Wednesday, November 23, 2011

कभी तो याद आती होगी ना...!

हालांकि तुमसे मिलना मेरे लिए अविस्मरणीय होता है, फिर भी अब इसकी इच्छा नहीं होती। जानता हूं, तुम भी मुझसे मिलकर खुश नहीं होंगी और तुम्हें देखकर मुझे शायद ही अब कोई सुखद अनुभूति होगी। मैं उन यादों को नया नहीं करना चाहता। मुझे उन पुरानी यादों से ही लगाव है। फिर भी अगर तुम्हें कहीं सुकून बहता दिखे, तो एक कतरा मेरे लिए भी सुरक्षित रखना। शायद कभी किसी मोड़ पर यूं ही हमारी मुलाकात हो जाए। बीते हुए दिनों के अंधेरे जंगल से निकल, उजले वर्तमान का सुख, सुकून नहीं देता। वो बंद पुराने बक्से में पड़ी जजर्र डायरी के सफहों में सुरक्षित अवश्य होगा। उसे छुआ जा सकता है, किन्तु पाया नहीं जा सकता। वक्त-बेवक्त सूखी स्याही को आँसुओं से गीला करना दिल को तसल्ली देना भर है। इससे ज्यादा और कुछ नहीं।
तुम भी दो सौ गज की छत पर कपड़ों को सुखाकर, कौन सा सुकून हासिल कर लेती होगी। रात के अँधेरे में, बिस्तर की सलवटों के मध्य, थकी साँसों के अंत में क्षणिक सुख मिल सकता है। सुकून फिर भी कहीं नहीं दिखता। और फिर ये जान लेना कि मन को लम्बे समय तक बहलाया नहीं जा सकता। बीते वक्त के सुखद लम्हों में तड़प की मात्रा ही बढ़ाता है। जानता हूँ उस पछताने से हासिल कुछ भी नहीं।
एटीएम और क्रेडिट कार्ड पर खड़े समाज में ठहाकों के मध्य मेरी तरह कभी तो तुम्हारा दिल भी रोने को करता होगा। दिखावे के इस संसार में क्या तुम्हारा भी मेरी तरह दम नहीं घुटता होगा। घर-परिवार की जिम्मेदारियों के बीच कभी तो तुम्हें वो बेफिक्री वाले दिन और बचपना याद आता होगा। चमकती सड़कों और कीमती कपड़ों के मध्य कभी तो तुम्हें अपना गांव याद आता होगा। रंगीन शामों के बीच कभी तो दिल करता होगा उसी पुरानी कॉलेज में, एक अलसाई दोपहर बिताने के लिए। कभी तो उस क्लासरूम की याद आती होगी ना। कभी तो स्मृतियों में मेरा उदास चेहरा आकर बैचेन करता होगा। मेरी भीगी हुई आंखों को देखकर कभी तो तुम्हारी भी पलकें नम हुई होंगी ना। कभी तो हमारा रूठना-मनाना याद आता होगा। कभी तो कॉलेज से जाने वाली उस सिटी बस की याद आती होगी। चमकते रेस्त्रां में खाने के बीच कभी तो तुम्हें कॉलेज के सामने वाली दुकान पर मिर्चीबड़ा खाने का मन करता होता होगा। मेरी तरह तुम्हारा भी दिल कभी तो उन पुरानी गलियों में खोता होगा ना। कभी तो...। है ना...।

अनजाने शख्स का साथ...!

कभी-कभी मीठी सी यादें हमारे जेहन में अलग ही छाप छोड़कर चली जाती है। खासकर ऐसे अनजाने शख्स का साथ, जिसके बारे में ना आपने सोचा हो और ना ही सोच सकते हो। कभी-कभी कुछ बातें दबे पांव आती है और अपनी मिठास छोड़कर भाप की तरह उड़ जाती है, बादलों की सैर को। शायद, उन्हें कहीं और बरसना हो, रुमानी अहसास बनकर।
ऐसी ही एक खूबसूरत सी सुबह को मैं मुम्बई रेलवे स्टेशन के वेटिंग हॉल में जाया कर रहा था। मेरी ट्रेन आने में अभी थोड़ा वक्त था। और मेरे पास ले-देकर एक मैग्जीन-अहा जिन्दगी! जिसे मैं पूरी पढ़ चुका था। कुर्सी पर बैठा मैं बार-बार अपनी घड़ी की तरफ देख रहा था। या फिर अपने आस-पास बैठे यात्रियों को। जिनमें से ज्यादातर स्टूडेंट्स थे। वो भी शायद कहीं एजुकेशनल टूर से आए थे। मेरे पास ही एक लड़की अपने लैपटॉप पर काम कर रही थी। मैंने एक नजर उसको देखा। उसने भी मुझे देखा। एक पल के लिए हमारी नजरें मिली और दूजे ही पल हम दोनों ने एक-दूसरे से नजरें चुरा ली। न जाने क्यूं...। अब मैं बार-बार कांच की खिड़की से वहां झांक रहा था। जहां से ये पता चल सके कि जोधपुर को जाने वाली ट्रेन कौन-से प्लेटफॉर्म पर आने वाली है। शायद उस लड़की की निगाह भी बार-बार वही चीज देख रही थी, जो मैं देख रहा था। इस बार वो मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा दी। जवाब में मैं भी मुस्कुराए बिना नहीं रह सका। यूं लगा जैसे, बिना कुछ कहे, बिना जाने एक अनकही दोस्ती की शुरुआत हो गई।
तभी रेलवे स्टेशन पर मीठी सी आवाज सुनाई दी- अहमदाबाद के रास्ते जोधपुर को जाने वाली सूर्यनगरी एक्सप्रेस प्लेटफॉर्म नम्बर तीन पर आने वाली है। यह सुनते ही मैंने अपने आप को व्यवस्थित किया। मेरे पास सामान ज्यादा था। मैं एक बार में नहीं ले जा सकता था। मैंने आधा सामान उठाया और उसको इशारे में कहा कि मेरे सामान का ध्यान रखना। अब मैं अपने बैग को कंधे पर लादे जल्दी से सीढिय़ों से उतरता गया। पर क्या है कि मां का प्यार बैग में कूट-कूटकर भरा था, तो बैग मेरे कंधे पर जोर-आजमाइश कर रहा था। सीढिय़ों से उतरकर मैं अपने प्लेटफॉर्म पर पहुंचा। उफ..! कितनी लम्बी ट्रेन। एस-8, (जहां हमारी सीट थी) पहुंचते-पहुंचते पसीना सा आ गया। सामान रखकर मैं वापस दौड़ा। वेटिंग हॉल से बाकी का सामान लाने के लिए। तभी देखा कि मेरी मैडम और मेरी एक दोस्त भी पहुंच चुकी है। अब वो लड़की भी अपना सामान उठा रही थी। मैंने अपना सामान उठाया तो मैडम बोली, ये भी अपने साथ ही ट्रेन में चल रही है। मैंने तुरंत अधिकार भाव जताते हुए कहा- जल्दी आओ, ट्रेन रवाना होने वाली है। अब हम दोनों साथ-साथ चल रहे थे। मैं दो बैग और ट्रॉली को लगभग खींचते हुए चल रहा था। वो भी इसी हालत में। इस बीच हमारी बातचीत शुरू हो गई।

उसने पूछा - ट्रेन में कितना वक्त है ?
- यही 15-20 मिनिट। मैंने कहा।
- क्यूं कोई काम है ?
- हां, खाना खाना था। यहां कैंटीन है ना।
- मैंने कहा, खाना तो मुझे भी खाना है। एक बार हम सामान रख लेते हैं, फिर हम दोनों वापस खाना खाने आ जाएंगे। उसने जवाब में बस सिर हिला दिया।
- तो क्या करती हैं आप ? अब सवाल पूछने की बारी मेरी थी।
- मैं इंजीनियर हूं।
- ओ..हो...इतनी कम उम्र में इंजीनियर। मुझे लगा आप स्टूडेंट्स हो।
- वो हंसने लगी। जो मैं चाहता था। ताकि बोझ से लदी होने के कारण उसे थकान महसूस नहीं हो।
- उसने कहां- हां, अभी इस साल जॉब मिली है।
- कोनसी कम्पनी में ?
- वेदांता ग्रप में।
- अरे वाह। काफी बड़ी कम्पनी है। तो अभी आप कहां से आ रही हैं।
- गौवा से...
- वाऊ...मैंने होले से कहा।
- वो मुस्कुरा भर दी। शायद उसने सुन लिया था।
- मैंने कहा, आप मुस्कुराई क्यों ?
- बोली-आपका अंदाज बड़ा अच्छा लगा।
- चलो कुछ तो अच्छा लगा। वो फिर मुस्कुरा दी।
- कहां तक जाएंगी आप ?
- जी..अहमदाबाद। अहमदाबाद मेरा घर है। गौवा में मेरी जॉब है।
- गुड...वेरी गुड... कौनसे डिब्बे में सीट है आपकी ?
- उसने जवाब में मुझे टिकट ही दे दी।
- एस-6 में 30 नम्बर पर आपकी सीट है। हमारी एस-8 में है। मैंने टिकट देखते हुए कहा।
- आप कहां से आ रहे हैं..? यह पहला सवाल था उसका।
- हम तिरुपति से आ रहे हैं। नेशनल यूथ फेस्टिवल में गए थे। हम डिबेट कॉम्पिटिशन जीतकर आए हैं। अब हम जयपुर जा रहे हैं। मेने एक साथ सारी जानकारी दे दी।
- उसने मुस्कुरा कर कहा- कोंग्रेश्च्यूलेशन्श।
- जी, थैंक यू।
इतने में ही हम प्लेटफॉम पहुंच गए। मैंने कहा आप एस-6 पहुंचो या फिर यहीं रुक जाओ। मैं अपना सामान रखकर वापस आता हूं। मैं अपना सामान रखकर वापस आया तो देखा वो लड़की वहां नहीं थी। मैं इधर-उधर उसे ढूंढने लगा पर वो नहीं मिली। इतने में ही ट्रेन रवाना हो गई। मगर मेरी नजरे वहीं पर उसे तलाश कर रही थी। ट्रेन गति पकडऩे लगी थी और मैं ट्रेन के साथ दौड़ते-दौड़ते एस-6 में चढ़ गया। मैं उस लड़की की सीट पर पहुंचा तो देखा कि वहां कोई नहीं था। मैं तुरंत वापस मुड़ा और गेट पर खड़ा होकर ट्रेन की रफ्तार में पीछे छूटते प्लेटफॉर्म पर उसे तलाशने लगा। एक अजनबी के लिए मैं इतना बैचेन क्यूं हो रहा था, पता नहीं। पर वो नहीं दिखी। और मैं वापस उसकी सीट के पास जाकर खड़ा हो गया। इतने में ही वो अपना सामान उठाए आती दिखाई दी। मैं दौड़कर गया, अरे कहां चली गई थी तुम ? तुम्हारी सीट पर तो कोई नहीं था। वो बोली- मुझे पता नहीं था। मैं पिछले डिब्बे में किसी और की सीट पर बैठ गई थी। उसने मुझे उठा दिया। उससे मासूमियत से जवाब दिया। उसका बिल्कुल बच्चों का सा चेहरा देखकर न जाने क्यूं अजीब सा लगा। मैंने कहा - छोड़ो, अब यहां बैठो। वो अपना बैग ऊपर की बर्थ पर रखने का जतन करने लगी। लम्बाई कम होने से वो नहीं रख पा रही थी। मैंने खड़े होकर वो ऊपर रख दिया। थैंक्स। उसने कहा। नहीं, इसकी जरूरत नहीं है। जवाब में वो बस मुस्कुरा दी। फिर वो अपना सूटकेस नीचे सीट के बांधने लग गई और मैं उसके सामने की सीट पर बैठ गया। हमारे आस-पास की सारी सीटें खाली ही थी। केवल साइड की सीट पर एक महिला सो रही थी। उसने पानी की बोतल बैग से निकाल ली और पानी के दो घूंट से अपने नर्म गुलाबी होठों को भिगो लिया। उस पल उसका चेहरा ठीक से देखा मैंने। उसके चहरे की एक ख़ास बात थी। सबसे ख़ास। उसकी आंखें। बड़ी बड़ी और बेहद खूबसूरत। जो उसे खूबसूरत कहने पर मुझे मजबूर कर रही थी। मेरी एकटक नजऱ के कारण उसने मेरी ओर देखा। मेरा ध्यान टूटा। मैंने अपनी नजऱें उसकी उन आंखों से हटा ली। सामने सिक्कों की खनखनाहट सुनाई दे रही थी । देखा तो एक बूढी औरत अपने कटोरे में सिक्कों को बजाती हुई वहां से सरकती हुई जा रही थी। उससे चला नही जाता था। वो किसी से कुछ मांग नही रही थी। मेरा हाथ पेंट की जेब से उस कटोरे में जाता है। एक आवाज़ होती है सिक्के के गिरने की। फिर में खिड़की से बाहर झांकने लगता हूं। कुछ देर बाद हमारी बातचीत शुरू हो जाती है।
    मैं तो बहुत बोर हो गयी। सफर कैसे कटेगा ? मैंने कहा बहुत आसान है वक्त बिताना और पता भी नहीं चलेगा। उत्साहित होकर बोली वो कैसे ? मैंने कहा कि एक खेल खेलते हैं। बोली-कौन सा खेल ? मैंने कहा सवाल-जवाब...वो हँस पड़ी ...ये भी कोई गेम है ....मैंने कहा बहुत सही गेम है .....और ये और भी रोचक हो जाता है, जब हम दोनों अनजान हैं .....कुछ नहीं जानते एक दूसरे के बारे में .......और हाँ इसका नियम है कि पूछे हुए सवाल का जवाब देना ही होगा और जो भी दिल करे उसका जवाब देने का वो दे ....जिसे हम डर की वजह से दूसरों को नहीं दे सकते .......और ये नियम हम खुद निभाएंगे .....इसमें कोई चीटिंग नहीं ......वो उत्साहित होकर बोली वाह मज़ा आएगा ...... हाँ बिल्कुल ...... और शुरुआत करते हैं ....10 सवालों से .....पहले एक पूछेगा और दूसरा जवाब देगा ....और उसी तरह फिर दूसरे की बारी आएगी .....वो बोली ठीक है। लेकिन पहले मैं पूछूंगी....मैंने मुस्कुराते हुए कहा ....हाँ जी आप ही पूछिये।
- आज आप यहां मेरे साथ बैठे हुए क्या सोच रहे हैं ?
मैंने गला साफ़ करने की आदत दोहरायी .....तभी वो मुस्कुरा दी .....बोली-सच बोलना है ......मैं मुस्कुरा दिया ......सच तो यही है कि ऐसे में जब कि तुम मेरे पास बैठी हो तो सोचता हूँ कि एक लम्हा जो गुजरे जा रहा था अपनी ही धुन में ...मेरे पास आकर मु_ी भर हसीन ख्वाब हाथ में थमा कर मुस्कुराता हुआ चला गया। वो हंसी...वाऊ शायराना अंदाज़ .....मैं मुस्कुराते हुए बोला .....सच कह रहा हूँ , दिल की बात बताई है मैंने .....बोली अच्छा ऐसा कैसे .....मैंने कहा क्या ये इसी सवाल का हिस्सा है क्या ? ...वो मुस्कुरा दी ...हाँ यही समझ लो ......मैंने कहा तुम्हारी आँखें बहुत खूबसूरत हैं .....बिल्कुल एक हसीन ख्वाब की तरह ...और अब देखो तुम मेरे पास बैठी हो ...ये इस लम्हों ने ही तो दिए हैं मुझे .....वो मुस्कुरा गयी ...बोली आपकी बातें तो बस ....फिर मुस्कुरा दी .....ठीक है अब मेरी बारी है ...मैंने कहा।
- तुम्हारा सबसे प्यारा ख्वाब क्या है ? जिसे तुम पूरा करना चाहती हो ?
हम्म, बहुत मुश्किल सवाल पूछ लिया आपने ....वो बोली .....लेट मी थिंक ..... मैं एक छोटा सा स्कूल खोलना चाहती हूँ और इतना पैसा कमाना चाहती हूँ कि उसमे गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ा सकूँ .....वो बोली अच्छा अब आप बताओ ......
 - आपकी नजऱ में प्यार क्या है ? प्यार का एहसास क्या है ?......
प्यार का मतलब माँ है ....न कोई वादा, न कोई शिकवा न शिकायत, ना आग्रह, न अनुरोध, ना बदले में कुछ मांगती .....एहसास के लिए ....बालों में उसका हाथ फिराना, हमेशा प्यार जताना , सिरहाने बैठ तपते बुखार में सर पर रखी पट्टियां बदलते हुए बिना सोये रात गुजार देना ..... चोट हमे लगना और दर्द उसे होना .....ये प्यार का एहसास है ..... वो मुस्कुरा दी ....बोली अल्टीमेट, सुपर्ब ......आपकी क्या तारीफ़ करूं।
- अच्छा एक कोई भी प्रकृति का नियम जो तुम 1 साल के लिए बदलना चाहो ?
हम्म .....पता नहीं आप क्या-क्या पूछते हैं .....मेरे लिए मुश्किल हो जाती है ..... वो मुस्कुरा कर बोली .... मैंने कहा कि अब सवाल तो सवाल हैं .....जवाब तो देना पड़ेगा ......हम्म ....अगर बदल सके तो ये कि सभी पुरुषों को पूरे एक साल के लिए स्त्री बना दिया जाए और 1 साल बीतने के बाद वो एक साल उन्हें हमेशा याद रहे .....शायद तब वो स्त्री को अच्छी तरह समझ पाएं .....मैं मुस्कुरा दिया और ताली बजा दी ....इस बार मेरी बारी थी ये कहने की कि अल्टीमेट, सुपर्ब।
उसने पूछा- अच्छा आपकी कोई इच्छा इस तरह की जो पूरी करना चाहते हों ....
मैं जानना चाहता हूँ कि भगवान का कंसेप्ट कब कैसे और कहां से आया, वो है या नहीं ...और अगर है तो मैं जानना चाहूँगा कि वो इतने कमज़ोर क्यूँ है जो इस तरह की दुनिया ही बना पाए .....मैं चाहूँगा कि अगर वो हैं तो उन्हें और ज्यादा शक्ति मिले और सब कुछ देखने, सुनने, समझने और महसूस करने की भी शक्ति दे ......या फिर में गरीबी, जात-पात, धर्म, मजहब, और इंसान को बेवकूफ बनाये रखने के सारे साजो सामन उनके घर छोड़कर आना चाहूंगा। मतलब आप भगवान को नहीं मानते ...वो बोली। मैंने कहा अगर लोगों को बेवकूफ बनाए रख कर इस दुनिया को ऐसे बनाये रखने का नाम भगवान है तो मैं भगवान को नहीं मानता।
- आप ऐसी कोई फिल्मी हस्ती के नाम बताइए जिनसे आप मिलना चाहती हों ?
वो बोली .... सलमान खान और स्मिता पाटिल .....मैंने कहा सलमान खान तो समझ आता है, हैंडसम है,  लेकिन स्मिता पाटिल क्यों ......वो बोली उनकी आँखें बहुत कुछ कहती थी और उनकी अदाकारी बहुत गज़ब की थी। और सलमान खान इसलिए कि वो थोड़ा इंसान है।
फिर वो बोली कि अगर आप किसी से मिलना चाहे तो किस से मिलना चाहेंगे .....
मैंने कहा गुरुदत्त और देवआनंद या मधुबाला और संजीव कुमार, गुलज़ार, अमोल पालेकर या फिर अमिताभ बच्चन या फिर शाहरुख खान.....बहुत से हैं....वो क्यों ...उसने पूछा.....क्योंकि मैं गुरुदत्त के उस दर्द से रू-ब-रू होना चाहता हूँ, देव आनंद जिसने गाइड जैसी अनगिनत अच्छी फिल्में दी उसकी स्टाइल का राज़ पूछना चाहता हूँ, मधुबाला की मुस्कुराहट को मु_ी में कैद करके लाना चाहता हूं .....संजीव कुमार की जिंदादिली ...गुलज़ार की रुमानियत और अमोल पालेकर से आम आदमी की परिभाषा पढ़कर आना चाहता हूँ, अमिताभ से उसके अंदाज की तारीफ करना चाहता हूं, शाहरुख खान से उसकी असीमित ऊर्जा का स्रोत जानना चाहता हूं......
ओह... माय... गॉड... वो बोली- आप तो बहुत पहुंची हुई चीज़ जान पड़ते हैं ....किसी इंसान के खयाल इतने विस्तृत भी हो सकते हैं। यकीन नहीं होता।
मैं जोर से हँस दिया .....हा हा हा .....नहीं नहीं ऐसी गलतफ़हमी मत पालो ....
- फिर उसने पूछा अच्छा आपने कभी किसी से प्यार किया है मतलब आपकी कोई गर्ल फ्रेंड है ? गर्ल फ्रेंड तो जरूर होगी .... :)
मैं मुस्कुरा दिया ....मैंने कहा एक तरफ आप पक्के यकीन के साथ कह रही हैं कि गर्लफ्रेंड तो जरूर होगी और पूछ भी रही हैं .....मैंने कहा- मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है .....बोली झूठ, बिल्कुल झूठ .....सच बताइए ....मैं बोला-लो भला मैं झूठ क्यों बोलूंगा .....अब आप ही बताइए मुझ जैसे नासमझ और आवारा लड़के की कोई गर्लफ्रेंड क्यों बनना पसंद करेगी ..... नासमझ- आवारा ...किसने कह दिया आपको। जितना मैंने आपको एक घण्टे में जाना है, उसके हिसाब से तो लगता है कि आप के अंदर तो विचारों का समंदर होगा। मैंने कहा, हो सकता है, लेकिन मुझे तो वह नासमझ ही कहती है। कहती है, मैंने उसको कभी नहीं समझा। ओ...हो...वह है कौन....? है..कोई। जो अजीज-अज-जान है। तो क्या आपने उससे प्यार किया है..? पता नहीं...मैं तो बस इतना जानता हूं.....कि वो पहली इंसान है.....जो मुझे इतनी अच्छी लगी कि उसके लिए मैं कहता हूं कि तुम्हारे होने से मेरी जिन्दगी खूबसूरत है..। उसने आपसे प्यार नहीं किया..? नहीं...उसने मुझसे प्यार नहीं किया। मुझे अच्छी तरह पता है। उसे मुझसे बात करना या मिलना भी अच्छा नहीं लगता। उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा - फिर भी आपका उससे प्यार करना जरूरी है..? मैं बोला- बेहद जरूरी है...प्यार इंसान को अच्छा बना देता है। अच्छा बनने के लिए प्यार तो करना ही पड़ेगा। और उसके अलावा मैं किसी से प्यार नहीं कर सकता।
ये सब कहने में अच्छा लगता है....आजकल ऐसा प्यार और दोस्ती रही कहां है...। उसने अपनी बात अधूरी ही छोड़ दी। मैंने उसकी अधूरी बात से अर्थ लगाते हुए कहा- नहीं....सब ऐसे नहीं होते। और ये सब कहने में ही नहीं, महसूस करने में भी अच्छा लगता है। ओह हो ....लगता है मैंने गलत सवाल पूछ लिया। मैंने कहां- नहीं-नहीं, तुम आज मुझसे कोई भी सवाल पूछ सकती हो। और जहाँ तक सच्चे प्यार का सवाल है ...मैंने एक माँ के प्यार से पवित्र और कोई प्यार नहीं देखा और न ही महसूस किया। वो बोली- अब आपसे कौन जीत सकता है। वैसे आपको काफी नॉलेज है प्यार के बारे में।
मैंने कहा और यही सवाल आपसे मैं करूं तो .....वो बोली-नहीं कोई नहीं है ....प्यार करने का मन तो करता है लेकिन ऐसा कभी कोई मिला नहीं....हैं तो तमाम जो मुझे चाहने वालों में अपना नाम शुमार करते हैं, पीछे पड़े हैं ...लेकिन में जानती हूँ ...वो सब एक भूखे इंसान की तरह हैं ......जो मुझे खा भर लेना चाहते हैं ...मैं मुस्कुरा दिया .....मैंने कहा बहुत समझदार हो ...लड़कों की फितरत समझती हो .....बोली जिंदगी सब सिखा देती है।
फिर वो बोली अच्छा एक सवाल .....मैंने कहा हां पूछिए ....
- मेरे बारे में अगर कुछ कहना हो तो क्या कहोगे .....
मैंने गहरी सांस ली ....सच कहूं क्या ....वो बोली ..हाँ बिलकुल सच ...मैंने कहा तुम्हारी खूबसूरत आंखें मुझे मजबूर करती हैं ये कहने के लिए ...कि ....

बहुत खूबसूरत हैं ये आँखें तुम्हारी
इन आँखों को दिल में बसाने को
जी चाहता है
बहुत कुछ कहती हैं ये आँखें तुम्हारी
संग बैठ तेरे इन आँखों से
दिल का हाल सुनाने को
जी चाहता है,
बहुत खूबसूरत हैं ये आँखें तुम्हारी
इन आँखों ..........

तभी मेरा फोन बजने लगता है, और मैं फोन अटेंड कर लेता हूं। मुझे मेरे सर ने बुलाया था, जो एस-8 में बैठे थे। मैं फोन पे बात करते-करते वहां से चला आता हूं। कुछ देर बाद अहमदाबाद आ जाता है और मैं मेरे साथियों के लिए पानी लाने प्लेटफॉर्म पर उतर जाता हूं। बोतल में पानी भरकर मैं वापस ट्रेन में चढ़ता हूं। तभी मुझे उस लड़की का खयाल आता है। मैं लगभग भागते हुए एस-6 की सीट नं. 30 पर पहुंचता हूं। पर वहां पर कोई नहीं था। मैं नीचे उतरकर झांकता हूं पर वहां भी कोई नहीं था। उफ.....। मैं उसका नाम भी नहीं पूछ सका था। मुझे अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था। मैं डिब्बे के बाहर चस्पां रिजर्वेशन सूची में उसका नाम तलाशने लगा, पर वो सूची भी अब नई लग गई थी। मैं प्लेटफॉर्म पर इधर से उधर तक बदहवास सा भागता रहा पर वो कहीं नहीं दिखी। हमारी ट्रेन वापस रवाना होने वाली थी, और मेरी नजरें बार-बार उसे ही खोज रही थी। इतने में ही प्लेटफॉर्म के गेट के बाहर वो मुझे दिखी। मगर हमारे बीच करीब सौ मीटर का फासला था। इधर, मेरी गाड़ी प्लेटफॉर्म छोड़ रही थी... मैं उसकी ओर दौड़ा और वो गाड़ी में बैठने वाली थी। मैं उस तक पहुंच पाता, इससे पहले ही उसकी गाड़ी रवाना हो गई। वो चली गई मेरी आखिरी पंक्ति सुने बिना कि ...

बहुत खूबसूरत हैं ये आँखें तुम्हारी
इन आँखों को अपना बनाने को
जी चाहता है..। :(

Saturday, October 29, 2011

भूली-बिसरी सी यादें...

याद है तुम्हें.... हां..! याद ही होगा। अभी कुछ रोज पहले की ही तो बात है। जब तुमने कहा कि तुम वो फाइल देने के लिए मेरे घर आ जाओ। एक पल के लिए यकीन ही नहीं हुआ। यूं लगा, जैसे खुशियों का खजाना मिल गया हो.....और दूजे ही पल ना जाने क्यूं मेरा गला सूख गया....। तुम्हारे घर जाते वक्त अनगिनत सवाल मेरे दिमाग में दौड़ रहे थे। मैं तुम्हारे पेरेंट्स से कैसे मिलूंगा..? क्या बात करूंगा..? उनके सामने तुम्हें क्या बोलूंगा...? उन्होंने कुछ सवाल पूछ लिया तो....!! तुम मेरा परिचय क्या दोगी..? इस तरह के ढेर सारे सवाल मेरे जहन में आ-जा रहे थे।.....जिनके जवाब मैं अपने आप को दिए जा रहा था...।
आखिर डरते-डरते मैं उस रोज तुम्हारे घर गया। मैं मन ही मन भगवान से यह दुआ करते हुए जा रहा था कि दरवाजा तुम ही खोलो....ताकि तुम सारी स्थिति संभाल लो।.....पर उस वक्त मैं बिल्कुल स्तब्ध रह गया....जब दरवाजा अंकित ने खोला। एक पल के लिए तो मेरे मुंह से बोल ही नहीं फूटे....! समझ ही नहीं आया कि क्या बोलूं....मेरी नजरें अंदर झांकते हुए तुम्हें तलाश रही थी। फिर मैंने धीरे से कहा- मेघा का घर यही है ना ? जैसे कि मुझे पता ही नहीं हो...!अपने इस झूठ पर मैं मुस्कुरा भर उठा था। सच....यार! इसके बाद जो बातों का सिलसिला चला तो एहसास ही नहीं हुआ कि मैं इस घर में पहली बार आया हूं। तुम्हारी मम्मी से पहली बार मिल रहा हूं। बातों का सिलसिला एक मिनट भी नहीं रुका। तुम्हारी मम्मी से बात करते हुए जरा भी नहीं लगा कि मैं इनसे पहली बार मिल रहा हूं। यूं लगा....जैसे मैं तुम्हें और तुम्हारे परिवार को बरसों से जानता हूं...। शायद......या फिर....यकीनन। यह हमारी दोस्ती का असर होगा...। हालांकि इसके बाद मैं एक बार और तुम्हारे घर गया था। जब तुम बीमार थी और फ्रेंडशिप डे (३० जुलाई) विश करने के लिए कॉलेज नहीं आ सकी थी। उस दिन बारिश हो रही थी। मगर मैं बारिश रुकने का इंतजार नहीं कर पाया और भीगते हुए ही तुम्हारे घर पहुंच गया था। फिर भी पहली बार तुम्हारे घर जाने का किस्सा तो मुझे हमेशा याद रहेगा। उन दिनों की भीगी यादें आज भी मुझे हंसाती है, फिर रुला देती है।
जानती हो मेघा....हमारे बीच जो भी झगड़े हुए। उनसे हमारी दोस्ती कमजोर होने के बजाय और मजबूत होती चली गई। ऐसा मुझे लगता है। अब तो मेरे पास तुमसे जुड़े ढेर सारे अफसाने हैं...। जो मेरे जहन में हर वक्त साये की तरह मेरे साथ रहते हैं। जो मुझे कभी अकेलापन महसूस नहीं होने देते...। ये सब तुम्हारी दी हुई खुशियां हैं। जिन्हें मैं सहेजकर संभालकर रखता हूं...। तुम सबसे अच्छी हो......। सबसे अलग हो.....। सबसे जुदा हो.....। सबसे प्यारी हो......। इन सबसे बढ़कर तुम मेरी सबसे प्यारी दोस्त हो......। मुझे तुम पर और अपनी दोस्ती पर गर्व महसूस होता है....।

Monday, October 24, 2011

बता के जाओ...

बिछडऩे वाले चले जो हो तो बता के जाओ
कि कितनी शामें उदास आंखों में काटनी है...
कि कितनी सुबह अकेलेपन में गुजारनी है
बता के जाओ...कि कितने सूरज अजीब रास्तों को देखना है.
कि कितने महताब सर्द रातों में निकालने हैं.
बता के जाओ...कि चांद रातों में वक्त कैसे गुजारना है.
खामोश लम्हों में तुझको कितना पुकारना है.
कि कितने मौसम एक-एक करके जुदाइयों में गुजारने हैं.
बता के जाओ...कि पंछियों ने अकेलेपन का सबब पूछा,
तो क्या कहना है.
बता के जाओ...कि मैं किससे से तेरा गिला करूंगा.
बिछड़ के तुझसे, मैं किससे मिला करूंगा.
बता के जाओ...कि आंख बरसी तो कौन मेरे आंसू पौंछा करेगा.
उदास लम्हों में दिल की धड़कन कौन सुना करेगा.
बता के जाओ...कि किस पे है अब एतबार करना.
बता के जाओ...कि मेरी हालत पर चांदनी खिलखिला पड़ी
तो मैं क्या करूंगा.
बता के जाओ...कि मेरी सूरत पर जहां मुस्करा पड़ा
तो मैं क्या करूंगा.
बता के जाओ...कि तुमको कितना पुकारना है.
बिछड़ के तुझसे, ये वक्त कैसे गुजारना है.
चले जो हो तो बता के जाओ....

कि लौटना भी है या..... :(

Sunday, October 23, 2011

...जाने कहां होगी वो

कुछ आदतें कभी नहीं बदलती। जैसे कि नम आंखों के साथ रोजाना उसकी तस्वीर के सामने घण्टों तक बातें करना हो या रात को सोने से पहले डायरी में सहेजकर रखी उसकी यादों पर हाथ फिराना हो। कुछ भी नहीं बदला था मैं। हालांकि लफ्जों का वो पुल, जिसकी बुनियाद पर हमारा रिश्ता टिका था। आज टूट चुका था। मगर फिर भी उसके आखिरी शब्द आज भी मेरे कानों में गूंजते हैं। 'अपना खयाल रखना'। बस....इतना ही बोल पाई थी वो। उस उदास लम्हे में इससे ज्यादा बोलने की हिम्मत कहां बची थी उसमें। और मैं...समझ ही नहीं पाया था उसकी बेबसी को...। उसकी गीली हुई पलकों की तरफ मेरा ध्यान ही नहीं गया। मैं तो बस अपनी ही धुन में उसको अपनी कहानी सुनाए जा रहा था। मैं अब यहां से जा रहा हूं। वहां ये करूंगा, वो करूंगा। बहुत सारे सपने देखे हैं मैंने, जो मुझे सच करने हैं। और भी न जाने क्या-क्या। वो चाहकर भी मुझे अपने मन की बात नहीं कह पाई थी। जाते वक्त मैंने तो हाथ भी नहीं मिलाया था उससे। बस यूं ही चला आया था। कुछ दिन बाद उसे फोन किया, तो न जाने क्यूं उसकी बेरूखी पर मुझे गुस्सा आ गया। फिर मैंने कभी फोन नहीं किया।
मगर भगवान को शायद कुछ और मंजूर था। जिन्दगी के इस मोड़ पर हमारा रिश्ता फिर नई करवट लेगा। मैंने सोचा नहीं था। भागदौड़ की जिन्दगी में उसका साथ भले ही मुझसे छूट गया था। पर दिल के किसी कोने में उसकी यादें आज भी अपनी गर्माहट से मुझे ऊर्जा दे रही थी। एक दिन न जाने क्यूं मैंने उसको फोन कर दिया। तकरीबन दो साल बाद। आवाज में वही आत्मीयता। जो मैंने दो साल पहले उससे जुदा होते हुए महसूस की थी। बातों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो फिर रुकने का नाम ही नहीं लिया। गिले-शिकवे तो यूं दूर हुए, जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं हो। न जाने कब दिन ढल गया और कब रात हो गई। मगर बातें खत्म नहीं हुई। कल फिर बात करने के वादे के साथ गुफ्तगु को विराम दिया गया। देर रात तक मैं उसकी यादों में उलझा रहा। सुबह नींद खुली उसके एसएमएस के साथ। बरसों बाद उसका मैसेज आया था। पता नहीं क्यूं, उस मैसेज को दो-तीन बार पढऩे पर भी जी नहीं भरा। मैं जितनी बार भी उसका मैसेज पढ़ता। मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट की साइज और ज्यादा बढ़ जाती। इतने में उसका फोन आ ही गया।
 'कल मैं बहुत खुश थी'। यह कहते हुए उसकी खुशी साफ झलक रही थी। मैंने कहा-'पता नहीं कल मुझे क्या हो गया था। मैं अपनी हंसी को रोक नहीं पा रहा था। शायद अरसे बाद इतनी निश्छल खुशी को महसूस किया था मैंने'।
- अच्छा, तुम्हें याद है दिल्ली का वो कॉलेज टूर ?
- मैं कहा- हां, बिल्कुल याद है। शायद 21-22 दिसम्बर को गए थे।
- वो खुश होकर बोली, वाऊ....। तुम्हें तो डेट भी याद है तो फिर और भी बहुत कुछ याद होगा।
- मैं उसी अंदाज में कहता गया। हां....मैं डायरी लिखता हूं ना।  इसलिए मुझे सब याद है। हम कई जगह घूमे थे। साथ खाना खाया था। वगैरह-वगैरह।
- अच्छा। चलो ये बताओ। उस दौरान और क्या स्पेशल हुआ था ?
- हम्म.....स्पेशल क्या हुआ ? मुझे तो कुछ याद नहीं।
- तुम अपनी डायरी पढऩा। शायद उसमें कुछ लिखा हो।
उस दिन मैंने खूब डायरी के पन्ने पलटे। पर ऐसा कोई संस्मरण मुझे याद नहीं आया। फिर मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने उससे पूछा कि ऐसा क्या स्पेशल हुआ जो न मेरी डायरी में है और न ही मेरी यादों में। वो मुस्कुरा दी। :)  उसने कहा- चलो मैं ही बता देती हूं। हमारा पूरा ग्रुप दरगाह गया था। मगर हम दोनों उन सबसे अलग चल रहे थे। सब लोग आगे चले गए और हम दोनों पीछे रह गए थे। मैं पहली बार दरगाह गई थी। और इससे पहले मेरे मन में...कहीं किसी कोने में यह खयाल दबा था कि मैं उस शख्स के साथ दरगाह जाना पसंद करूंगी, जिसे मैं चाहती हूं। जब आप मेरे साथ चल रहे थे। तब मेरे दिल और दिमाग में बस वही खयाल घूम रहा था। और आप मुझे दरगाह में जियारत के तौर-तरीके बताते जा रहे थे। उस दिन भीड़ भी बहुत ज्यादा थी। सब लोग काफी आगे चले गए थे। पीछे रह गए थे केवल तुम और मैं। इनके अलावा एक और चीज थी, जो हमारे साथ थी। मेरा वही खयाल। पता नहीं क्यूं, मैं चाहकर भी उस खयाल को अपने से दूर नहीं कर पा रही थी। दरगाह के अंदर जाने से पहले तुम मेरे बिल्कुल नजदीक आ गए थे। और तुमने कहा- अरे, रुको, तुम ऐसे कैसे अंदर जा रही हो। इतने में ही तुमने अपने हाथ से मेरे दुपट्टे को खोलकर मेरे सर पर लगा दिया था। मुझसे बिना कुछ कहे। उस वक्त न जाने क्यूं मुझे बेहद कोमल सा एहसास हुआ था। तुम मुझे अपने करीब महसूस हुए थे। बेहद करीब। जहां मैं तुमको महसूस कर सकती थी। वो पल आज भी मेरी स्मृतियों में जिंदा है। जब अंदर जाने लगे तो मुझे भीड़ से बचाने के लिए तुमने मेरा हाथ थाम लिया था। बेहद अपनापन सा महसूस किया था मैंने। तुमने मुझे अपने साथ..., बिल्कुल पास में लेकर दरगाह की जियारत कराई थी। उस वक्त मैं दरगाह में थी, लेकिन मेरा मन तो कहीं और था। शायद तुम ये बातें नहीं समझ सकते। लेकिन मैं...मेरे लिए तो वो सबसे खुशनुमा पल था। मैं समझ ही नहीं पाई ये मुझे क्या हो रहा है। शायद, वो सब कुछ बिल्कुल सामान्य तरीके से हो रहा था। मगर मेरा मन अभी उस खयाल के आस-पास ही घूम रहा था। खुदा की बारगाह में दुआ मांगते वक्त भी तुम मेरे खयालों से जुदा नहीं हुए थे। आज भी वो पल मुझे याद आता है।'
यह सब कुछ उसने एक सांस में कह दिया था। और उसकी बातें सुनने के बाद मैं समझ नहीं पा रहा था,कि अब क्या बोलूं। जिन्दगी में कभी किसी ने मुझसे जुड़ी कोई बात इस तरह से बयां नहीं की थी। आज उससे बात हुए एक बरस बीत गया। उसने नहीं चाहते हुए भी मुझसे दूरी बना ली। पता नहीं ऐसी क्या मजबूरी रही होगी उसकी। 'मैं तुम्हें बहुत मिस करूंगी। मेरे लिए बहुत मुश्किल होगा, तुमसे बात किए बिना रहना। पर, प्लीज तुम मुझे कभी फोन मत करना....कभी नहीं....कभी भी नहीं।' और मैंने भी उसको वादा कर दिया कि- 'हां, मैं फोन नहीं करूंगा पर तुम्हें बहुत याद करूंगा। तुम जब चाहो मुझे फोन कर सकती हो।'

फिर एक साल बाद उसका मैसेज आया। 'ए वैरी-वैरी हैप्पी न्यू ईयर।' और मैं खुशी से झूम उठा। पर रिप्लाई नहीं कर पाया। कभी फोन-एसएमएस नहीं करने का वादा जो किया था। मैसेज के आखिर में अपना नाम भी नहीं लिखा था उसने। उसे शायद अब भी यकीन होगा कि उसके नम्बर मैंने डिलीट नहीं किए हैं। आज वो न जाने कहां होगी। मेरे पास तो उसका खयाल ही है।

Saturday, July 30, 2011

Happy friendship day


मै और उसको भुला दूं , ये कैसी बातें करते हो फ़राज़ .......!!!
सूरत तो फिर सूरत है, वो नाम भी अच्छा लगता है ........!!!

कभी-कभी लगता है कि दूर तलक चली जाती खामोश सड़क पर मैं तुम्हारे हाथों में हाथ डाल कर यूँ ही खामोश चलता चलूँ। कभी कभी खामोश रहना भी कितना सुकून देता है, है न। तुम्हें पता है कि जब ख़ामोशी जुबां अख्तियार कर लेती है तो बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जो हमारे सीने में दफऩ होती हैं, उन्हें ख़ामोशी ख़ुद-ब-ख़ुद दूजे के दिल तक पहुँचा देती है। कितना आसान है न ख़ामोशी की जुबां को समझना, या शायद हमें समझने की जरूरत कहाँ पड़ती है, वो तो ख़ुद-ब-ख़ुद हमारे कानों में संगीत बनकर गूंजती है। एक अर्सा हुआ जब से कुछ खोया-खोया सा जुदा-जुदा सा लगता है। लगता है कि कुछ है, जो यूँ ही समझ नही आएगा। मन करता है एक बार फिर से वही सब करूँ, वही सब सुनूँ, वही सब महसूस करूँ, जो तुम्हारे और मेरे दरमियां होता रहा। तुम्हें याद है न वो सब... याद ही होगा...अभी जैसे कुछ रोज़ पहले की ही सी तो बात है। जब हम-तुम साथ हुआ करते थे। तुम्हें देखकर मैं कितना खुश हुआ करता था। आज जब मैं फिर उसी कॉलेज गया, तो वही पुरानी मीठी सी यादें जीवंत हो उठीं। जैसे वो भी मेरे वहां आने से हर्षित हुई हों। सच..। नोटिस बोर्ड के पास गया तो यूं लगा जैसे, अभी-अभी तुम यहीं खड़ी थीं। वहीं नीली जींस और सफेद शर्ट में। मुझे आज भी याद है 30 जुलाई 2008 का वो दिन। अब तो शायद वो दिन और वो पल हमेशा के लिए मेरी स्मृतियों में जगह बना चुका है। क्लास के पास जाते ही यूं लगा जैसे तुम अंदर बैठी हो। और आज भी मुझसे नाराज हो। अक्सर तुम नाराज ही तो रहती थी मुझसे। :) तुम आगे बैठती और मैं पीछे बैठ जाता तो भी तुम नाराज हो जाती। और मैं भी बिल्कुल पागल था। वही करता जो मेरा पागल दिल करने को कहता। सोचने-समझने का का होश था ही नहीं उन लड़कपन के दिनों में। स्टाफ रूम के उस डायस को छूकर देखा मैंने। जहां पर हम-तुम ने साथ एक कार्यक्रम का संचालन किया था। याद है तुम्हें वो समापन समारोह। बहुत अच्छा साथ दिया था तुमने मेरा। :) हम दोनों का एक साथ गुलाबी कपड़े पहनना भी ना जाने कैसा संयोग था। आज भी उस बात पर मेरी हंसी छूट जाती है जब तुमने कहा कि- तुमने आज पिंक शर्ट क्यूं पहना..? :) :) उस दिन तुमने वो बिस्किट पूरे खत्म ही नहीं किए थे। जो मैं तुम्हारे लिए लेकर आया था। वो पैकेट आज भी मैंने संभालकर रखा है। ठीक तुम्हारी यादों की तरह। उसको बार-बार देखना मुझे बहुत सुखद अनुभूति देता है। जब मैं लॉन में खड़ा था, तो यूं लगा जैसे तुम पानी पीने के लिए दौड़कर जा रही हो। जब भी तुम जाती तो दौड़ती हुई जाती थी। बिल्कुल बच्चों की तरह। मैं अक्सर तुम्हें देखकर मुस्कुराता रहता था। :) सच बात तो यह है उन दिनों मेरी मुस्कुराहट और हंसी की वजह सिर्फ तुम ही तो थी। वो भी क्या दिन थे। जब उन बारिश के दिनों में हमारे बीच कई-कई दिनों तक बात न हुआ करती। फिर भी कैसे हम एक दूजे के दिल का हाल जान लेते थे बिना कहे, जैसे तुम कहना चाहती हो कि- तुम मेरे पास मत आओ। और मैं कहना चाहता था कि- तुम बेहद खूबसूरत लग रही हो। ऐसी कितनी ही बातें थी जो हमारे दरमियाँ उस ख़ामोशी में हो जाया करती थीं। तुम हो, मैं हूँ, हमारी बातें हैं, बेफिक्री वाला दिन, खुला आसमान, हरी घास, मदमस्त उड़ते से रंग-बिरंगे पंछी, वो तितलियाँ और वो बेवजह की बातों में मशगूल रहना। सच मानों कभी तो उन दिनों यूं लगता जैसे मैं जन्नत में हूँ। नहीं जानता कि कैसी होती होगी, लेकिन इससे अच्छी तो नही होगी न। :) जब तुम रजिस्टर में पेन से कुछ आड़ी-टेढ़ी लकीरें खींचती तो पता लग जाता कि कुछ सोच रही हो, किसी उलझन में हो। तुम्हें इस तरह उलझन में पाकर मैं हमेशा तुम्हारे हाथों को अपने हाथों में लेकर और तुम्हारी आंखों में झाँककर पूछना चाहता था कि क्या बात है। पर कभी इतना साहस नहीं जुटा पाया। मैं तुम्हारी हर परेशानी को बांटना चाहता था। पर जब तुमसे पूछता तो तुम भी कह देतीं कि कुछ नहीं, कुछ भी तो नहीं । लेकिन अगले ही पल कैसे तुम सारी बातें कह दिया करती। तुम्हारी वो बातें, ढेर सारी बातें, प्यारी प्यारी, अपनी सी, भोली सी, मासूम सी । जिनसे मुझे उतना ही प्यार हो चला था जितना कि तुमसे, तुम्हारी प्यारी आंखों से, तुम्हारी उस मुस्कराहट से, तुम्हारी उन बच्चों जैसी हरकतों से था। सच में वो ख़ामोशी भी बहुत खूबसूरत हुआ करती थी । अपने अपने हाले-दिल बयाँ करने के लिए सबसे खुशनुमा, सबसे संजीदा और बिल्कुल अपनी सी। तुम्हें पता है कि उस ख़ामोशी में हम अपने सारे गम, सारी खुशी बाँट लेते थे। वो ख़ामोशी हमारी दोस्त हो जाया करती थी। उस ख़ामोशी के बने हुए तमाम अफ़साने हैं, जो मेरे जहन में जब तब यूँ ही आ जाया करते हैं और मैं मुस्कुरा जाया करता हूँ। क्या वो खामोश से अफ़साने तुम्हारे पास भी आते हैं गुफ्तगू करने...। :) :)

Happy friendship day 30th July. :) :)

Sunday, June 26, 2011

short question with a cute answer

some one asked me 'hwz ur life...?'

I smild...... :) and answrd,

she’z fine..!!

Wednesday, June 22, 2011

ऐ अजीज-अज-जान लड़की !


आज अपनी दोस्ती पूरे दो बरस की हो गई। इन दो बरसों में तुमने मुझे ढेर सारी खट्टी-मिठी यादें और अनगिनत खुशियों के पल दिए हैं। जिन्हें जाहिर करना मेरे लिए नामुमकिन तो नहीं, पर मुश्किल जरूर है। दो साल ऐसे गुजर गए, जैसे कि दो दिन। शायद अच्छे दिन जल्दी गुजर जाते हैं। सच..!!! दो साल का बच्चा भी कितना प्यारा होता है ना...। उसकी शरारतें..... बातें....और....मासूम से सवाल...। सब कुछ कितना अच्छा लगता है। कभी-कभी उसकी जिद पर गुस्सा आता है, तो दूजे ही पल उसके मासूम चेहरे को देखकर उसे गले लगाने का दिल करता है। तुम ऐसी ही तो हो। बिल्कुल बच्चों की तरह मासूम सी...। :) जिसकी बातों पर ठहाके लगाने का मन करता है। खाने के लिए जब तुम जिद करती हो तो जी करता है, बस तुम्हें देखता रहूं। जब तुम बोलती हो तो, मैं तुम्हारी आंखों में झांकते हुए सुनना चाहता हूं। बहुत अच्छा महसूस होता है। इस दरमियान मैं तुम्हारी आंखों में ढेर सारे ख्वाब देखता हूं। सुनहरे सपनीले ख्वाब। रंग-बिरंगे खिलखिलाते फूलों की तरह। हर ख्वाब अपने आप से बेशकीमती है। बिल्कुल सौ फीसदी अनमोल। मैं इन आंखों में ख्वाबों को देखकर और तुम्हारी बातें सुनकर मुस्कुरा कर रह जाता हूं। इतना मासूम भी भला कोई होता है। तुम इस दुनिया का हिस्सा होते हुए भी दुनिया से अलग हो। तुम्हारा भोलापन.......मासूमियत......और....सादगी सौ प्रतिशत शुद्धता लिए हुए है।
आज भी वही दिन है ना...। 30 जुलाई। यह दिन जब भी आता है। तुमसे जुड़ी हुई ढेर सारी यादें मेरे आस-पास छोड़ जाता है। कॉलेज का पहला दिन.....घण्टों तक चलने वाली बातें.....तुम्हारे लिए चॉकलेट लाना.......मेरी जिद....तुम्हारा रूठना...मेरा मनाना....और तुम्हारे साथ रेस्टोरेंट में बिताए पल। सब कुछ ऐसा लगता है, जैसे मेरे आस-पास ही आकर बैठ गए हों.....और मुझे देखकर मुस्कुरा रहे हों।  :) आज जबकि हम दोस्ती के इस अनिश्चितकालीन सफर के लिए चलते जा रहे हैं। तो मैं तुम्हें लिखकर भेज देना चाहता हूं, वो सब एहसास। वो ढेर सारी बातें। जो तुम्हारे होने से होती है और तुम्हारे ना होने से यादें बन जाती है। मैं वो सब कह देना चाहता हूं, जो मैं हर उस पल कह देना चाहता था,जब तुम मेरे साथ होती थी। मेरे पास होती थी। पर,कभी ढंग से कह नहीं पाया। तुम्हारा और मेरा रिश्ता क्या है। ये मैं पहले भी सोचता था और आज भी सोचता हूं। क्या हमने कभी अपने रिश्ते का कोई दायरा भी बनाया था। मुझे ठीक से याद नहीं कि इस पर हमारी कभी बात हुई हो। या हम इन सभी रिश्तों से अलग कहीं जुड़े हुए थे। कहीं किसी कोर पर गहरे से गांठ बंधी हुई थी। जिसको देख पाना और समझ पाना मुश्किल था हमारे लिए। कभी मालूम ही नहीं चला कि रिश्तों का ऐसा भी कोई बंधन होता है भला। मैं इस रिश्ते को भी एहसास का नाम देता हूं। जिसे लोग दोस्ती या फिर प्यार का नाम देते हैं। अक्सर मैं ये सोचता हूं कि जब रिश्तों को निभाने वाले बड़े हो जाएं और रिश्तों के दायरे छोटे....तब काश....ऐसा हो पाता कि मां जिस तरह छोटे पड़ गए स्वेटर को उधेड़कर फिर से नए सिरे से बुनती और हम उसे बड़े चाव से पहनते...ठीक उसी तरह। अगर रिश्तों को भी सहेजकर रखा जा सकता तो कितना अच्छा होता। रिश्तों के इन प्रचलित दायरों के बाहर भी एक दुनिया है। ये तुमने ही मुझे बताया। वो दायरे जो हम खुद बना लेते हैं या हमे बने हुए मिलते हैं। मुझे ये महसूस होता था कि तुम हमेशा मुझे मुस्कुराती हुई खड़ी मिलती। तुम जब मुझे उन दायरों से बाहर ले गई,तो वो अलग ही दुनिया थी। उसके एहसास से मैं रोमांचित हो उठता था। जब भी मैं अपने आप को अकेला और असहज महसूस करता हूं तो संभाल कर रखी गई तुम्हारी चीजों को एक-एक कर निकालता। उनमें छुपी हुई, घुली हुई तुम्हारी यादों को एक-एक करके हाथ पर रखता और अपने चेहरे पर मल लेता। मैं देखना चाहता हूं कि तुम्हारी यादों के साथ मेरा चेहरा कैसा दिखाई देता है। कुछ धुंधले अक्स स्मृतियों में ऐसे जमा हो जाते हैं, जैसे वजूद का एक अहम् हिस्सा हो गए हों। जिनका होना और ना होना उतने मायने नहीं रखता। जितना की उनका स्मृतियों में बना रहना। तमाम कोशिशों के बावजूद वो अलग नहीं होते। कभी-कभी मन इतना सूना हो जाता है कि खीझ, प्रसन्नता, अप्रसन्नता, अकुलाहट, क्रोध, भय, सुख और दु:ख जैसी कोई भी स्थिति में फर्क ही महसूस नहीं होता। मन करता है, यहां से निकल जाऊं। कहां...? यह कुछ भी जाने बिना। किन्तु दिमाग आड़े आ जाता है और समझाता है कि ऐ मन...!!! बावरा हो गया है क्या...? कितनी घड़ी समझाया कि लिमिट में रहा कर। ज्यादा हवा में ना उड़ा कर। लेकिन ये मन उडऩे को करता है। किधर को...? कहां को...? मैं नहीं जानता।
तुमसे जुड़े मेरे पास ढेर सारे किस्से हैं। जो मेरी जिन्दगी में अहम् है। कुछ बातें ऐसी होती है ना। जो अपना असर छोड़ जाती है। वो दिन भले ही बीत जाए, पर उन यादों के अहसास पानी के दाग की तरह वजूद के लिबास पर हमेशा के लिए नक्श हो जाते हैं। कहते हैं,ख्वाहिशों को कोई अंत नहीं होता। इनका कोई ओर-छोर नहीं होता। कहां शुरू होती है और कहां खत्म। पता ही नहीं चलता। कुछ ख्वाहिशें तो ऐसी होती है कि खुद ख्वाहिश को ख्वाहिश करने वाले से प्यार हो जाता है। इन्हीं ख्वाहिशों के कारण जिन्दगी में कई मुश्किल दौर से गुजरा मैं...। और गुजरता हुआ यहां तक पहुंचा। जब अपनी आंखें बंद करके सोचता हूं तो पता है,सबसे मुश्किल घड़ी कौनसी लगती है....। तुम्हें दोस्त के रूप में पा लेने और फिर खो देने के अहसास का पूर्णत: सच होना। तुम्हें पा लेने से पहले जब घण्टों तुमसे गुफ्तगु करता था। वो तुम्हारी ढेर सारी बातें.... जो मुझे कभी बच्चों सी लगती और कभी एकदम बड़ों सी। और इन सबके बीच वो ढेर सारे अनगिनत अनमोल खुशियों के पल। उन्हें दामन में समेट लेने का मन करता। कुछ रोज बाद जब एहसास हुआ कि ये मुझे क्या हो गया है..। ये मेरा दिन तुम्हारे होने और ना होने पर अपनी शक्लो-सूरत क्यों बदल लेता है। और तुम्हारी 'हा' और 'ना' की आशंकाओं से घिरे मेरे दिल का हाल क्या रहा होगा उन दिनों। ये मेरा दिन ही जानता है। कभी दिल में खयाल आता है कि तुम्हारे चेहरे को अपने हाथों में लेकर......तुम्हारी आंखों में आंखे डालकर कह दूं कि हां..!! तुम ही तो हो...। जिसके होने का एहसास हरदम मेरे साथ रहता है। जब खयाल आया कि तुमसे अपने उस एहसास को बयान करूं....तो सचमुच वो बेहद मुश्किल घड़ी थी। मैं एकदम मुश्किल दौर में पहुंच गया था। शायद मैं भी तुम्हारी तरह कभी बच्चों सी तो कभी बड़ों सी हरकतें करने लग गया था। कभी मन करता कि तुम्हारे पास आकर कह दूं कि क्या तुम यूं ही हरदम मुझे ये एहसास कराओगी......क्या हरदम तुम यूं ही मेरे साथ रहोगी....और......तेज दौड़ लगाऊं....... तेज.......और...तेज......बहुत.....तेज...। ताकि तुम्हारी 'हां' और 'ना' की कशमकश से छुटकारा तो मिले....और दौड़ता-दौड़ता....हांफने तक..... पसीने में चूर होने तक.....मुझे कुछ भी सुनाई ना दे......कि कहीं तुमने ये तो नहीं कर दिया कि 'नहीं'.....या फिर मुझे सोचने का वक्त चाहिए।....क्योंकि कुछ भी ऐसा सुनने का साहस नहीं जुटाने के कारण मैं दौडऩा चाहता था.....पसीने में तरबतर होने तक। एक पल के लिए लगा था कि तुमसे बातों ही बातों में कह दूं कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो......इस बात से भी ज्यादा.....इस एहसास से भी ज्यादा.......इस ख्वाब से भी ज्यादा.......इस खयाल से भी ज्यादा......सबसे ज्यादा......। क्या तुम हरदम मेरे साथ रहोगी। मेरा साथ निभाओगी। कभी बच्चों सी तो कभी बड़ों सी बनकर। यह सब बातें सोचने के दौरान मुझे लगता था कि तुम ये सुनते ही खिलखिला कर हंस दोगी। :)
जिस दिन.....जिस पल.....उस टिक-टिक की आवाज वाली घड़ी के साथ मेरे दिल की आवाज सुनाई देने लगी थी। उस दिन अहसास हुआ कि अभी बोल दूं....शायद रात के दो बज रहे होंगे। उस खामोशी में भी एक प्यारी सी धुन सुनाई देने लगी थी। जो घड़ी की टिक-टिक और मेरे दिल के तेज धड़कने से जुदा थी। उस एहसास की धुन जो उस पल हुआ था। सबसे प्यारा थी। बिल्कुल तुम्हारी तरह...। पता है सबसे ज्यादा मुश्किल घड़ी कौनसी थी..? जब मैंने अपने दिल की बात तुमसे कह दी थी.....और तुम्हारी 'हां' और 'ना'  की कशमकश से मैं और मेरा दिल किस कदर दो-चार हुआ। ये तो मेरा दिल जानता है या वो एहसास खुद.....। पूरे 16 मिनट मैंने वो एहसास बयान किए थे। हालांकि इससे पहले मैने पहले कई बार इसका अभ्यास कर लिया था...!! कई बार कागज पर लिखने के बाद मैंने वो सब कहने की हिम्मत जुटाई थी। जिसे तुम बस सुन रही थी......और मैं बस बोले जा रहा था...। मेरी बात जब खत्म हुई तो यूं लगा........जैसे कोई जंग जीत ली हो। मगर जब तुम खामोश हो गई......और तुमने बस इतना सा कहा कि -....'मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी'।....और फोन कट हो गया।........ उस पल मेरा दिल एकदम से........बैठ गया था। मुझे लगा मैंने अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती कर ली है........और अपनी सबसे प्यारी दोस्त को खो दिया है। उस जिद्दी नेटवर्क से लड़ता हुआ.....उसे मनाता हुआ.....कई जतन से जब मोबाइल के बटन दबा रहा था.....पर, तुमसे बात नहीं हो पाई। मेरा मन किसी काम में नहीं लग रहा था। आखिर दो दिन बाद जब तुम्हारा मैसेज मिला कि तुम ठीक हो और तुमने मुझे माफ कर दिया है। तुम्हें एक दोस्त के रूप में वापस पा लेने के एहसास से मेरा दिल सातवें आसमान पर था......ऐसा लग रहा था.....कि सुबह की उस नर्म घास की पत्तियों पर ओस की बूंदें मेरे पैरों को छू रही है........पहाड़ों की छत पर खड़ा मैं तुम्हारे साथ ठण्डी-ठण्डी हवा का आनंद ले रहा हूं। सच....!! वो पल मेरी जिन्दगी का खूबसूरत पल था........और वो घड़ी सबसे मुश्किल घड़ी...। तुम्हारी दोस्ती ने मेरी जिन्दगी के मायने ही बदल दिए। :) 
सुनो..!! इस दिल की धड़कनों के बंद होने से पहले आज एक बार फिर मैं बयां कर देना चाहता हूं अपने एहसासों को और कहना चाहता हूं कि -

ऐ- अजीज-अज-जान लड़की ! तुम मेरे लिए इस सदी की, इस दुनिया की सबसे खूबसूरत रूह हो....।

Sunday, June 12, 2011

कुछ तुम भी कह लेते, कुछ हम भी...

रिश्तों की हकीकत ये कुछ ऐसे निभा लेते
ना हमने बुलाया था तो तुम ही बुला लेते


दिल में शिकवे थे अगर, आते तो कभी एक दिन
कुछ तुम भी कह लेते, कुछ हम भी सुना लेते


गुमसुम से ना रहते फिर रातों में अक्सर
डरते जो कभी ख्वाबों में, हम तुम को बुला लेते


उजड़ा सा है आँगन भी, है बिना लिपा चूल्हा
तुम साथ अगर होते इस घर को सजा लेते


ना हमने बुलाया था तो तुम ही बुला लेते
कुछ तुम भी कह लेते, कुछ हम भी सुना लेते।

Friday, June 10, 2011

तुम्हारे होने से मेरी जिन्दगी खूबसूरत है...।

30 जुलाई 2008. यानी मेरी अब तक की जिन्दगी का सबसे खूबसूरत दिन. शायद उस दिन ऊपरवाला मुझ पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान था, जिस दिन हम पहली बार मिले. वो एक इत्तफाक था. वो इत्तफाक मेरी लाइफ में कभी न भूलने वाला इत्तफाक बन गया है. इसका एहसास मुझे 24 दिसम्बर को हुआ. जब तुमने कहा कि अब हम सात दिन बात नहीं कर सकेंगे. उस दिन मुझे लगा कि तुम मेरी जिन्दगी का जरूरी हिस्सा बन चुकी हो. सच कहूं तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि एक सामान्य सी दिखने वाली लड़की मेरी लाइफ को इतना बदल सकती है. तुमसे मिलकर मुझे लगा कि - हां, तुम ही 'वो' हो, जिसका मुझे इंतजार था. मुझे इससे पहले किसी के लिए ऐसा फील नहीं हुआ. मुझे कब तुम्हारी हर बात अच्छी लगने लगी और कब मुझे तुमसे प्यार हो गया. पता ही नहीं चला.
शायद वो एक मीठा सा और प्यार सा एहसास ही होता है, जो हमें यकीन दिलाता है कि हां यही है, जिसे देखते ही न जाने क्यूं दिल को कुछ हो जाता है. हमारा रोम-रोम खिलने लगता है. उसके सामने आते ही ना जाने क्यूं हमे ऐसा कुछ एहसास होने लगता है. जो किसी और के आने पर नहीं होता. हां, यह प्यार ही तो है. यह हमारे बीच एहसास का ही तो रिश्ता है. बीते एक साल में तुमसे की गई बातों और यादों को मैंने डायरी में सहेज कर रखा है. एक साल हमारे बीच कितनी बार झगड़ा हुआ. शायद हम दोनों को याद नहीं होगा. लेकिन हमारी दोस्ती की मिठास कभी कम नहीं हुई। न जाने कितनी बार ऐसा हुआ जब तुमने कहा-
तुम ऐसा करते हो.
तुम वैसा करते हो.
तुम कभी मेरी बात क्यूं नहीं मानती.
तुम कभी मुझे क्यूं नहीं समझते.
मैं जा रही हूं, तुम्हारी जिन्दगी से.
कभी लौटकर नहीं आऊंगी.
और फिर फोन कट हो जाता...
कुछ देर वक्त ठहर सा जाता.
जैसे सब कुछ खत्म....!
थोड़ी देर बाद दोनों में से कोई एक कहता - सॉरी
क्या हम फिर से दोस्त बन सकते हैं....?
पहले की तरह.
दूसरा कहता- हां, बिल्कुल.
और फिर सब कुछ पहले की तरह हो जाता.
ये झगड़े और रूठना-मनाना, मैं जिन्दगी में कभी भूल नहीं पाऊंगा. अब तो तुम्हें मनाने की आदत पड़ चुकी है. तुमसे मिलने के बाद मैंने दोस्त बनाना सीखा है. दोस्ती निभाना सीखा है. अपनों के लिए जीना सीखा है. सच कहूं तो, जिन्दगी जीना भी मैंने तुमसे मिलने के बाद सीखा है. तुम्हारे होने भर से मेरी जिन्दगी खूबसूरत हो गई है. कितने रंग मेरी लाइफ में भर गए हैं. कितनी खूशबूएं मेरे आस-पास फैल गई है. न जाने कितने ही ख्वाब मेरी आंखों में पलने लगे हैं. मुझे खुश होने के मौके सिर्फ तुमने दिए हैं. यह सब महसूस करने की बातें हैं. इन्हें लिखने के लिए मेरे बाद शब्दों की कमी सी हो गई है. जिन्दगी में शायद पहली बार कुछ लिखने के लिए मैं इतनी उलझन महसूस कर रहा हूं. तुम मेरे लिए दुनिया की बेस्ट इंसान हो. आज अगर कोई मेरे सबसे करीब है, तो वो तुम ही हो.
देखते ही देखते हमारी दोस्ती ने एक साल का सफर तय कर लिया. मैं जानता हूं, दोस्ती के जिस सफर पर हम कदम बढ़ा रहे हैं. उसकी कोई मंजिल नहीं है. लेकिन सच यह भी है कि मुझे उस मंजिल की कोई चाह नहीं है. कई बार ऐसा होता है कि जब हमें रास्ते मंजिल से बेहतर लगने लगते हैं. मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ है. मुझे इन रास्तों से ही लगाव है. क्योंकि इन रास्तों में तुम मेरे साथ हो. जानती हो, जबसे मैंने आंख खोली, तबसे मुझे भगवान से एक बात की शिकायत रहती थी कि उसने मेरी किस्मत में पापा का प्यार क्यों नहीं दिया. मैं उनको कभी देख नहीं पाया. उनकी यादों की धुंधली तस्वीर भी मेरे जेहन में नहीं है. जब भी भगवान से कुछ मांगता तो साथ में इस बात का उलाहना भी देता. लेकिन अब लगता है, भगवान ने मुझे तुमसे मिलाकर अपनी गलती के लिए सॉरी बोल दिया है.
तुमसे मिलने की उम्मीद में मैं कहीं भी चला जाता हूं. घण्टों तक इंतजार कर लेता हूं. तुमको देखने से मुझको सुकून मिलता है. तुम जहां भी जाती हो. मन करता है, मैं भी वहीं चला जाऊं. मेरा यह 'पागलपन' तुमने भी देखा है. तुम्हारी वजह से ही मुझे पहली बार मेरा जन्मदिन अच्छा लगा था. मैं जानता हूं, 12 मई को तुम कॉलेज सिर्फ मेरे लिए आई थी. किताबें जमा कराना तो बस एक बहाना था. तुम्हारा आना मेरे लिए जन्मदिन का सबसे अनमोल तोहफा था. वो खुशी के पल सिर्फ तुमने मुझे दिए थे. सच तुम्हारी वो अदा आज भी मुझे बेहद प्यारी लगती है. जब तुम मेरे लिए तपती धूप की परवाह किए बिना, उस बस के सफर से मुझसे मिलने आई थी। उस रोज तुम मुझे दिल के बेहद करीब मालूम हुई थी। हां, ये एहसास ही तो है, जो आज भी मेरे जेहन में जिंदा है. यादें भी ना खूब होती है. दिमाग की हार्ड डिस्क में एक बार स्टोर हो जाती है, तो बस हो जाती है. इन्हें फोर्मेट भी नहीं मारा जा सकता. शायद, तुम मेरी ये बातें पढ़कर बहुत जोरों से हंस रही होंगी. पर सच, तुम्हें हंसते देखकर दिल को सुकून मिलता है. तुम्हारी हंसी गिरते हुए झरने सी लगती है.
मैं तुम्हें बहुत मिस करूंगा. यह कहूंगा तो शायद गलत होगा. क्योंकि मैं इस जिन्दगी में तुम्हें कभी भूल नहीं पाऊंगा. जिन्दगी के किसी मोड़ पर मेरी जरूरत पड़े, तो बस पुकार लेना. मैं दौड़ा चला आऊंगा. उसी दिन की तरह, जिस दिन तुम्हारे पास सिटी बस का किराया नहीं था. और अचानक मैं वहां आ गया था. याद तो होगा तुम्हें, तुम भले ही भूल जाओ. मगर मैं इन लम्हों और बातों को कभी भूल नहीं पाऊंगा. कभी न कभी तुम इन यादों का एहसास जरूर करोगी. तब तुम मुझे याद करोगी...!
शायद तब एहसास करोगी.
मेरे प्यार के छांव तले,
जब ये गुजरे दिन याद करोगी.
यूं तो जीवन की राहों में
कितने साथ मिले और बिछड़े हैं.
और ना जाने कितने तेरे मेरे बीच खड़े हैं.
अंतर्मन से मैं हूं तेरा.
एक दिन ये एहसास करोगी.
जिस दिन तुम अपना समझोगी.
तब मिलने की चाह करोगी.
मेरे दिल में बसे प्रेम का,
जिस दिन तुम विश्वास करोगी.
शायद तब एहसास करोगी.

Monday, May 30, 2011

वो पागल लड़का...

मेरे कॉलेज के नोटिस बोर्ड के पास खड़ा वो लड़का आज भी जब-तब मुझे याद आ जाता है। जिसका मैंने दिल तोड़ा। उसका मेरे प्रति लगाव और सबसे करीब आने की चाहत आज भी रह-रहकर मेरे जहन में आ जाती है। उस दिन न जाने क्यूं नितांत अजनबी होते हुए भी वो मुझे अपना सा लगा था। दिखने में सामान्य सा ही था। फिर भी कोई तो बात उसमें जरूर थी, जिसकी वजह से मुझे वो एक भरोसेमंद इंसान लगा। कई बार ऐसा होता है कि आप एकाएक किसी ऐसे शख्स से टकरा जाते हैं, जो पहली नजर में ही आपकी तबीयत का सा लगने लगता है। जैसे की ऊपरवाले ने उसे खास तौर पर आपके पास भेजा हो। मैं उस वक्त बिल्कुल अकेली खड़ी थी। कोई मेरी परेशानी सुलझाने वाला वहां नहीं था। मैं उस कॉलेज से बिल्कुल अनजान थी। मुझे लगा कि यह लड़का मेरे काम आ सकता है। यह सोचकर मैंने उससे बात शुरू की। 'क्या आप यहीं के हैं..?' यह पहला सवाल था मेरा उससे। बड़ी सादगी से उसने मेरे सवालों के जवाब दिए। उसने मेरे प्रवेश फार्म और मुझमें भी बड़ी दिलचस्पी दिखाई। मुझे लगा यह अपने काम आ सकता है। विदा होते हुए मैं उसके मोबाइल नम्बर लेना नहीं भूली। न जाने क्यूं पहली ही मुलाकात में मैंने बेतकल्लुफी से उससे उसके मोबाइल नम्बर मांग लिए। न जाने क्यूं मैंने भी बिना सोचे-समझे अपने नम्बर भी उसे दे दिए। फिर दोस्ती का कभी न खत्म होने वाला सिलसिला शुरू हो गया। हर दिन की हर बात उसे बताना जरूरी सा हो गया था। बातें थी कि, एक खत्म होती तो दूसरी उपज जाती। लड़ते-झगड़ते, रूठते-मनाते कब वक्त उड़ता चला गया। पता ही नहीं चला। न जाने कितनी ही ऐसी घटनाएं हुई, जब मैंने उसे बुरा-भला कहा। उससे नाराज होती और वो मुझे मनाता रहता। मैं उसे मजाक में कहती,
- तुम मेरे दोस्तों की लिस्ट में छठे नम्बर पर हो।
- अच्छा! तो पहले नम्बर पर आने के लिए क्या करना होगा ?
- पहले नम्बर पर तो तुम कभी हो ही नहीं सकते।
- वो हंसकर बोलता, कोशिश करने में क्या जाता है? मुझे हर हालत में एक नम्बर पर आना है।
- मैं तुम्हारे सबसे करीब आना चाहता हूं।
उस पल कितना आसान लगा था ये सब कहना। पर आज महसूस होता है कि ये बातें उसे कितनी कचोटी होगी। वो बिल्कुल पागल था। मेरी हर बात को हंसकर सह जाता। मेरा बहुत खयाल रखता। मेरे साथ वक्त बिताने के लिए कोशिश करता। कॉलेज में उसका अलग ही रुतबा था। हर गतिविधि, हर कार्यक्रम में वो आगे रहता। इस कारण शिक्षकों का प्रिय था तो स्टूडेंट्स में लोकप्रिय। कॉलेज का कोई भी कार्यक्रम उसके बिना अधूरा था। कहीं भी जाता, अपनी उपस्थिति दर्ज कराए बिना नहीं रहता। सबकी मदद करता था। बहुत सारी चीजों का नॉलेज था उसे। मेरे फार्म, किताबें, प्रेक्टिकल सारे काम उसके ही जिम्मे थे। बेहद ऊर्जावान था वो। उसे यह ऊर्जा मुझसे मिली है, ऐसा वो अक्सर कहता था। वो मेरे लिए क्या-क्या करता रहता। मुझे पता ही नहीं चलने देता। अच्छा-खासा कमाता भी था। मुझ पर खुद से ज्यादा भरोसा करता था। वो हमेशा मेरा अच्छा ही सोचता था। पर कह नहीं पाता था। मैं हमेशा उसे झिड़क देती थी। मैंने उससे बात नहीं करने के लिए अपने मोबाइल नम्बर भी बदल लिए। उफ!!! कैसा लगा होगा उसे। कितनी ठेस लगी होगी उसके दिल पर। मुझे आज भी याद है, जब एक रेस्टोरेंट में हम बैठे थे। तो कितने कठोर शब्दों में मैंने उसको नम्बर देने से मना कर दिया था। उसका दर्द चेहरे पर आ गया था। थोड़ा सा उदास और मुझे निहारती हुई उसकी आंखें। शायद, पलकें गीली हो गई थी।
फिर भी वो मुझसे दोस्ती बनाए रखना चाहता था। और मैं इसके बिल्कुल खिलाफ थी। जब वो मेरे पास आने की कोशिश करता, मैं उससे दूर चली जाती। उसे मेरी बैरूखी का सब पता था। फिर भी वो सब कुछ समझकर भी नासमझ बना रहता।
उस दिन भी वो मुझे मनाने ही मेरे करीब आया था। दीपावली की शुभकामना देने के बहाने से उसने बात शुरू की। और मैं उस पर बिफर पड़ी। 'तुम्हें एक बार में कही बात समझ में नहीं आती है क्या..? मुझे नहीं करनी बात तुमसे। फिर कहते हो तुमने इसके सामने बोल दिया, सबके सामने बोल दिया।' 30 अक्टूबर को क्लास में मैंने यह कहकर उसे सबके सामने अपमानित कर दिया था। वो अगले ही पल खामोश हो गया था। उसने अपनी गर्दन झुका ली थी, जैसे कि वो कोई गुनहगार हो। कुछ नहीं बोला था वो उस वक्त। उसने शायद कभी भी मेरे इस व्यवहार की उम्मीद नहीं की होगी। बेबस सी उसकी आंखें बस छलकने को तैयार थी। तीर की तरह मैंने अपने शब्दों से उसका दिल छलनी छलनी कर दिया था।
वो दिन और आज का दिन.....उसने कभी मुझसे बात नहीं की। न फोन, न एसएमएस। कभी ई-मेल भी नहीं किया। मेरी तरफ देखा तक नहीं। मैंने सॉरी भी नहीं बोला था उस वक्त। झूठ भी नहीं बोला गया था मुझसे। वो तो शायद इससे ही खुश हो जाता। ना जाने क्यूं मैं इतनी कठोर हो गई थी। उसे कैसा लगेगा, यह बात मैंने उस वक्त बिल्कुल नहीं सोची। पर, आज मन में एक हूक सी उठती है। जब उसके बारे में सोचती हूं, तो सिहर जाती हूं। चाहता तो वो भी मुझे उस पल कुछ बोल सकता था, पर वो मेरी खातिर अपना अपमान भी सह गया। पता नहीं मैंने उसे कितना दु:ख दे दिया। जबकि वो मेरी हर समस्या का समाधान था। हर मुश्किल का हल था। हर सवाल का जवाब था। उसके बाद मैंने उसे मनाने की बहुत कोशिश की। मगर, शायद मेरी कोशिश नाकाफी थी। मैंने एक ऐसी भूल की, जिसकी सजा भी उसने अपने ऊपर ले ली। उसने अपनी राह अलग कर ली, जो वह कभी नहीं चाहता था। वक्त बीतता गया। मुझे आज भी उसकी बहुत याद आती है। शायद उसे भी आती होगी या फिर यकीनन आती होगी। उसे मेरी बहुत परवाह जो थी। वो अक्सर मुझसे कहता था। 'इतनी नाराज मत होओ। देखना! एक दिन मैं तुम्हें छोड़कर चला जाऊंगा तो तुम बहुत रोओगी। पर, मैं वापस नहीं आऊंगा। वो वास्तव मैं चला गया। वो गया तो पता चला कि उसकी अहमियत क्या थी। वो मेरा कितना खयाल रखता था। वो मेरे लिए क्या था। यह मैंने अब जाना। पर, शायद अब बहुत देर हो चुकी है। आज जब वो मेरे साथ नहीं है, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे पहले नम्बर का दोस्त मेरे साथ नहीं है...।

Friday, May 20, 2011

उस दिन दुल्हन के लाल जोड़े में...

उस दिन दुल्हन के लाल जोड़े में,
उसे उसकी सहेलियों ने सजाया होगा।

मेरी जान के गोरे हाथों पर
सखियों ने मेहंदी  को लगाया होगा।

बहुत गहरा चढे़गा
मेहंदी
का रंग,
उस
मेहंदी
में उसने मेरा नाम छुपाया होगा।

रह-रह कर रो पड़ेगी वो,
जब-जब उसको ख़याल मेरा आया होगा।

खुद को देखगी जब आईने में,
तो अक्स उसको मेरा भी नज़र आया होगा।

लग रही होगी बला सी सुन्दर वो,
आज देख कर उसको चाँद भी शरमाया होगा।

आज मेरी जान ने
अपने माँ-बाप की इज़्ज़त को बचाया होगा।

उसने बेटी होने का
दोस्तों आज हर फ़र्ज़ निभाया होगा।

मजबूर होगी वो सबसे ज़्यादा,
न जाने किस तरह उसने खुद को समझाया होगा।

अपने हाथों से उसने
हमारे प्रेम के खतों को जलाया होगा।

खुद को मजबूत बना कर उसने
अपने दिल से मेरी यादों को मिटाया होगा।

टूट जाएगी जान मेरी,
जब उसकी माँ ने तस्वीर को टेबल से हटाया होगा।

हो जाएँगे लाल मेहन्दी वाले हाथ,
जब उन काँच के टुकड़ों को उसने उठाया होगा।

भूखी होगी वो जानता हूँ मैं,
कुछ ना उस पगली ने मेरे बगैर खाया होगा।

कैसे संभाला होगा खुद को,
जब उसे फेरों के लिए बुलाया होगा।

कांपता होगा जिस्म उसका,
हौले से पंडित ने हाथ उसका किसी और को पकड़ाया होगा।

में तो मजबूर हूँ पता है उसे,
आज खुद को भी बेबस सा उसने पाया होगा।

रो-रो के बुरा हाल हो जाएगा उसका,
जब वक़्त उसकी विदाई का आया होगा।

बड़े प्यार से मेरी जान को
मां-बाप ने डोली में बिठाया होगा।

रो पड़ेगी आत्मा भी
दिल भी चीखा और चिल्लाया होगा।


आज अपने माँ बाप के लिए
उसने गला अपनी खुशियों का दबाया होगा

रह ना पाएगी जुदा होकेर मुझसे
डर है की ज़हर चुपके से उसने खाया होगा।

डोली में बैठी इक ज़िंदा लाश को
चार कंधो पेर कहरों ने उठाया होगा।

Sunday, April 3, 2011

मैंने तेरे लिए...

मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने,
सपने, सुरीले सपने,
कुछ हंसी के, कुछ गम के,

तेरी आँखों के साये चुराए रसीली यादों ने,
मैंने तेरे लिए ही सात रंग के...


छोटी बातें,
छोटी-छोटी बातों की है यादें बनी,


भूले नहीं बीती हुई एक छोटी घडी,
जनम जनम से, आँखें बिछाए,
तेरे लिए इन राहों में, मैंने तेरे लिए...


भोले भाले,
भोले भाले दिल को बहलाते रहे,


तन्हाई में तेरे ख्यालों को सजाते रहे,
कभी कभी तो,
आवाज़ देकर, मुझको जगाया ख्वाबों ने,


मैंने तेरे लिए...


रूठी रातें,
रूठी हुई रातों को जगाया कभी,


तेरे लिए बीती सुबह को बुलाया कभी,


तेरे बिना भी,
तेरे लिए ही, दीये जलाये रातों में,
मैंने तेरे लिए...