सवेरे। मैं तड़के 4.30 बजे पहुंच गया था रेलवे स्टेशन। यहां-वहां सब जगह देखा। मगर तुम नहीं थी। थक-हारकर वापस आ गया। तुम्हें फोन/एसएमएस नहीं किया। तुम्हारे टोकने के बाद नहीं करने का वादा जो कर लिया अपने आप से। खैर.....जैसे-तैसे सूचना जुटाई कि तुम्हारी ट्रेन सात बजे है। रेलवे स्टेशन के अंदर प्रवेश किया तो नजर पड़ी इलेक्ट्रोनिक बोर्ड पर जो तुम्हारी ट्रेन बिल्कुल सही समय पर बता रहा था। उस वक्त मेरी घड़ी में 6.51 हो चुके थे। मैं प्लेटफॉर्म पर भागते हुए सीढ़ीयां चढ़कर प्लेटफॉर्म नं. 3 पर पहुंचा। और आरक्षण चार्ट देखा तो तुम्हारा नाम नहीं था। उफ्फ...6.53 हो चुके थे तब तक। अब मैं इधर-उधर झांकता हुआ। खुद को दूसरों की नजरों से बचाता हुआ तुम्हें ढूंढ रहा था। एक बार डर भी लगा कि तुमने मुझे देख लिया या किसी और ने मुझे देख लिया तो पता नहीं क्या हो जाएगा। मुझे वहां नहीं होना चाहिए। पर मैं खुद को रोक नहीं पाया। मैं पूरी ट्रेन में लगभग दो बार आगे से पीछे तक तुम्हें तलाश कर चुका था। स्पेशली सैकण्ड एसी या थर्ड एसी में भी। जो भी होगा जल्दबाजी में गौर नहीं कर पाया। सारे कोच पर लगी आरक्षित सूचियों को दो-दो बार पूरा पढ़ चुका था। एक तो गर्मी और ऊपर से भाग-दौड़ ने मुझे पसीने से तरबतर कर दिया। फिर वही हुआ जो अक्सर ऐसी मुश्किल परिस्थिति में हो ही जाता है। भगवान को मुझ पर तरस आया और एक खिड़की के पास मुझे वही प्यारा सा...सुंदर सा...चेहरा नजर आया। जिसको मैं 30 जुलाई 2008 से चाहता रहा हूं। एकदम से मेरे कदम ठिठक गए। मैं एक क्षण भी वहां नहीं रुका। भय था, मुझे वहां कोई देख लेगा तो न जाने क्या अर्थ लगाएगा। मैं अगले ही मिनट प्लेटफॉर्म नं. 3 से 1 की ओर दौड़ लगा रहा था। और वहां तक पहुंचते ही 7.00 बजे गए और ट्रेन तुम्हें साथ लेकर जाने के लिए रवाना हुए जा रही थी। मैं उस वक्त प्लेटफॉर्म नं. 1 पर खड़ा तुम्हें बाय कर रहा था। तुम चलीं गई और मैं वहीं खड़ा रह गया। सच बताऊं तो अक्सर जब मैं रेलवे स्टेशन जाता हूं तो मुझे वहां तुम्हारा अक्स नजर आता है। और अक्सर तुम्हारा अक्स देखने के लिए मैं वहां चला जाता हूं।

Thursday, February 21, 2013

नए अंदाज में पुरानी यादें ताजा करने के दिन

अजीब दिन थे. बाहों में बाहें डाले चहलकदमी करते रहने के दिन. उतरते हुए सूरज और ढलती हुई शामों के दिन. गली के नुक्कड़ पर तुम्हारा इतंजार करते रहने के दिन. किताबों के आखिरी सफहों पर मन में पिघल रहे कुछ शब्दों को लिख देने के दिन. ऐसे ही उन दिनों में कस्बाई सपने, जो सुबह सूरज के साथ उगते थे और ढलती हुई शामों के साथ छतों से कपड़ों की तरह उतार लिए जाते थे। कई आंखें थी आस पास, जो मिल जाने पर शरमा कर झुक जाया करती थीं. कई आंखों में दबे-छुपे से प्रणय निवेदन तो कई आंखें जो भुलायी नहीं जा सकती. शराफत के दिन, नजाकत के दिन, मोहब्बत के दिन, आरजुओं के दिन। आज बरसों बाद उन बीते दिनों की यादों ने मुझको भिगो दिया। ऐसा लगा कि मैं छलांग लगाकर आठ बरस पहले चला गया। सच में कितनी प्यारी थी तुम। मुझे आज भी याद है तुम्हारा वो अंदाज.  हाईनेक स्वेटर पहने...कंधे पर बैग और चेहरे पर मुस्कान सजाए जब तुम कॉलेज में प्रवेश करती तो मेरे मन में एक अजीब सी ऊर्जा का संचार हो जाता। दिल के किसी कौने में बसी पहली मोहब्बत की उन यादों की गर्माहट आज भी मुझे ऊर्जा देती है. मैं तुम्हें कभी कह भी नहीं पाया कि तुम्हारे लिए मेरे मन में चाहना ने जन्म ले लिया था. उन दिनों मैं तुम्हें बस यूं ही हर रोज निहारा करता था. कभी क्लास में...कभी बरामदे में.. कभी रास्ते में...कभी यादों में.. कभी खयालों में। कभी जब मन नहीं लगता तो यूं ही तुम्हारे घर के सामने से गुजरने में भी मुझे सुकून महसूस होता...। सच में तुमसे बात करना मेरे लिए किसी ख्वाब के सच होने जैसा ही है. मेरी शुरू से यह ख्वाहिश रही थी कि मैं तुमसे बात करूं. पर कभी इतना साहस जुटा नहीं पाया। पता नहीं, एक डर सा लगता था कि बात करने पर न जाने क्या हो जाएगा. आज जब इतने वर्षों बाद तुमसे बात हो रही है, तो अजीब सी खुशी अंदर तक महसूस कर रहा हूं मैं।  जैसे कोई ठण्डी हवा का झोंका मुझसे टकराकर मुझे शीतलता का अहसास करा रहा है। तुम्हारी आवाज सुनना या फिर तुमसे सीधे रू-ब-रू होने का मौका तो पता नहीं इस जीवन में मिले या ना भी मिले. और मेरी ख्वाहिशें कभी इतनी ज्यादा रही भी नहीं क्योंकि मैं तुमसे रू-ब-रू होकर बात करने का साहस जुटा भी लूंगा, इस पर भी मुझे संदेह हैं। जानता हूं, यह सब बातें तुम नहीं समझ पाओगी. मगर फिर भी इन दिनों नए अंदाज में पुरानी यादों को ताजा करने का अपना अलग मजा है. और मैं फिलहाल इसको 'सेलिब्रेट' कर रहा हूं. बहुत शुक्रिया. :)

Tuesday, January 22, 2013

Kabhi mile to yahi ek baat us se kehna
Bikhar rahi hai  zindagi meri uss se kehna
Wo saath tha to zamaana tha hamsafar mera
Magar ab koi nahi mere saath, us se kehna
Us se kehna k bin uske din kat'ta nahi mera
sisak-sisak k kat'ti h ratain meri, us se kehna
Usse pukaru k khud hi phunch jaau uske paas
Nahi rahe woh haalaat.. us se kehna..
wo phir bhi na laute to aye meherban dost
Hamari zindagi k haalaat us se keh dena...
Har Jeet us ke naam kar raha hun main,
Main maanta hun apni haar.... us se kehna...!