Monday, February 20, 2012

....जब तुमने खुशियां भी किसी और से बांटी

सुबह से शाम तक तुम्हारी आवाज के लिए तरसता रहा। हमारी स्मृतियों के आईने में तुम्हारा होना खोजता रहा। उलट-पलट के उन बीत गए बेतरतीब पलों की कडिय़ां बनाने का प्रयत्न करता रहा। किन्तु हर नए क्षण यह खयाल हो आता की किस पल को कहां जोडूं। हर लम्हा जो तुम्हारे साथ बिताया है वो बेशकीमती है। तुम्हारी उजली हंसी की खनक कानों में रह-रह कर गूंजती रही। मन की रिक्तता को भरने का बहुत प्रयत्न किया, किन्तु तुम नहीं तो कुछ भी नहीं। तुम जब पास होती हो तो कुछ भी और पा लेने की तमन्ना बची नहीं रह जाती। तुम मेरे मन की आत्मा हो। जीवन में तुम्हारे सिवा मुझे और कुछ नहीं चाहिए। तुम हो तो सब कुछ है, नहीं तो कुछ भी नहीं। मगर तुम ऐसा नहीं सोचती। याद है मुझे, वो दिन जिसका हम दोनों बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। जिस दिन तुम्हारी परीक्षा का नतीजा आया था और तुम सफल हो गई थीं। पूरे ग्रुप में केवल तुम्हारा ही उसमें चयन हुआ था। बहतु बड़ा दिन था वो हमारे लिए। बहुत खुश था मैं। बहुत ज्यादा। मगर तुमने वो खुशियां भी किसी और से बांटी। और मुझे तरसता छोड़ दिया। तुम्हें एक बार भी खयाल नहीं आया कि मुझे कैसा लग रहा होगा। मैं तुम्हारे मैसेज के लिए भी तरसता रहा। देर रात तक करवटें बदलता रहा। मन उदासियों से भरा हुआ था। कई दफा मन को बहलाने का प्रयत्न करता रहा। किन्तु यह संभव ना हो सका। तुम्हारे बिना कुछ भी तो अच्छा नहीं लगता। ना गीत गुनगुनाना, ना कविता बुनना और ना ही किसी कहानी की तिकड़मबाज़ी करना। तुम बिन मेरी भाषा की पवित्रता बची नहीं रह जाती। दूर कहीं तुम न जाने सो रही होगी या जाग रही होंगी। पर मैं रोजाना सवेरे उठकर मैसेज देखता। ई-मेल चेक करता कि शायद तुमने कुछ भेजा होगा। मगर हर बार मुझे निराशा ही हाथ लगी। भावनाओं के समुद्र से तैरकर बाहर आने का मैंने लाख प्रयत्न किया किन्तु हर बार ही और ज्यादा डूबता चला गया। कई दफा मैंने इसके परे भी जाने का प्रयत्न किया और जानना चाहा कि क्या तुम वाकई बदल गई हो..? क्या तुम्हें अब मेरी याद नहीं आती..? क्या तुम्हें अब मेरी बिल्कुल याद नहीं आती। और मैं हर बार दिल को दिलासा देता रहता कि- नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। तुम भी मुझे याद करती हो। बहुत याद करती हो। बस जताती नहीं हो। जिस दिन मुझे पता चलेगा कि मैं दिल को झूठा दिलासा दिला रहा हूं, उस दिन शायद मैं जी नहीं पाऊंगा। मुझे इस सच्चाई को स्वीकारने में अभी वक्त लगेगा कि तुमने अपनी जिन्दगी से मुझको दूर कर दिया है। तुमने वो दरवाजा बंद कर लिया है, जो तुमको मुझसे जोड़ता था। तुम्हारी बेरुखी के चलते कई दफा मर जाने का खय़ाल भी आया और मैंने उसे चले जाने दिया। याद हो आया कि कभी तुम अकेली पड़ गई तो कौन तुम्हारा साथ देगा। यकीन रखना, तुमने भले ही दरवाजा बंद किया हो पर मैंने नहीं। तुम्हारे लिए उस दरवाजे की कुंडी मेरी साइड से हमेशा खुली ही रहेगी। कभी-न-कभी जब तुम वो दरवाजा खोलोगी तो मुझे मुस्कुराता हुआ पाओगी।