Sunday, January 22, 2012

मैं आज भी तुम्हें महसूस करता हूं...

तुम साथ थी मेरे, तुम पास थी मेरे.
वो जि़न्दगी का एक दिन था,
या एक दिन की जि़न्दगी..
मेरी जि़न्दगी,
एक लम्बा अरसा हो गया, तुम्हारे बारे में लिखे हुए। पर पता नहीं क्यूं, आज तुम्हारे बारे में लिखने को मन कर रहा है। कहां से शुरू करूं ? क्या लिखूं ? एहसास, दर्द, खुशी, उन पलों की यादें, मुलाकातें, मुस्कुराहटें, भीगी पलकें, मिलन की खुशी या तुम्हें दूर जाते देखकर, दिल के टूटने की आवाजें। बहुत सारी बातें करनी है तुमसे। संयोग से आज भी 30 जुलाई है। वही दिन, जिसने मुझे खुशियों की सौगात दी। जिसकी यादें आज भी मेरी झोली खुशियों से भर देती है। शाम को उधर से गुजरा था मैं, जहां हम पहली बार मिले थे। ना जाने क्यों कदम लडखड़ा से गए थे मेरे। ना चाहते हुए भी एक पल को थम सा गया था मैं। तुम्हारी याद कहीं मुझको रुला ना दे। ये सोचकर जल्दी से वहां से निकल जाना चाहता था। पर सच, खुद को रोक ना सका। ना जाने क्यूं भागते कदम एकदम से रुक गए। मैं वहीं पर बैठ गया। पता था मुझे, तुम नहीं आओगी। फिर भी हर साल की तरह तुम्हारा इंतजार किया। तुम्हारे बारे में सोचते-सोचते कब पलकें गीली हो गई, पता ही नहीं चला। कब मेरी आंखें झरने की तरह बहने लगी, मुझे इसका एहसास ही नहीं हुआ। रह-रहकर मुझे तुम्हारी सारी बातें याद आने लगी। मेरा दिल फिर पुरानी बातों में खो गया। सच में, कितनी प्यारी थी तुम। वो घण्टों तक चलने वाली ढेर सारी बातें, झगड़े, रूठना-मनाना। याद तो होगा तुम्हें भी। तन्हाई में एक यह यादें ही तो है, जो हरदम मेरे साथ ऱहती है। तुम्हारे साथ बिताया हर लम्हा मेरे ख्यालों में और मेरी यादों में बस गया है।
   याद तो होगा तुम्हें भी, कॉलेज के वो आखिरी दिन। कितने दूर-दूर रहते थे हम। वो बेशकीमती लम्हे हमने बेवजह की नाराजगी में बिता दिए थे। उन दिनों हम साथ होते तो शायद हमारी परेशानियां आधी और खुशियां दोगुनी हो जाती। उन दिनों पराए लोगों को हमने अपना मान लिया था। मुझे आज भी याद है। उन आखिरी दिनों में कितना कुछ था मेरे पास, तुम्हें कहने के लिए। जीवन के उस मोड़ पर खड़ा मैं, शायद तुम्हें देखकर खुश नहीं था। हमारी राहें यहां से अलग जो थीं। एक दर्द, जिसको बयां करना मुश्किल था मेरे लिए। एक टीस थी, बेबसी की। आज मुस्कुराहट जरूर थी, पर रौनक गायब थी। बातें वैसी ही ताजा, पर मुरझाई सी थी। अपनी नजरों को इधर-उधर करके कुछ बयां करना चाहता था मैं। जिसे तुम महसूस करके भी महसूस नहीं कर रही थी। खुद से संघर्ष कर लिया था मैंने, कुछ न कहने का। इस पल को जीना आसान न था मेरे लिए। मुझे उम्मीद थी कि शायद तुम वो सब कह दोगी, जो मैं हमेंशा से सुनना चाहता था। लेकिन तुम बिना कुछ कहे चली गई थीं। मुझे अकेला छोड़कर। मुझे तो बताना भी जरूरी नहीं समझा था तुमने। मैं आज भी अकेला हूं। तुम्हारी यादें मेरे साथ है। शायद इसी वजह से तुमसे बिछड़कर भी मैं जी रहा हूं। तुम्हारी दी हुई चीजें मेरे पास महफूज है। मेरे जन्मदिन पर तुम्हारा दिया हुआ ग्रीटिंग्स कार्ड मैंने आज भी संभाल कर रखा है। पता नहीं क्यों, अब वो बहुत कीमती हो गया है और सच में, उसकी कीमत बढ़ती ही जा रही है। जब दिल भर आता है, तो उसे निकाल-निकालकर देखता हूं। तुम्हारे चले जाने के बाद खुशियों ने भी मुझसे मुंह मोड़ लिया। अब मुझसे कोई नहीं रूठता और मैं किसी को नहीं मनाता। डायरी लिखना भी मैंने लगभग बंद सा ही कर दिया। तुम्हारे चले जाने के साथ ही वो सब जाता रहा, जो मुझे सुकून देता था। वो हंसी, वो मुस्कुराहट, वो गज़लें सब कुछ जैसे खत्म सा हो गया है।
 इन बीते लम्हों को छलांग लगाकर पार कर एक बार फिर से वही सब जीने का मन करता है। जब तुम मुझे रोजाना सुबह उठाती थी। सुबह-सुबह तुम्हारा मिस कॉल और गुड मॉर्निंग मैसेज देखता तो अनायास ही चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती थी और मेरा पूरा दिन अच्छा गुजरता था। कुछ बुरा होता भी था, तो मुझे बुरा नहीं लगता था। शायद वो मेरी जिन्दगी के सबसे अच्छे दिन थे। तब मेरे पांव जमीं पर नहीं पड़ते थे। तुम्हारें खयालों में मैं बेवजह सड़कों पर बाइक घुमाता रहता था। उन दिनों की खुशबू आज भी मेरी सांसों में बसी हुई है। वो मुस्कुराहट जो तुम्हारे चेहरे पर खिला करती थी, उस मुस्कुराहट को हरदम तुम्हारे चेहरे पर सजाने का मन करता है।

    याद है तुम्हें, जब तुमने मुझे कहा था कि जब तुम्हारी शादी हो जाएगी, तब भी तुम मुझे मिस कॉल करोगी पर तुम्हारे जाने के बाद कभी मिस कॉल नहीं आया। तुम्हें पता होगा, मैंने अपने फोन में तुम्हारे नम्बर पर एक स्पेशल रिंगटोन सेट कर रखी थी। जो सिर्फ तुम्हारा फोन आने पर बजती थी। जब तुम नाराज होती और तुम्हारा फोन नहीं आता तो मैं यूं ही उसे बजाया करता था। मैं अपने दिल को झूठी तसल्ली देता था कि तुम्हारा फोन आ रहा है। तुम्हारा फोन आए अरसा गुजर गया। मैंने अपने फोन में अपने दूसरे मोबाइल के नम्बर तुम्हारे नाम से सेव कर रखे हैं। फिर में अपने मोबाइल पर कॉल करता हूं, तो सच में तुम्हारा नाम देखकर बड़ा अच्छा लगता है। मैं बस अपने दिल को झूठा दिलासा दिला रहा हूं। याद है मुझे, जब तुमने मुझे कहा था कि मैं जल्दी ही अपने नम्बर बदलने वाली हूं। तुम्हें वो नम्बर बिल्कुल नहीं दूंगी। मुझे लगा, तुम मजाक कर रही हो। पर, वो सच था। जो तुमने काफी पहले मुझे बता दिया था। ऑरकुट पर तो तुमने मुझे पहले ही डिलीट कर दिया था। शायद, अब तो वो टेस्टीमोनियल्स भी हटा दिया होगा। मेल तो तुम कभी करती ही नहीं थी। संचार के सभी साधन मौजूद होते हुए भी हम इतने दूर कैसे हो गए, दिल को कुछ पता ही नहीं चला। भूला नहीं हूं मैं तुम्हारी शादी का दिन। तुमने मुझे इससे अनजान रखने की कोशिश की थी। तुम अपनी जगह सही थी। पर मै भी क्या करता। उन दिनों मेरे दिल का हाल जानने वाला कोई नहीं था। तुम्हारे लिए बड़े प्यार से खरीदा हुआ गिफ्ट भी मेरे पास ही रह गया। कहां चली गईं तुम..? बिना बताए...! तुमने जाने से पहले एक बार भी नहीं सोचा कि जो इंसान तुमसे बात किए बिना एक दिन भी नहीं रहता, वो भला सारी जिन्दगी कैसे रहेगा। एक पल के लिए भी नहीं सोचा तुमनें। बस चलीं गईं...।
    आज मेरे पास कहने को बहुत कुछ हैं, पर वो मुस्कुराती हुई आंखें नहीं है। जिन्हें देखकर मैं खुश होता था। मैं कहना चाहता हूं कि -मैं आज भी तुम्हें बहुत याद करता हूं। तुम मुझे बहुत अच्छी लगती थी, जब तुम हंसती थी। तुम्हारी हंसी मेरे दिल पर असर करती थी और हर बार मैं यही ख्वाहिश पैदा करता था कि तुम यूं ही जिन्दगी भर हंसती रहो। मैं कहना चाहता हूं कि जब तुम बच्चों की तरह हरकतें करती थी, तो तुम पर बहुत प्यार आता था। तुम्हारे मिर्ची बड़े खाने की आदत मुझे बहुत पसन्द थी। मैं कहना चाहता हूं कि मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता था। हमेंशा करता रहूंगा। तुम्हारी याद मुझे हंसा जाती है और फिर न जाने क्यूं रोने को मन करता है। न चाहते हुए भी मेरी आंखो से आंसू छलक जाते हैं। अक्सर तुम्हारे कंधे पर सर रखकर रोने का मन करता है। आज भी जब मैं भीड़ भरी दुनिया में अपने आप को अकेला महसूस करता हूं तो उसी कॉलेज में जाकर बैठ जाता हूं। जहां हम मिलते थे। पर अब तो यह जगह भी मुझे मेरी जिन्दगी की तरह बेरंग, बेजान और बेमतलब सी जान पड़ती है। मैं आज भी हर फ्राइडे को छुट्टी के दिन नेट कॉर्नर के पास वाली ज्यूस की दुकान पर जाकर बैठ जाता हूं, इस उम्मीद में कि शायद आज तुम नेट कॉर्नर आई होंगी। जब तुम यहां से गुजरोगी तो मैं तुम्हें एक नजर देख लूंगा। मगर अब तुम यहां भी नहीं आती। तुम्हारे बारे में सोचते-सोचते वहीं पर मेरी शाम गुजर जाती है। तुम्हें देखने की हसरत लिए कई बुधवार मैं गणेश मंदिर भी गया। पर भगवान के दर से भी मुझे तुम्हारी जगह मायूसी ही मिली। तुम अब मेरे खयालों के सिवाय कहीं नहीं आती। मेरे ई-मेल का पासवर्ड आज भी तुम्हारे नाम पर है। :)  तुम्हारे मैसेज मैं अब भी रोजाना सोने से पहले उसी तरह पढ़ता हूं। 1011 मैसेज है मेरे पास। जो तुमने मुझे भेजे थे। एक लम्बा अरसा गुजरने के बाद भी वो मैसेज मुझे ताजा लगते हैं। हर बार कुछ नया लगता है। शायद वो तुम्हारा एहसास ही होगा, जो कभी पुराना नहीं होता। तुम्हारे वो फोटो, जो तुमने मुझे दिए थे। महफूज है मेरे पास। ठीक तुम्हारी यादों की तरह। मैं आज भी उन्हें घण्टों निहारता हूं। उन्हें देखते-देखते पलकें गीली हो जाती है। याद है मुझे, एक बार जब तुम रो पड़ी थी। किसी के कमेंट्स के कारण। उस पल तुम्हारी आंखों के आंसू महसूस किए थे मैंने। आंसुओं से भीगा, तुम्हारा वो चेहरा आज भी भूला नहीं हूं मैं। उस पल कितना मुश्किल हो गया था तुम्हें मनाना और तुम यह कहने लगी थी कि अब मुझे यहां नहीं पढऩा। मैं यहां दुबारा कभी नहीं आऊंगी। उस पल तुमने मुझे भी रुला सा ही दिया था। कितनी मुश्किल से कॉलेज में मैंने तुम्हें मनाया था। तुम्हारे साथ बिताए लम्हे मुझे जब-तब याद आ ही जाते हैं। वो यादें रोज-रोज आकर मेरा दरवाजा खटखटाती है। हर रोज मैं उन्हें साथ लेकर घर से निकलता हूं और देर रात, फिर से एक नई याद जेहन में आ जाती है। तुम नहीं तो कुछ नहीं। तुम्हारे बिना जिन्दगी वीरान है। अब न कोई सवाल है और न किसी जवाब का इंतजार। तुम न जाने कहां होंगी। मेरे पास तो अब तुम्हारा खयाल ही है।
       अब भी मैं रोजाना उठने पर सबसे पहले फोन ही देखता हूं कि कहीं तुम्हारा मैसेज या मिस कॉल आया होगा। कभी शायद तुम मुझसे पूछ लो कि मैं कैसा हूं। तो मैं कह सकूं कि मैं आज भी तुम्हारी सांसों को महसूस करता हूं। मेरे खयालों में सिर्फ तुम ही बसती हो। मगर तुम अब नहीं पूछतीं। अब तुम्हारी यादें ही मेरे जीने का सबब है। हालांकि तुमने तो मुझे अपनी यादें देने से भी इनकार कर दिया था। शायद, इसीलिए तुम कभी मेरे साथ नहीं गई। तुम्हारे साथ एक शाम कॉफी पीने की ख्वाहिश भी अधूरी रह गई। तुम कभी मेरे घर भी नहीं आई। सारे अरमान, सारी हसरतें तुम अधूरी छोड़कर चली गईं। मेरे लाख कहने पर भी तुमने मुझे वो तस्वीरें नहीं दी, जो मुझे बेहद पसन्द थी। नहीं-नहीं, मुझे कोई गिला नहीं है तुमसे। गिला हो भी कैसे सकता है भला। तुम और तुम्हारी वो मजबूरियां। तुमने जो किया, ठीक किया। '.....इज ऑलवेज राइट'  अक्सर मैं यही तो कहता था। हमारा जब भी झगड़ा होता था तो मैं ही हमेंशा हारता था। क्योंकि मैं यह दिल से मानता था कि तुम सही हो। आज तुम बहुत आगे निकल गई और मैं वहीं खड़ा रह गया। मुझे इस बात का दु:ख नहीं कि तुमने मुझसे प्यार नहीं किया। मुझे अफसोस इस बात का है कि तुमने कभी मेरे प्यार को महसूस करने की कोशिश भी नहीं की। अगर की होती तो तुम्हारी यादों में बसी मेरी तस्वीर कभी इतनी धुंधली ना होती। दोस्त तो मानती थी तुम मुझे। हर बात बताती थी मुझे। फिर हमारी दोस्ती में ये अनचाहे फासले कहां से आ गए। तुम्हीं ने तो मुझे हंसना सिखाया था। फिर रुला क्यों दिया।
    जिन्दगी ने दुबारा मौका दिया तो हम कहीं न कहीं जरूर मिलेंगे। तुम्हारे साथ एक शाम काफी पीने की ख्वाहिश, जो अधूरी रह गई थी, तुम उसे पूरा करने जरूर आओगी। आज हम अपने-अपने रास्तों पर चल रहे हैं। क्या कभी ऐसा होगा कि गली के किसी मोड़ पर हम फिर टकरा जाएं। सच, कितना सुखद होगा वो मोड़। बिल्कुल अपना सा। तब दिल करेगा उस मोड़ पर चन्द पल सुस्ता लें। ढेर सारी बातें करें। तुम्हारे सारे किस्से सुनूंगा मैं। तब कितना सुकून मिलेगा मेरे दिल को। शायद तुम इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकती। कहने को तो तुमसे बिछड़े हुए एक साल ही हुआ है, पर यूं लगता है जैसे सदियां गुजर गई। मैं आज भी तुम्हारे एहसास को महसूस करता हूं। मुझे लगता है कि तुम यहीं कहीं हो मेरे पास। अचानक से कोई हंसी गूंजती है मेरे कानों में। क्या वो तुम्हारी ही है ? क्या तुम आज भी खुश हो ? क्या तुम भी मुझे कभी याद करती हो ? तुम खुश हो अगर तो मैं जी लूंगा। यूं हीं इस कदर तुम्हारी यादों के सहारे। कभी फुर्सत मिले, तो अपनी जिन्दगी की डायरी के पन्ने पलटना। शायद मैं भी तुम्हें याद आ जाऊं। मुझे तो बस उसी दिन का इंतजार है। अब और नहीं लिखा जाता। पलकें गीली हो गई है। अपनी यादों से कहो, कुछ देर के लिए मुझे अकेला छोड़ दे। थोड़ी देर रोने का मन कर रहा है।
तुमसे बस यही कहना है....
तुम जाओ और
दरिया-दरिया प्यास बुझाओ,
जिन आंखों में डूबो,
जिस दिल में भी उतरो
मेरी तलब आवाज न देगी।
लेकिन जब मेरी चाहत
और मेरी ख्वाहिश की लौ
इतनी तेज और ऊंची हो जाए।
जब दिल रो दे
तब लौट आना.....।
-तुम्हारा अपना - तुम बिन अधूरा...

उससे कहो, मेरा शहर ना छोड़े !!!

'वो मुझसे खफा रहे, मंजूर है मुझे
पर उससे कहो,
मेरा शहर ना छोड़े..' याद है मुझे। उस दिन जब तुम्हें साथ लेकर रेल प्लेटफोर्म को छोड़कर जा रही थी। तो उसके बाद मुझे उदासियों ने आ घेरा। और फिर हर पल लगने लगा कि तुम मुझसे दूर....बहुत दूर......चली जा रही हो। यूं लग रहा था जैसे बच्चे के हाथ से उसकी पसंदीदा वस्तु छीनी जा रही हो। मैं बच्चे की तरह ही जिद करके तुम्हें अपने पास अपनी बाहों में रखना चाहता था। ट्रेन के पीछे दौडऩा चाहता था। तुम्हें जोर से पुकारना चाहता था। पर ऐसा हो ना सका। एक अरसे बाद तुम मेरी यादों में.....मेरे शहर में आई थी। थोड़ा सा झगड़ा और ढेर सारी बातें करनी थी तुमसे तुम्हारा पोट्रेट जो मैंने बनवाया था तुम्हारे लिए। उसके लिए फ्रेम भी  लेकर आया था मैं। पर सारी ख्वाहिशों को अधूरा छोड़कर तुम चलीं गई थी। मुझसे बिना मिले। मुझसे बिना बात किए। और मैं बच्चे की तरह सहम सा गया था। तुम्हारे बगैर। किसी ने वापस बहलाया ही नहीं मुझे। हालांकि हम एक ही शहर में होते हुए भी रोज़ कहाँ मिल पाते थे। किन्तु फिर भी एक सुकून मिलता था कि चलो कोई तो अपना भी इस शहर में है। चेहरे पर हरदम रहने वाली मुस्कुराहट एकदम से उदासी में बदल गई थी। ना जाने यह कैसा सिलसिला है, जो थमता ही नहीं. शाम बीती और फिर रात भर दम साधे तुम्हारी आवाज़ की प्रतीक्षा करता रहा। छत पर खड़ा होकर तुम्हारे घर की तरफ देखता रहा। उन बेहद निजी पलों में कई खय़ाल आए और चले गए। 
सच में, तुम्हारी बहुत याद आई. 
पलकें गीली हो गई थी। मैंने आंसू नहीं पौंछे। बस उनको बह जाने दिया। :( सुबह बेहद वीरान और उदासियों से भरी हुई सामने आ खड़ी हुई. मन किया कि कहीं भाग जाऊं, कहाँ ? स्वंय भी नहीं जानता। जिस एकांत में तुम्हारी खुशबू घुली हुई हो और मैं पीछे छूट गयी तुम्हारी परछाइयों से लिपट कर स्वंय को जिंदा रख सकूँ। उस किसी एकांत की चाहना दिल में घर करने लगी है। उस वक्त भी तुम्हारी बहुत याद आई। सच में तुम्हारी सादगी के भोलेपन पर अपनी जिंदगी लुटा देने को मन करता है। तुम्हारे साथ का हर लम्हा मुझे तुम्हारे पास होने का एहसास दिलाता है। मेरी उदासियों के साए में उन जगमगाते रौशन कतरों को शामिल कर दो। मैं भी तुम्हारे पीछे इन दिनों को जी सकूँ। नहीं तो सच में, तुम बिन मर जाने को जी चाहता है। तुम मेरे वजूद में इस कदर शामिल हो जैसे तुम्हारे बिना मैं कोई सूखी नदी हूँ।