Friday, May 20, 2011

उस दिन दुल्हन के लाल जोड़े में...

उस दिन दुल्हन के लाल जोड़े में,
उसे उसकी सहेलियों ने सजाया होगा।

मेरी जान के गोरे हाथों पर
सखियों ने मेहंदी  को लगाया होगा।

बहुत गहरा चढे़गा
मेहंदी
का रंग,
उस
मेहंदी
में उसने मेरा नाम छुपाया होगा।

रह-रह कर रो पड़ेगी वो,
जब-जब उसको ख़याल मेरा आया होगा।

खुद को देखगी जब आईने में,
तो अक्स उसको मेरा भी नज़र आया होगा।

लग रही होगी बला सी सुन्दर वो,
आज देख कर उसको चाँद भी शरमाया होगा।

आज मेरी जान ने
अपने माँ-बाप की इज़्ज़त को बचाया होगा।

उसने बेटी होने का
दोस्तों आज हर फ़र्ज़ निभाया होगा।

मजबूर होगी वो सबसे ज़्यादा,
न जाने किस तरह उसने खुद को समझाया होगा।

अपने हाथों से उसने
हमारे प्रेम के खतों को जलाया होगा।

खुद को मजबूत बना कर उसने
अपने दिल से मेरी यादों को मिटाया होगा।

टूट जाएगी जान मेरी,
जब उसकी माँ ने तस्वीर को टेबल से हटाया होगा।

हो जाएँगे लाल मेहन्दी वाले हाथ,
जब उन काँच के टुकड़ों को उसने उठाया होगा।

भूखी होगी वो जानता हूँ मैं,
कुछ ना उस पगली ने मेरे बगैर खाया होगा।

कैसे संभाला होगा खुद को,
जब उसे फेरों के लिए बुलाया होगा।

कांपता होगा जिस्म उसका,
हौले से पंडित ने हाथ उसका किसी और को पकड़ाया होगा।

में तो मजबूर हूँ पता है उसे,
आज खुद को भी बेबस सा उसने पाया होगा।

रो-रो के बुरा हाल हो जाएगा उसका,
जब वक़्त उसकी विदाई का आया होगा।

बड़े प्यार से मेरी जान को
मां-बाप ने डोली में बिठाया होगा।

रो पड़ेगी आत्मा भी
दिल भी चीखा और चिल्लाया होगा।


आज अपने माँ बाप के लिए
उसने गला अपनी खुशियों का दबाया होगा

रह ना पाएगी जुदा होकेर मुझसे
डर है की ज़हर चुपके से उसने खाया होगा।

डोली में बैठी इक ज़िंदा लाश को
चार कंधो पेर कहरों ने उठाया होगा।

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