Wednesday, November 23, 2011

कभी तो याद आती होगी ना...!

हालांकि तुमसे मिलना मेरे लिए अविस्मरणीय होता है, फिर भी अब इसकी इच्छा नहीं होती। जानता हूं, तुम भी मुझसे मिलकर खुश नहीं होंगी और तुम्हें देखकर मुझे शायद ही अब कोई सुखद अनुभूति होगी। मैं उन यादों को नया नहीं करना चाहता। मुझे उन पुरानी यादों से ही लगाव है। फिर भी अगर तुम्हें कहीं सुकून बहता दिखे, तो एक कतरा मेरे लिए भी सुरक्षित रखना। शायद कभी किसी मोड़ पर यूं ही हमारी मुलाकात हो जाए। बीते हुए दिनों के अंधेरे जंगल से निकल, उजले वर्तमान का सुख, सुकून नहीं देता। वो बंद पुराने बक्से में पड़ी जजर्र डायरी के सफहों में सुरक्षित अवश्य होगा। उसे छुआ जा सकता है, किन्तु पाया नहीं जा सकता। वक्त-बेवक्त सूखी स्याही को आँसुओं से गीला करना दिल को तसल्ली देना भर है। इससे ज्यादा और कुछ नहीं।
तुम भी दो सौ गज की छत पर कपड़ों को सुखाकर, कौन सा सुकून हासिल कर लेती होगी। रात के अँधेरे में, बिस्तर की सलवटों के मध्य, थकी साँसों के अंत में क्षणिक सुख मिल सकता है। सुकून फिर भी कहीं नहीं दिखता। और फिर ये जान लेना कि मन को लम्बे समय तक बहलाया नहीं जा सकता। बीते वक्त के सुखद लम्हों में तड़प की मात्रा ही बढ़ाता है। जानता हूँ उस पछताने से हासिल कुछ भी नहीं।
एटीएम और क्रेडिट कार्ड पर खड़े समाज में ठहाकों के मध्य मेरी तरह कभी तो तुम्हारा दिल भी रोने को करता होगा। दिखावे के इस संसार में क्या तुम्हारा भी मेरी तरह दम नहीं घुटता होगा। घर-परिवार की जिम्मेदारियों के बीच कभी तो तुम्हें वो बेफिक्री वाले दिन और बचपना याद आता होगा। चमकती सड़कों और कीमती कपड़ों के मध्य कभी तो तुम्हें अपना गांव याद आता होगा। रंगीन शामों के बीच कभी तो दिल करता होगा उसी पुरानी कॉलेज में, एक अलसाई दोपहर बिताने के लिए। कभी तो उस क्लासरूम की याद आती होगी ना। कभी तो स्मृतियों में मेरा उदास चेहरा आकर बैचेन करता होगा। मेरी भीगी हुई आंखों को देखकर कभी तो तुम्हारी भी पलकें नम हुई होंगी ना। कभी तो हमारा रूठना-मनाना याद आता होगा। कभी तो कॉलेज से जाने वाली उस सिटी बस की याद आती होगी। चमकते रेस्त्रां में खाने के बीच कभी तो तुम्हें कॉलेज के सामने वाली दुकान पर मिर्चीबड़ा खाने का मन करता होता होगा। मेरी तरह तुम्हारा भी दिल कभी तो उन पुरानी गलियों में खोता होगा ना। कभी तो...। है ना...।

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