Wednesday, November 23, 2011

कभी तो याद आती होगी ना...!

हालांकि तुमसे मिलना मेरे लिए अविस्मरणीय होता है, फिर भी अब इसकी इच्छा नहीं होती। जानता हूं, तुम भी मुझसे मिलकर खुश नहीं होंगी और तुम्हें देखकर मुझे शायद ही अब कोई सुखद अनुभूति होगी। मैं उन यादों को नया नहीं करना चाहता। मुझे उन पुरानी यादों से ही लगाव है। फिर भी अगर तुम्हें कहीं सुकून बहता दिखे, तो एक कतरा मेरे लिए भी सुरक्षित रखना। शायद कभी किसी मोड़ पर यूं ही हमारी मुलाकात हो जाए। बीते हुए दिनों के अंधेरे जंगल से निकल, उजले वर्तमान का सुख, सुकून नहीं देता। वो बंद पुराने बक्से में पड़ी जजर्र डायरी के सफहों में सुरक्षित अवश्य होगा। उसे छुआ जा सकता है, किन्तु पाया नहीं जा सकता। वक्त-बेवक्त सूखी स्याही को आँसुओं से गीला करना दिल को तसल्ली देना भर है। इससे ज्यादा और कुछ नहीं।
तुम भी दो सौ गज की छत पर कपड़ों को सुखाकर, कौन सा सुकून हासिल कर लेती होगी। रात के अँधेरे में, बिस्तर की सलवटों के मध्य, थकी साँसों के अंत में क्षणिक सुख मिल सकता है। सुकून फिर भी कहीं नहीं दिखता। और फिर ये जान लेना कि मन को लम्बे समय तक बहलाया नहीं जा सकता। बीते वक्त के सुखद लम्हों में तड़प की मात्रा ही बढ़ाता है। जानता हूँ उस पछताने से हासिल कुछ भी नहीं।
एटीएम और क्रेडिट कार्ड पर खड़े समाज में ठहाकों के मध्य मेरी तरह कभी तो तुम्हारा दिल भी रोने को करता होगा। दिखावे के इस संसार में क्या तुम्हारा भी मेरी तरह दम नहीं घुटता होगा। घर-परिवार की जिम्मेदारियों के बीच कभी तो तुम्हें वो बेफिक्री वाले दिन और बचपना याद आता होगा। चमकती सड़कों और कीमती कपड़ों के मध्य कभी तो तुम्हें अपना गांव याद आता होगा। रंगीन शामों के बीच कभी तो दिल करता होगा उसी पुरानी कॉलेज में, एक अलसाई दोपहर बिताने के लिए। कभी तो उस क्लासरूम की याद आती होगी ना। कभी तो स्मृतियों में मेरा उदास चेहरा आकर बैचेन करता होगा। मेरी भीगी हुई आंखों को देखकर कभी तो तुम्हारी भी पलकें नम हुई होंगी ना। कभी तो हमारा रूठना-मनाना याद आता होगा। कभी तो कॉलेज से जाने वाली उस सिटी बस की याद आती होगी। चमकते रेस्त्रां में खाने के बीच कभी तो तुम्हें कॉलेज के सामने वाली दुकान पर मिर्चीबड़ा खाने का मन करता होता होगा। मेरी तरह तुम्हारा भी दिल कभी तो उन पुरानी गलियों में खोता होगा ना। कभी तो...। है ना...।

अनजाने शख्स का साथ...!

कभी-कभी मीठी सी यादें हमारे जेहन में अलग ही छाप छोड़कर चली जाती है। खासकर ऐसे अनजाने शख्स का साथ, जिसके बारे में ना आपने सोचा हो और ना ही सोच सकते हो। कभी-कभी कुछ बातें दबे पांव आती है और अपनी मिठास छोड़कर भाप की तरह उड़ जाती है, बादलों की सैर को। शायद, उन्हें कहीं और बरसना हो, रुमानी अहसास बनकर।
ऐसी ही एक खूबसूरत सी सुबह को मैं मुम्बई रेलवे स्टेशन के वेटिंग हॉल में जाया कर रहा था। मेरी ट्रेन आने में अभी थोड़ा वक्त था। और मेरे पास ले-देकर एक मैग्जीन-अहा जिन्दगी! जिसे मैं पूरी पढ़ चुका था। कुर्सी पर बैठा मैं बार-बार अपनी घड़ी की तरफ देख रहा था। या फिर अपने आस-पास बैठे यात्रियों को। जिनमें से ज्यादातर स्टूडेंट्स थे। वो भी शायद कहीं एजुकेशनल टूर से आए थे। मेरे पास ही एक लड़की अपने लैपटॉप पर काम कर रही थी। मैंने एक नजर उसको देखा। उसने भी मुझे देखा। एक पल के लिए हमारी नजरें मिली और दूजे ही पल हम दोनों ने एक-दूसरे से नजरें चुरा ली। न जाने क्यूं...। अब मैं बार-बार कांच की खिड़की से वहां झांक रहा था। जहां से ये पता चल सके कि जोधपुर को जाने वाली ट्रेन कौन-से प्लेटफॉर्म पर आने वाली है। शायद उस लड़की की निगाह भी बार-बार वही चीज देख रही थी, जो मैं देख रहा था। इस बार वो मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा दी। जवाब में मैं भी मुस्कुराए बिना नहीं रह सका। यूं लगा जैसे, बिना कुछ कहे, बिना जाने एक अनकही दोस्ती की शुरुआत हो गई।
तभी रेलवे स्टेशन पर मीठी सी आवाज सुनाई दी- अहमदाबाद के रास्ते जोधपुर को जाने वाली सूर्यनगरी एक्सप्रेस प्लेटफॉर्म नम्बर तीन पर आने वाली है। यह सुनते ही मैंने अपने आप को व्यवस्थित किया। मेरे पास सामान ज्यादा था। मैं एक बार में नहीं ले जा सकता था। मैंने आधा सामान उठाया और उसको इशारे में कहा कि मेरे सामान का ध्यान रखना। अब मैं अपने बैग को कंधे पर लादे जल्दी से सीढिय़ों से उतरता गया। पर क्या है कि मां का प्यार बैग में कूट-कूटकर भरा था, तो बैग मेरे कंधे पर जोर-आजमाइश कर रहा था। सीढिय़ों से उतरकर मैं अपने प्लेटफॉर्म पर पहुंचा। उफ..! कितनी लम्बी ट्रेन। एस-8, (जहां हमारी सीट थी) पहुंचते-पहुंचते पसीना सा आ गया। सामान रखकर मैं वापस दौड़ा। वेटिंग हॉल से बाकी का सामान लाने के लिए। तभी देखा कि मेरी मैडम और मेरी एक दोस्त भी पहुंच चुकी है। अब वो लड़की भी अपना सामान उठा रही थी। मैंने अपना सामान उठाया तो मैडम बोली, ये भी अपने साथ ही ट्रेन में चल रही है। मैंने तुरंत अधिकार भाव जताते हुए कहा- जल्दी आओ, ट्रेन रवाना होने वाली है। अब हम दोनों साथ-साथ चल रहे थे। मैं दो बैग और ट्रॉली को लगभग खींचते हुए चल रहा था। वो भी इसी हालत में। इस बीच हमारी बातचीत शुरू हो गई।

उसने पूछा - ट्रेन में कितना वक्त है ?
- यही 15-20 मिनिट। मैंने कहा।
- क्यूं कोई काम है ?
- हां, खाना खाना था। यहां कैंटीन है ना।
- मैंने कहा, खाना तो मुझे भी खाना है। एक बार हम सामान रख लेते हैं, फिर हम दोनों वापस खाना खाने आ जाएंगे। उसने जवाब में बस सिर हिला दिया।
- तो क्या करती हैं आप ? अब सवाल पूछने की बारी मेरी थी।
- मैं इंजीनियर हूं।
- ओ..हो...इतनी कम उम्र में इंजीनियर। मुझे लगा आप स्टूडेंट्स हो।
- वो हंसने लगी। जो मैं चाहता था। ताकि बोझ से लदी होने के कारण उसे थकान महसूस नहीं हो।
- उसने कहां- हां, अभी इस साल जॉब मिली है।
- कोनसी कम्पनी में ?
- वेदांता ग्रप में।
- अरे वाह। काफी बड़ी कम्पनी है। तो अभी आप कहां से आ रही हैं।
- गौवा से...
- वाऊ...मैंने होले से कहा।
- वो मुस्कुरा भर दी। शायद उसने सुन लिया था।
- मैंने कहा, आप मुस्कुराई क्यों ?
- बोली-आपका अंदाज बड़ा अच्छा लगा।
- चलो कुछ तो अच्छा लगा। वो फिर मुस्कुरा दी।
- कहां तक जाएंगी आप ?
- जी..अहमदाबाद। अहमदाबाद मेरा घर है। गौवा में मेरी जॉब है।
- गुड...वेरी गुड... कौनसे डिब्बे में सीट है आपकी ?
- उसने जवाब में मुझे टिकट ही दे दी।
- एस-6 में 30 नम्बर पर आपकी सीट है। हमारी एस-8 में है। मैंने टिकट देखते हुए कहा।
- आप कहां से आ रहे हैं..? यह पहला सवाल था उसका।
- हम तिरुपति से आ रहे हैं। नेशनल यूथ फेस्टिवल में गए थे। हम डिबेट कॉम्पिटिशन जीतकर आए हैं। अब हम जयपुर जा रहे हैं। मेने एक साथ सारी जानकारी दे दी।
- उसने मुस्कुरा कर कहा- कोंग्रेश्च्यूलेशन्श।
- जी, थैंक यू।
इतने में ही हम प्लेटफॉम पहुंच गए। मैंने कहा आप एस-6 पहुंचो या फिर यहीं रुक जाओ। मैं अपना सामान रखकर वापस आता हूं। मैं अपना सामान रखकर वापस आया तो देखा वो लड़की वहां नहीं थी। मैं इधर-उधर उसे ढूंढने लगा पर वो नहीं मिली। इतने में ही ट्रेन रवाना हो गई। मगर मेरी नजरे वहीं पर उसे तलाश कर रही थी। ट्रेन गति पकडऩे लगी थी और मैं ट्रेन के साथ दौड़ते-दौड़ते एस-6 में चढ़ गया। मैं उस लड़की की सीट पर पहुंचा तो देखा कि वहां कोई नहीं था। मैं तुरंत वापस मुड़ा और गेट पर खड़ा होकर ट्रेन की रफ्तार में पीछे छूटते प्लेटफॉर्म पर उसे तलाशने लगा। एक अजनबी के लिए मैं इतना बैचेन क्यूं हो रहा था, पता नहीं। पर वो नहीं दिखी। और मैं वापस उसकी सीट के पास जाकर खड़ा हो गया। इतने में ही वो अपना सामान उठाए आती दिखाई दी। मैं दौड़कर गया, अरे कहां चली गई थी तुम ? तुम्हारी सीट पर तो कोई नहीं था। वो बोली- मुझे पता नहीं था। मैं पिछले डिब्बे में किसी और की सीट पर बैठ गई थी। उसने मुझे उठा दिया। उससे मासूमियत से जवाब दिया। उसका बिल्कुल बच्चों का सा चेहरा देखकर न जाने क्यूं अजीब सा लगा। मैंने कहा - छोड़ो, अब यहां बैठो। वो अपना बैग ऊपर की बर्थ पर रखने का जतन करने लगी। लम्बाई कम होने से वो नहीं रख पा रही थी। मैंने खड़े होकर वो ऊपर रख दिया। थैंक्स। उसने कहा। नहीं, इसकी जरूरत नहीं है। जवाब में वो बस मुस्कुरा दी। फिर वो अपना सूटकेस नीचे सीट के बांधने लग गई और मैं उसके सामने की सीट पर बैठ गया। हमारे आस-पास की सारी सीटें खाली ही थी। केवल साइड की सीट पर एक महिला सो रही थी। उसने पानी की बोतल बैग से निकाल ली और पानी के दो घूंट से अपने नर्म गुलाबी होठों को भिगो लिया। उस पल उसका चेहरा ठीक से देखा मैंने। उसके चहरे की एक ख़ास बात थी। सबसे ख़ास। उसकी आंखें। बड़ी बड़ी और बेहद खूबसूरत। जो उसे खूबसूरत कहने पर मुझे मजबूर कर रही थी। मेरी एकटक नजऱ के कारण उसने मेरी ओर देखा। मेरा ध्यान टूटा। मैंने अपनी नजऱें उसकी उन आंखों से हटा ली। सामने सिक्कों की खनखनाहट सुनाई दे रही थी । देखा तो एक बूढी औरत अपने कटोरे में सिक्कों को बजाती हुई वहां से सरकती हुई जा रही थी। उससे चला नही जाता था। वो किसी से कुछ मांग नही रही थी। मेरा हाथ पेंट की जेब से उस कटोरे में जाता है। एक आवाज़ होती है सिक्के के गिरने की। फिर में खिड़की से बाहर झांकने लगता हूं। कुछ देर बाद हमारी बातचीत शुरू हो जाती है।
    मैं तो बहुत बोर हो गयी। सफर कैसे कटेगा ? मैंने कहा बहुत आसान है वक्त बिताना और पता भी नहीं चलेगा। उत्साहित होकर बोली वो कैसे ? मैंने कहा कि एक खेल खेलते हैं। बोली-कौन सा खेल ? मैंने कहा सवाल-जवाब...वो हँस पड़ी ...ये भी कोई गेम है ....मैंने कहा बहुत सही गेम है .....और ये और भी रोचक हो जाता है, जब हम दोनों अनजान हैं .....कुछ नहीं जानते एक दूसरे के बारे में .......और हाँ इसका नियम है कि पूछे हुए सवाल का जवाब देना ही होगा और जो भी दिल करे उसका जवाब देने का वो दे ....जिसे हम डर की वजह से दूसरों को नहीं दे सकते .......और ये नियम हम खुद निभाएंगे .....इसमें कोई चीटिंग नहीं ......वो उत्साहित होकर बोली वाह मज़ा आएगा ...... हाँ बिल्कुल ...... और शुरुआत करते हैं ....10 सवालों से .....पहले एक पूछेगा और दूसरा जवाब देगा ....और उसी तरह फिर दूसरे की बारी आएगी .....वो बोली ठीक है। लेकिन पहले मैं पूछूंगी....मैंने मुस्कुराते हुए कहा ....हाँ जी आप ही पूछिये।
- आज आप यहां मेरे साथ बैठे हुए क्या सोच रहे हैं ?
मैंने गला साफ़ करने की आदत दोहरायी .....तभी वो मुस्कुरा दी .....बोली-सच बोलना है ......मैं मुस्कुरा दिया ......सच तो यही है कि ऐसे में जब कि तुम मेरे पास बैठी हो तो सोचता हूँ कि एक लम्हा जो गुजरे जा रहा था अपनी ही धुन में ...मेरे पास आकर मु_ी भर हसीन ख्वाब हाथ में थमा कर मुस्कुराता हुआ चला गया। वो हंसी...वाऊ शायराना अंदाज़ .....मैं मुस्कुराते हुए बोला .....सच कह रहा हूँ , दिल की बात बताई है मैंने .....बोली अच्छा ऐसा कैसे .....मैंने कहा क्या ये इसी सवाल का हिस्सा है क्या ? ...वो मुस्कुरा दी ...हाँ यही समझ लो ......मैंने कहा तुम्हारी आँखें बहुत खूबसूरत हैं .....बिल्कुल एक हसीन ख्वाब की तरह ...और अब देखो तुम मेरे पास बैठी हो ...ये इस लम्हों ने ही तो दिए हैं मुझे .....वो मुस्कुरा गयी ...बोली आपकी बातें तो बस ....फिर मुस्कुरा दी .....ठीक है अब मेरी बारी है ...मैंने कहा।
- तुम्हारा सबसे प्यारा ख्वाब क्या है ? जिसे तुम पूरा करना चाहती हो ?
हम्म, बहुत मुश्किल सवाल पूछ लिया आपने ....वो बोली .....लेट मी थिंक ..... मैं एक छोटा सा स्कूल खोलना चाहती हूँ और इतना पैसा कमाना चाहती हूँ कि उसमे गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ा सकूँ .....वो बोली अच्छा अब आप बताओ ......
 - आपकी नजऱ में प्यार क्या है ? प्यार का एहसास क्या है ?......
प्यार का मतलब माँ है ....न कोई वादा, न कोई शिकवा न शिकायत, ना आग्रह, न अनुरोध, ना बदले में कुछ मांगती .....एहसास के लिए ....बालों में उसका हाथ फिराना, हमेशा प्यार जताना , सिरहाने बैठ तपते बुखार में सर पर रखी पट्टियां बदलते हुए बिना सोये रात गुजार देना ..... चोट हमे लगना और दर्द उसे होना .....ये प्यार का एहसास है ..... वो मुस्कुरा दी ....बोली अल्टीमेट, सुपर्ब ......आपकी क्या तारीफ़ करूं।
- अच्छा एक कोई भी प्रकृति का नियम जो तुम 1 साल के लिए बदलना चाहो ?
हम्म .....पता नहीं आप क्या-क्या पूछते हैं .....मेरे लिए मुश्किल हो जाती है ..... वो मुस्कुरा कर बोली .... मैंने कहा कि अब सवाल तो सवाल हैं .....जवाब तो देना पड़ेगा ......हम्म ....अगर बदल सके तो ये कि सभी पुरुषों को पूरे एक साल के लिए स्त्री बना दिया जाए और 1 साल बीतने के बाद वो एक साल उन्हें हमेशा याद रहे .....शायद तब वो स्त्री को अच्छी तरह समझ पाएं .....मैं मुस्कुरा दिया और ताली बजा दी ....इस बार मेरी बारी थी ये कहने की कि अल्टीमेट, सुपर्ब।
उसने पूछा- अच्छा आपकी कोई इच्छा इस तरह की जो पूरी करना चाहते हों ....
मैं जानना चाहता हूँ कि भगवान का कंसेप्ट कब कैसे और कहां से आया, वो है या नहीं ...और अगर है तो मैं जानना चाहूँगा कि वो इतने कमज़ोर क्यूँ है जो इस तरह की दुनिया ही बना पाए .....मैं चाहूँगा कि अगर वो हैं तो उन्हें और ज्यादा शक्ति मिले और सब कुछ देखने, सुनने, समझने और महसूस करने की भी शक्ति दे ......या फिर में गरीबी, जात-पात, धर्म, मजहब, और इंसान को बेवकूफ बनाये रखने के सारे साजो सामन उनके घर छोड़कर आना चाहूंगा। मतलब आप भगवान को नहीं मानते ...वो बोली। मैंने कहा अगर लोगों को बेवकूफ बनाए रख कर इस दुनिया को ऐसे बनाये रखने का नाम भगवान है तो मैं भगवान को नहीं मानता।
- आप ऐसी कोई फिल्मी हस्ती के नाम बताइए जिनसे आप मिलना चाहती हों ?
वो बोली .... सलमान खान और स्मिता पाटिल .....मैंने कहा सलमान खान तो समझ आता है, हैंडसम है,  लेकिन स्मिता पाटिल क्यों ......वो बोली उनकी आँखें बहुत कुछ कहती थी और उनकी अदाकारी बहुत गज़ब की थी। और सलमान खान इसलिए कि वो थोड़ा इंसान है।
फिर वो बोली कि अगर आप किसी से मिलना चाहे तो किस से मिलना चाहेंगे .....
मैंने कहा गुरुदत्त और देवआनंद या मधुबाला और संजीव कुमार, गुलज़ार, अमोल पालेकर या फिर अमिताभ बच्चन या फिर शाहरुख खान.....बहुत से हैं....वो क्यों ...उसने पूछा.....क्योंकि मैं गुरुदत्त के उस दर्द से रू-ब-रू होना चाहता हूँ, देव आनंद जिसने गाइड जैसी अनगिनत अच्छी फिल्में दी उसकी स्टाइल का राज़ पूछना चाहता हूँ, मधुबाला की मुस्कुराहट को मु_ी में कैद करके लाना चाहता हूं .....संजीव कुमार की जिंदादिली ...गुलज़ार की रुमानियत और अमोल पालेकर से आम आदमी की परिभाषा पढ़कर आना चाहता हूँ, अमिताभ से उसके अंदाज की तारीफ करना चाहता हूं, शाहरुख खान से उसकी असीमित ऊर्जा का स्रोत जानना चाहता हूं......
ओह... माय... गॉड... वो बोली- आप तो बहुत पहुंची हुई चीज़ जान पड़ते हैं ....किसी इंसान के खयाल इतने विस्तृत भी हो सकते हैं। यकीन नहीं होता।
मैं जोर से हँस दिया .....हा हा हा .....नहीं नहीं ऐसी गलतफ़हमी मत पालो ....
- फिर उसने पूछा अच्छा आपने कभी किसी से प्यार किया है मतलब आपकी कोई गर्ल फ्रेंड है ? गर्ल फ्रेंड तो जरूर होगी .... :)
मैं मुस्कुरा दिया ....मैंने कहा एक तरफ आप पक्के यकीन के साथ कह रही हैं कि गर्लफ्रेंड तो जरूर होगी और पूछ भी रही हैं .....मैंने कहा- मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है .....बोली झूठ, बिल्कुल झूठ .....सच बताइए ....मैं बोला-लो भला मैं झूठ क्यों बोलूंगा .....अब आप ही बताइए मुझ जैसे नासमझ और आवारा लड़के की कोई गर्लफ्रेंड क्यों बनना पसंद करेगी ..... नासमझ- आवारा ...किसने कह दिया आपको। जितना मैंने आपको एक घण्टे में जाना है, उसके हिसाब से तो लगता है कि आप के अंदर तो विचारों का समंदर होगा। मैंने कहा, हो सकता है, लेकिन मुझे तो वह नासमझ ही कहती है। कहती है, मैंने उसको कभी नहीं समझा। ओ...हो...वह है कौन....? है..कोई। जो अजीज-अज-जान है। तो क्या आपने उससे प्यार किया है..? पता नहीं...मैं तो बस इतना जानता हूं.....कि वो पहली इंसान है.....जो मुझे इतनी अच्छी लगी कि उसके लिए मैं कहता हूं कि तुम्हारे होने से मेरी जिन्दगी खूबसूरत है..। उसने आपसे प्यार नहीं किया..? नहीं...उसने मुझसे प्यार नहीं किया। मुझे अच्छी तरह पता है। उसे मुझसे बात करना या मिलना भी अच्छा नहीं लगता। उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा - फिर भी आपका उससे प्यार करना जरूरी है..? मैं बोला- बेहद जरूरी है...प्यार इंसान को अच्छा बना देता है। अच्छा बनने के लिए प्यार तो करना ही पड़ेगा। और उसके अलावा मैं किसी से प्यार नहीं कर सकता।
ये सब कहने में अच्छा लगता है....आजकल ऐसा प्यार और दोस्ती रही कहां है...। उसने अपनी बात अधूरी ही छोड़ दी। मैंने उसकी अधूरी बात से अर्थ लगाते हुए कहा- नहीं....सब ऐसे नहीं होते। और ये सब कहने में ही नहीं, महसूस करने में भी अच्छा लगता है। ओह हो ....लगता है मैंने गलत सवाल पूछ लिया। मैंने कहां- नहीं-नहीं, तुम आज मुझसे कोई भी सवाल पूछ सकती हो। और जहाँ तक सच्चे प्यार का सवाल है ...मैंने एक माँ के प्यार से पवित्र और कोई प्यार नहीं देखा और न ही महसूस किया। वो बोली- अब आपसे कौन जीत सकता है। वैसे आपको काफी नॉलेज है प्यार के बारे में।
मैंने कहा और यही सवाल आपसे मैं करूं तो .....वो बोली-नहीं कोई नहीं है ....प्यार करने का मन तो करता है लेकिन ऐसा कभी कोई मिला नहीं....हैं तो तमाम जो मुझे चाहने वालों में अपना नाम शुमार करते हैं, पीछे पड़े हैं ...लेकिन में जानती हूँ ...वो सब एक भूखे इंसान की तरह हैं ......जो मुझे खा भर लेना चाहते हैं ...मैं मुस्कुरा दिया .....मैंने कहा बहुत समझदार हो ...लड़कों की फितरत समझती हो .....बोली जिंदगी सब सिखा देती है।
फिर वो बोली अच्छा एक सवाल .....मैंने कहा हां पूछिए ....
- मेरे बारे में अगर कुछ कहना हो तो क्या कहोगे .....
मैंने गहरी सांस ली ....सच कहूं क्या ....वो बोली ..हाँ बिलकुल सच ...मैंने कहा तुम्हारी खूबसूरत आंखें मुझे मजबूर करती हैं ये कहने के लिए ...कि ....

बहुत खूबसूरत हैं ये आँखें तुम्हारी
इन आँखों को दिल में बसाने को
जी चाहता है
बहुत कुछ कहती हैं ये आँखें तुम्हारी
संग बैठ तेरे इन आँखों से
दिल का हाल सुनाने को
जी चाहता है,
बहुत खूबसूरत हैं ये आँखें तुम्हारी
इन आँखों ..........

तभी मेरा फोन बजने लगता है, और मैं फोन अटेंड कर लेता हूं। मुझे मेरे सर ने बुलाया था, जो एस-8 में बैठे थे। मैं फोन पे बात करते-करते वहां से चला आता हूं। कुछ देर बाद अहमदाबाद आ जाता है और मैं मेरे साथियों के लिए पानी लाने प्लेटफॉर्म पर उतर जाता हूं। बोतल में पानी भरकर मैं वापस ट्रेन में चढ़ता हूं। तभी मुझे उस लड़की का खयाल आता है। मैं लगभग भागते हुए एस-6 की सीट नं. 30 पर पहुंचता हूं। पर वहां पर कोई नहीं था। मैं नीचे उतरकर झांकता हूं पर वहां भी कोई नहीं था। उफ.....। मैं उसका नाम भी नहीं पूछ सका था। मुझे अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था। मैं डिब्बे के बाहर चस्पां रिजर्वेशन सूची में उसका नाम तलाशने लगा, पर वो सूची भी अब नई लग गई थी। मैं प्लेटफॉर्म पर इधर से उधर तक बदहवास सा भागता रहा पर वो कहीं नहीं दिखी। हमारी ट्रेन वापस रवाना होने वाली थी, और मेरी नजरें बार-बार उसे ही खोज रही थी। इतने में ही प्लेटफॉर्म के गेट के बाहर वो मुझे दिखी। मगर हमारे बीच करीब सौ मीटर का फासला था। इधर, मेरी गाड़ी प्लेटफॉर्म छोड़ रही थी... मैं उसकी ओर दौड़ा और वो गाड़ी में बैठने वाली थी। मैं उस तक पहुंच पाता, इससे पहले ही उसकी गाड़ी रवाना हो गई। वो चली गई मेरी आखिरी पंक्ति सुने बिना कि ...

बहुत खूबसूरत हैं ये आँखें तुम्हारी
इन आँखों को अपना बनाने को
जी चाहता है..। :(