Saturday, August 11, 2012

सच में मजाक था या मजाक में सच..!!!

बीते कुछ दिनों से कई खय़ाल आ-आ कर लौटते रहे और मन हर दफा ही उन्हें टटोलता रहा कि क्या यह महज हमारे बीच आ गई नजदीकियों का असर है या फिर सच में हमें एक-दूसरे से प्यार हो गया। कभी लगता, कि नहीं, यह केवल हमारे रिक्त मन की सतह पर सागर की लहरों की तरह थपथपा कर जाने वाला प्यार है। उस पहले प्यार की यादें ही हमें हर्षित कर रही है। कभी लगता- नहीं, हम दोनों तो उन यादों को कहीं दूर छोड़कर आ चुके हैं। फिर कहीं हमें वाकई एक-दूसरे से...। पता नहीं। पर फिलहाल मैं इस बारे में नहीं सोचना चाहता। मैं बस इन खूबसूरत लम्हों को जीना चाहता हूं। यूं तो एक अरसे से मैंने किसी के बारे मैं नहीं लिखा। मगर आज फिर कुछ लिखने का मन किया है। जानता हूँ इस बात पर तुम मुस्कुरा उठोगी। वैसे एक बात और है, बीते सालों में मैंने कई-कई दफा बहुत कुछ लिखना चाहा किन्तु हर दफा ही यह सोच कर रह जाता कि आखिर कोई उतना हकदार भी तो हो जिसके बारे मैं लिखा जा सके। जो उनकी अहमियत को समझे और मन के उस निजी स्पेस से निकले खयालातों, द्वन्द और सच्चाइयों को उसी स्तर पर उनकी स्पर्शता का अनुभव कर सके। और शब्दों के माध्यम से उनका वह स्पर्श एक हाथ से दूसरे हाथ में पहुँच कर बचा रह सके। उन शब्दहीन कागजों को जब छूता हूँ तो अपने रिश्ते का खय़ाल हो आता है। जानता हूँ हमारे बीच कभी न मिटने वाला फासला है, किन्तु यह मध्य आ खड़ी हो जाने वाली दीवार तो नहीं। तुम्हारे और मेरे बीच...नहीं-नहीं। ऐसा नहीं हो सकता। यह सोचकर मैं हर बार इस खूबसूरत सच्चाई को दरकिनार कर देता। लेकिन हर दफा, हर बात यूँ रिश्तों पर ही तो नहीं छोड़ी जा सकती - है न ? वैसे तुमको नहीं लगता, कई दफा हमें हमारी तबीयत का इंसान यूँ अचानक से आ मिलता है कि हम उस एक पल यकीन नहीं करते या यकीन नहीं करना चाहते, कि भला कोई हू-ब-हू ऐसा कैसे हो सकता है। और हम वक्त की नदी के अलग-अलग किनारों पर खड़े-खड़े उसके सूख जाने की राह तकते हैं। साल के आखिरी दिनों में तुमने मेरे दिल पर दस्तखत किए थे और एकाएक ही मेरी जिंदगी मुझे बेशकीमती लगने लगी थी। जो भी हो, उससे पहले मुझे जिंदगी से रत्ती भर भी प्रेम नहीं था। मेरे लिए भी नया साल उम्मीदों का उजास लेकर आया था। उस रोज़ जब हमारा छह दिन का साथ समाप्त होने को आया था और मेरी पलकें गीली होने को। तब मैं उसके खत्म नहीं होने की दुआ कर रहा था। तुमसे दूर होने के खयाल से मैं सिहर सा गया था। आखिरी शाम उस सड़क पर मैं तुम्हें कसकर गले लगाना चाहता था। तुम्हें बाहों में लेकर मैं उस वक्त के वहीं ठहर जाने की दुआएं मांग रहा था।
शायद तुम्हें मालूम नहीं होगा कि उस रोज मैं  वहीं छूट गया था। कॉलेज की उसी सूनी सड़क पर। तुम्हारे आंसुओं से भीगा। तुम्हारे अंतिम स्पर्श से गरमाता। ऐसा लगता है हम अभी भी उसी सड़क पर चहल-कदमी कर रहे हैं। मेरे साथ-साथ तुम्हारा उलटे चलना और फिर मुस्कुरा के कहना कि-
प्यार करते हो मुझसे..?
मैं बोलता - हां।
फिर तुम कहती - तो प्रपोज करो।
और फिर मेरे लिए मुश्किल सी हो जाती।
मैं उस वक्त शायद मैं तुम्हें आई लव यू बोल देता हूं।
तुम मुस्कुरा कर कहतीं- ऐसे थोड़ी होता है।
फिर कैसे होता है..?
आंखों में आंखें डालकर कहो।
और मैं तुम्हें फिर से आई लव यू बोल देता हूं।
वो सब बातें सच में मजाक थी या फिर मजाक में सच। उस वक्त शायद हम दोनों को पता नहीं चला। दिल को कभी अहसास ही नहीं हुआ कि ये क्या हो रहा है। उस दिन जब मैं तुमसे रूठ गया था। तो तुमने कितने प्यार से मुझे मनाया था। याद है मुझे। उन दिनों तुम मुझे बहुत अच्छी लगने लगी थी। तुम मेरे बेहद करीब आ गई थी। बेहद करीब। हम दोनों शायद किसी अनदेखी डोर से एक-दूसरे के पास खींचे चले जा रहे थे। जब तुमने आखिरी दिन मुझसे पूछा कि क्या तुम्हें सच में मुझसे प्यार हुआ है, तो मैं तुमसे सच नहीं कह पाया था। ना जाने किस अनजाने डर ने मुझे रोक दिया था। शायद इश्क के पुराने अनुभवों ने मुझे यह कहने को विवश कर दिया होगा। पर यह सच था कि दिल के किसी कौने में तुम्हारे लिए चाहना ने जन्म ले लिया था। मैं जब तुम्हें तुम्हारे घर के पास छोडऩे आया था तो तुम्हें ये सब कहना चाहता था। फिर न जाने क्यूं रुक सा गया था। शायद दिमाग दिल की बात मानने को तैयार ही नहीं था। दिल ने जो कुछ छह दिनों में महसूस किया, दिमाग उनको झूठा साबित करने की फिजूल कोशिश में जुटा था। मगर उस दिन जब मैं घर आया तो बहुत कुछ अधूरा सा लगा। पहली बार लगा कि कुछ पीछे छूट सा गया है। या फिर बहुत कुछ पीछे छूट गया है। धीरे-धीरे अहसास हुआ कि मेरा तो शायद सब कुछ ही पीछे छूट गया है। आखिर दिमाग अपनी कोशिशों में नाकाम हो गया था। उसे दिल की बात माननी पड़ी थी। और फिर रात भर तुम्हारी उजली हंसी की खनक कानों में रह-रह कर गूंजती रही।    सवेरे जब उठा तो बस, तुम्हारी बातों को याद करके ही मुस्कुरा रहा था। कड़ाके की सर्दी में बाइक पर ठण्डी हवाओं के बीच तुम्हारा ठण्डे हाथों से मेरे गालों को छूना और तुम्हारा हाथ थामे मेरा हाथ। तुम्हारे स्पर्श ने उन लम्हों को मेरी जिन्दगी के खूबसूरत लम्हों में शामिल कर दिया था। उस वक्त की अनुभूति को जाहिर करना मुमकिन नहीं है मेरे लिए। सच....ऐसा लग रहा था कि जन्नत में हूं। नहीं जानता कैसी होगी। पर यकीन है इस अहसास से ज्यादा खूबसूरत नहीं होगी। तुम्हारे साथ होने से वो मौसम खुशगवार हो गया था। तुम्हारे पास बैठने पर ऐसा लग रहा था जैसे पहली बारिश के बाद धरती से निकलने वाली खुशबू को महसूस कर रहा हूं......तुम्हारी बातें सुनकर तुम्हें बाहों में लेने का दिल कर रहा था। तुम्हारे हाथों के स्पर्श का अहसास आज भी मैं महसूस करता हूं। मन आज भी उस सूनी सड़क पर तुम्हारे साथ चहल-कदमी करता है। वो 'पजेसिव' कहने का अंदाज आज भी चेहरे पर मुस्कुराहट ला देता है। चांद को देखकर आज भी तुम्हारी याद आ जाती है। इन सबके बाद भी आज भी मुझे पता नहीं चला कि उस सूनी सड़क पर चहल-कदमी के दौरान हमारे बीच हुई वो सब बातें सच में मजाक थी या फिर मजाक में सच..। :)

Monday, August 6, 2012

Tabdeeli Jab Bhi Aaati Hai..
Mousam Ki Adaaon Main
Kisi Ka Yun Badal Jana
Bahut Yaad Aaata Hai..!!