Sunday, June 26, 2011

short question with a cute answer

some one asked me 'hwz ur life...?'

I smild...... :) and answrd,

she’z fine..!!

Wednesday, June 22, 2011

ऐ अजीज-अज-जान लड़की !


आज अपनी दोस्ती पूरे दो बरस की हो गई। इन दो बरसों में तुमने मुझे ढेर सारी खट्टी-मिठी यादें और अनगिनत खुशियों के पल दिए हैं। जिन्हें जाहिर करना मेरे लिए नामुमकिन तो नहीं, पर मुश्किल जरूर है। दो साल ऐसे गुजर गए, जैसे कि दो दिन। शायद अच्छे दिन जल्दी गुजर जाते हैं। सच..!!! दो साल का बच्चा भी कितना प्यारा होता है ना...। उसकी शरारतें..... बातें....और....मासूम से सवाल...। सब कुछ कितना अच्छा लगता है। कभी-कभी उसकी जिद पर गुस्सा आता है, तो दूजे ही पल उसके मासूम चेहरे को देखकर उसे गले लगाने का दिल करता है। तुम ऐसी ही तो हो। बिल्कुल बच्चों की तरह मासूम सी...। :) जिसकी बातों पर ठहाके लगाने का मन करता है। खाने के लिए जब तुम जिद करती हो तो जी करता है, बस तुम्हें देखता रहूं। जब तुम बोलती हो तो, मैं तुम्हारी आंखों में झांकते हुए सुनना चाहता हूं। बहुत अच्छा महसूस होता है। इस दरमियान मैं तुम्हारी आंखों में ढेर सारे ख्वाब देखता हूं। सुनहरे सपनीले ख्वाब। रंग-बिरंगे खिलखिलाते फूलों की तरह। हर ख्वाब अपने आप से बेशकीमती है। बिल्कुल सौ फीसदी अनमोल। मैं इन आंखों में ख्वाबों को देखकर और तुम्हारी बातें सुनकर मुस्कुरा कर रह जाता हूं। इतना मासूम भी भला कोई होता है। तुम इस दुनिया का हिस्सा होते हुए भी दुनिया से अलग हो। तुम्हारा भोलापन.......मासूमियत......और....सादगी सौ प्रतिशत शुद्धता लिए हुए है।
आज भी वही दिन है ना...। 30 जुलाई। यह दिन जब भी आता है। तुमसे जुड़ी हुई ढेर सारी यादें मेरे आस-पास छोड़ जाता है। कॉलेज का पहला दिन.....घण्टों तक चलने वाली बातें.....तुम्हारे लिए चॉकलेट लाना.......मेरी जिद....तुम्हारा रूठना...मेरा मनाना....और तुम्हारे साथ रेस्टोरेंट में बिताए पल। सब कुछ ऐसा लगता है, जैसे मेरे आस-पास ही आकर बैठ गए हों.....और मुझे देखकर मुस्कुरा रहे हों।  :) आज जबकि हम दोस्ती के इस अनिश्चितकालीन सफर के लिए चलते जा रहे हैं। तो मैं तुम्हें लिखकर भेज देना चाहता हूं, वो सब एहसास। वो ढेर सारी बातें। जो तुम्हारे होने से होती है और तुम्हारे ना होने से यादें बन जाती है। मैं वो सब कह देना चाहता हूं, जो मैं हर उस पल कह देना चाहता था,जब तुम मेरे साथ होती थी। मेरे पास होती थी। पर,कभी ढंग से कह नहीं पाया। तुम्हारा और मेरा रिश्ता क्या है। ये मैं पहले भी सोचता था और आज भी सोचता हूं। क्या हमने कभी अपने रिश्ते का कोई दायरा भी बनाया था। मुझे ठीक से याद नहीं कि इस पर हमारी कभी बात हुई हो। या हम इन सभी रिश्तों से अलग कहीं जुड़े हुए थे। कहीं किसी कोर पर गहरे से गांठ बंधी हुई थी। जिसको देख पाना और समझ पाना मुश्किल था हमारे लिए। कभी मालूम ही नहीं चला कि रिश्तों का ऐसा भी कोई बंधन होता है भला। मैं इस रिश्ते को भी एहसास का नाम देता हूं। जिसे लोग दोस्ती या फिर प्यार का नाम देते हैं। अक्सर मैं ये सोचता हूं कि जब रिश्तों को निभाने वाले बड़े हो जाएं और रिश्तों के दायरे छोटे....तब काश....ऐसा हो पाता कि मां जिस तरह छोटे पड़ गए स्वेटर को उधेड़कर फिर से नए सिरे से बुनती और हम उसे बड़े चाव से पहनते...ठीक उसी तरह। अगर रिश्तों को भी सहेजकर रखा जा सकता तो कितना अच्छा होता। रिश्तों के इन प्रचलित दायरों के बाहर भी एक दुनिया है। ये तुमने ही मुझे बताया। वो दायरे जो हम खुद बना लेते हैं या हमे बने हुए मिलते हैं। मुझे ये महसूस होता था कि तुम हमेशा मुझे मुस्कुराती हुई खड़ी मिलती। तुम जब मुझे उन दायरों से बाहर ले गई,तो वो अलग ही दुनिया थी। उसके एहसास से मैं रोमांचित हो उठता था। जब भी मैं अपने आप को अकेला और असहज महसूस करता हूं तो संभाल कर रखी गई तुम्हारी चीजों को एक-एक कर निकालता। उनमें छुपी हुई, घुली हुई तुम्हारी यादों को एक-एक करके हाथ पर रखता और अपने चेहरे पर मल लेता। मैं देखना चाहता हूं कि तुम्हारी यादों के साथ मेरा चेहरा कैसा दिखाई देता है। कुछ धुंधले अक्स स्मृतियों में ऐसे जमा हो जाते हैं, जैसे वजूद का एक अहम् हिस्सा हो गए हों। जिनका होना और ना होना उतने मायने नहीं रखता। जितना की उनका स्मृतियों में बना रहना। तमाम कोशिशों के बावजूद वो अलग नहीं होते। कभी-कभी मन इतना सूना हो जाता है कि खीझ, प्रसन्नता, अप्रसन्नता, अकुलाहट, क्रोध, भय, सुख और दु:ख जैसी कोई भी स्थिति में फर्क ही महसूस नहीं होता। मन करता है, यहां से निकल जाऊं। कहां...? यह कुछ भी जाने बिना। किन्तु दिमाग आड़े आ जाता है और समझाता है कि ऐ मन...!!! बावरा हो गया है क्या...? कितनी घड़ी समझाया कि लिमिट में रहा कर। ज्यादा हवा में ना उड़ा कर। लेकिन ये मन उडऩे को करता है। किधर को...? कहां को...? मैं नहीं जानता।
तुमसे जुड़े मेरे पास ढेर सारे किस्से हैं। जो मेरी जिन्दगी में अहम् है। कुछ बातें ऐसी होती है ना। जो अपना असर छोड़ जाती है। वो दिन भले ही बीत जाए, पर उन यादों के अहसास पानी के दाग की तरह वजूद के लिबास पर हमेशा के लिए नक्श हो जाते हैं। कहते हैं,ख्वाहिशों को कोई अंत नहीं होता। इनका कोई ओर-छोर नहीं होता। कहां शुरू होती है और कहां खत्म। पता ही नहीं चलता। कुछ ख्वाहिशें तो ऐसी होती है कि खुद ख्वाहिश को ख्वाहिश करने वाले से प्यार हो जाता है। इन्हीं ख्वाहिशों के कारण जिन्दगी में कई मुश्किल दौर से गुजरा मैं...। और गुजरता हुआ यहां तक पहुंचा। जब अपनी आंखें बंद करके सोचता हूं तो पता है,सबसे मुश्किल घड़ी कौनसी लगती है....। तुम्हें दोस्त के रूप में पा लेने और फिर खो देने के अहसास का पूर्णत: सच होना। तुम्हें पा लेने से पहले जब घण्टों तुमसे गुफ्तगु करता था। वो तुम्हारी ढेर सारी बातें.... जो मुझे कभी बच्चों सी लगती और कभी एकदम बड़ों सी। और इन सबके बीच वो ढेर सारे अनगिनत अनमोल खुशियों के पल। उन्हें दामन में समेट लेने का मन करता। कुछ रोज बाद जब एहसास हुआ कि ये मुझे क्या हो गया है..। ये मेरा दिन तुम्हारे होने और ना होने पर अपनी शक्लो-सूरत क्यों बदल लेता है। और तुम्हारी 'हा' और 'ना' की आशंकाओं से घिरे मेरे दिल का हाल क्या रहा होगा उन दिनों। ये मेरा दिन ही जानता है। कभी दिल में खयाल आता है कि तुम्हारे चेहरे को अपने हाथों में लेकर......तुम्हारी आंखों में आंखे डालकर कह दूं कि हां..!! तुम ही तो हो...। जिसके होने का एहसास हरदम मेरे साथ रहता है। जब खयाल आया कि तुमसे अपने उस एहसास को बयान करूं....तो सचमुच वो बेहद मुश्किल घड़ी थी। मैं एकदम मुश्किल दौर में पहुंच गया था। शायद मैं भी तुम्हारी तरह कभी बच्चों सी तो कभी बड़ों सी हरकतें करने लग गया था। कभी मन करता कि तुम्हारे पास आकर कह दूं कि क्या तुम यूं ही हरदम मुझे ये एहसास कराओगी......क्या हरदम तुम यूं ही मेरे साथ रहोगी....और......तेज दौड़ लगाऊं....... तेज.......और...तेज......बहुत.....तेज...। ताकि तुम्हारी 'हां' और 'ना' की कशमकश से छुटकारा तो मिले....और दौड़ता-दौड़ता....हांफने तक..... पसीने में चूर होने तक.....मुझे कुछ भी सुनाई ना दे......कि कहीं तुमने ये तो नहीं कर दिया कि 'नहीं'.....या फिर मुझे सोचने का वक्त चाहिए।....क्योंकि कुछ भी ऐसा सुनने का साहस नहीं जुटाने के कारण मैं दौडऩा चाहता था.....पसीने में तरबतर होने तक। एक पल के लिए लगा था कि तुमसे बातों ही बातों में कह दूं कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो......इस बात से भी ज्यादा.....इस एहसास से भी ज्यादा.......इस ख्वाब से भी ज्यादा.......इस खयाल से भी ज्यादा......सबसे ज्यादा......। क्या तुम हरदम मेरे साथ रहोगी। मेरा साथ निभाओगी। कभी बच्चों सी तो कभी बड़ों सी बनकर। यह सब बातें सोचने के दौरान मुझे लगता था कि तुम ये सुनते ही खिलखिला कर हंस दोगी। :)
जिस दिन.....जिस पल.....उस टिक-टिक की आवाज वाली घड़ी के साथ मेरे दिल की आवाज सुनाई देने लगी थी। उस दिन अहसास हुआ कि अभी बोल दूं....शायद रात के दो बज रहे होंगे। उस खामोशी में भी एक प्यारी सी धुन सुनाई देने लगी थी। जो घड़ी की टिक-टिक और मेरे दिल के तेज धड़कने से जुदा थी। उस एहसास की धुन जो उस पल हुआ था। सबसे प्यारा थी। बिल्कुल तुम्हारी तरह...। पता है सबसे ज्यादा मुश्किल घड़ी कौनसी थी..? जब मैंने अपने दिल की बात तुमसे कह दी थी.....और तुम्हारी 'हां' और 'ना'  की कशमकश से मैं और मेरा दिल किस कदर दो-चार हुआ। ये तो मेरा दिल जानता है या वो एहसास खुद.....। पूरे 16 मिनट मैंने वो एहसास बयान किए थे। हालांकि इससे पहले मैने पहले कई बार इसका अभ्यास कर लिया था...!! कई बार कागज पर लिखने के बाद मैंने वो सब कहने की हिम्मत जुटाई थी। जिसे तुम बस सुन रही थी......और मैं बस बोले जा रहा था...। मेरी बात जब खत्म हुई तो यूं लगा........जैसे कोई जंग जीत ली हो। मगर जब तुम खामोश हो गई......और तुमने बस इतना सा कहा कि -....'मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी'।....और फोन कट हो गया।........ उस पल मेरा दिल एकदम से........बैठ गया था। मुझे लगा मैंने अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती कर ली है........और अपनी सबसे प्यारी दोस्त को खो दिया है। उस जिद्दी नेटवर्क से लड़ता हुआ.....उसे मनाता हुआ.....कई जतन से जब मोबाइल के बटन दबा रहा था.....पर, तुमसे बात नहीं हो पाई। मेरा मन किसी काम में नहीं लग रहा था। आखिर दो दिन बाद जब तुम्हारा मैसेज मिला कि तुम ठीक हो और तुमने मुझे माफ कर दिया है। तुम्हें एक दोस्त के रूप में वापस पा लेने के एहसास से मेरा दिल सातवें आसमान पर था......ऐसा लग रहा था.....कि सुबह की उस नर्म घास की पत्तियों पर ओस की बूंदें मेरे पैरों को छू रही है........पहाड़ों की छत पर खड़ा मैं तुम्हारे साथ ठण्डी-ठण्डी हवा का आनंद ले रहा हूं। सच....!! वो पल मेरी जिन्दगी का खूबसूरत पल था........और वो घड़ी सबसे मुश्किल घड़ी...। तुम्हारी दोस्ती ने मेरी जिन्दगी के मायने ही बदल दिए। :) 
सुनो..!! इस दिल की धड़कनों के बंद होने से पहले आज एक बार फिर मैं बयां कर देना चाहता हूं अपने एहसासों को और कहना चाहता हूं कि -

ऐ- अजीज-अज-जान लड़की ! तुम मेरे लिए इस सदी की, इस दुनिया की सबसे खूबसूरत रूह हो....।

Sunday, June 12, 2011

कुछ तुम भी कह लेते, कुछ हम भी...

रिश्तों की हकीकत ये कुछ ऐसे निभा लेते
ना हमने बुलाया था तो तुम ही बुला लेते


दिल में शिकवे थे अगर, आते तो कभी एक दिन
कुछ तुम भी कह लेते, कुछ हम भी सुना लेते


गुमसुम से ना रहते फिर रातों में अक्सर
डरते जो कभी ख्वाबों में, हम तुम को बुला लेते


उजड़ा सा है आँगन भी, है बिना लिपा चूल्हा
तुम साथ अगर होते इस घर को सजा लेते


ना हमने बुलाया था तो तुम ही बुला लेते
कुछ तुम भी कह लेते, कुछ हम भी सुना लेते।

Friday, June 10, 2011

तुम्हारे होने से मेरी जिन्दगी खूबसूरत है...।

30 जुलाई 2008. यानी मेरी अब तक की जिन्दगी का सबसे खूबसूरत दिन. शायद उस दिन ऊपरवाला मुझ पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान था, जिस दिन हम पहली बार मिले. वो एक इत्तफाक था. वो इत्तफाक मेरी लाइफ में कभी न भूलने वाला इत्तफाक बन गया है. इसका एहसास मुझे 24 दिसम्बर को हुआ. जब तुमने कहा कि अब हम सात दिन बात नहीं कर सकेंगे. उस दिन मुझे लगा कि तुम मेरी जिन्दगी का जरूरी हिस्सा बन चुकी हो. सच कहूं तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि एक सामान्य सी दिखने वाली लड़की मेरी लाइफ को इतना बदल सकती है. तुमसे मिलकर मुझे लगा कि - हां, तुम ही 'वो' हो, जिसका मुझे इंतजार था. मुझे इससे पहले किसी के लिए ऐसा फील नहीं हुआ. मुझे कब तुम्हारी हर बात अच्छी लगने लगी और कब मुझे तुमसे प्यार हो गया. पता ही नहीं चला.
शायद वो एक मीठा सा और प्यार सा एहसास ही होता है, जो हमें यकीन दिलाता है कि हां यही है, जिसे देखते ही न जाने क्यूं दिल को कुछ हो जाता है. हमारा रोम-रोम खिलने लगता है. उसके सामने आते ही ना जाने क्यूं हमे ऐसा कुछ एहसास होने लगता है. जो किसी और के आने पर नहीं होता. हां, यह प्यार ही तो है. यह हमारे बीच एहसास का ही तो रिश्ता है. बीते एक साल में तुमसे की गई बातों और यादों को मैंने डायरी में सहेज कर रखा है. एक साल हमारे बीच कितनी बार झगड़ा हुआ. शायद हम दोनों को याद नहीं होगा. लेकिन हमारी दोस्ती की मिठास कभी कम नहीं हुई। न जाने कितनी बार ऐसा हुआ जब तुमने कहा-
तुम ऐसा करते हो.
तुम वैसा करते हो.
तुम कभी मेरी बात क्यूं नहीं मानती.
तुम कभी मुझे क्यूं नहीं समझते.
मैं जा रही हूं, तुम्हारी जिन्दगी से.
कभी लौटकर नहीं आऊंगी.
और फिर फोन कट हो जाता...
कुछ देर वक्त ठहर सा जाता.
जैसे सब कुछ खत्म....!
थोड़ी देर बाद दोनों में से कोई एक कहता - सॉरी
क्या हम फिर से दोस्त बन सकते हैं....?
पहले की तरह.
दूसरा कहता- हां, बिल्कुल.
और फिर सब कुछ पहले की तरह हो जाता.
ये झगड़े और रूठना-मनाना, मैं जिन्दगी में कभी भूल नहीं पाऊंगा. अब तो तुम्हें मनाने की आदत पड़ चुकी है. तुमसे मिलने के बाद मैंने दोस्त बनाना सीखा है. दोस्ती निभाना सीखा है. अपनों के लिए जीना सीखा है. सच कहूं तो, जिन्दगी जीना भी मैंने तुमसे मिलने के बाद सीखा है. तुम्हारे होने भर से मेरी जिन्दगी खूबसूरत हो गई है. कितने रंग मेरी लाइफ में भर गए हैं. कितनी खूशबूएं मेरे आस-पास फैल गई है. न जाने कितने ही ख्वाब मेरी आंखों में पलने लगे हैं. मुझे खुश होने के मौके सिर्फ तुमने दिए हैं. यह सब महसूस करने की बातें हैं. इन्हें लिखने के लिए मेरे बाद शब्दों की कमी सी हो गई है. जिन्दगी में शायद पहली बार कुछ लिखने के लिए मैं इतनी उलझन महसूस कर रहा हूं. तुम मेरे लिए दुनिया की बेस्ट इंसान हो. आज अगर कोई मेरे सबसे करीब है, तो वो तुम ही हो.
देखते ही देखते हमारी दोस्ती ने एक साल का सफर तय कर लिया. मैं जानता हूं, दोस्ती के जिस सफर पर हम कदम बढ़ा रहे हैं. उसकी कोई मंजिल नहीं है. लेकिन सच यह भी है कि मुझे उस मंजिल की कोई चाह नहीं है. कई बार ऐसा होता है कि जब हमें रास्ते मंजिल से बेहतर लगने लगते हैं. मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ है. मुझे इन रास्तों से ही लगाव है. क्योंकि इन रास्तों में तुम मेरे साथ हो. जानती हो, जबसे मैंने आंख खोली, तबसे मुझे भगवान से एक बात की शिकायत रहती थी कि उसने मेरी किस्मत में पापा का प्यार क्यों नहीं दिया. मैं उनको कभी देख नहीं पाया. उनकी यादों की धुंधली तस्वीर भी मेरे जेहन में नहीं है. जब भी भगवान से कुछ मांगता तो साथ में इस बात का उलाहना भी देता. लेकिन अब लगता है, भगवान ने मुझे तुमसे मिलाकर अपनी गलती के लिए सॉरी बोल दिया है.
तुमसे मिलने की उम्मीद में मैं कहीं भी चला जाता हूं. घण्टों तक इंतजार कर लेता हूं. तुमको देखने से मुझको सुकून मिलता है. तुम जहां भी जाती हो. मन करता है, मैं भी वहीं चला जाऊं. मेरा यह 'पागलपन' तुमने भी देखा है. तुम्हारी वजह से ही मुझे पहली बार मेरा जन्मदिन अच्छा लगा था. मैं जानता हूं, 12 मई को तुम कॉलेज सिर्फ मेरे लिए आई थी. किताबें जमा कराना तो बस एक बहाना था. तुम्हारा आना मेरे लिए जन्मदिन का सबसे अनमोल तोहफा था. वो खुशी के पल सिर्फ तुमने मुझे दिए थे. सच तुम्हारी वो अदा आज भी मुझे बेहद प्यारी लगती है. जब तुम मेरे लिए तपती धूप की परवाह किए बिना, उस बस के सफर से मुझसे मिलने आई थी। उस रोज तुम मुझे दिल के बेहद करीब मालूम हुई थी। हां, ये एहसास ही तो है, जो आज भी मेरे जेहन में जिंदा है. यादें भी ना खूब होती है. दिमाग की हार्ड डिस्क में एक बार स्टोर हो जाती है, तो बस हो जाती है. इन्हें फोर्मेट भी नहीं मारा जा सकता. शायद, तुम मेरी ये बातें पढ़कर बहुत जोरों से हंस रही होंगी. पर सच, तुम्हें हंसते देखकर दिल को सुकून मिलता है. तुम्हारी हंसी गिरते हुए झरने सी लगती है.
मैं तुम्हें बहुत मिस करूंगा. यह कहूंगा तो शायद गलत होगा. क्योंकि मैं इस जिन्दगी में तुम्हें कभी भूल नहीं पाऊंगा. जिन्दगी के किसी मोड़ पर मेरी जरूरत पड़े, तो बस पुकार लेना. मैं दौड़ा चला आऊंगा. उसी दिन की तरह, जिस दिन तुम्हारे पास सिटी बस का किराया नहीं था. और अचानक मैं वहां आ गया था. याद तो होगा तुम्हें, तुम भले ही भूल जाओ. मगर मैं इन लम्हों और बातों को कभी भूल नहीं पाऊंगा. कभी न कभी तुम इन यादों का एहसास जरूर करोगी. तब तुम मुझे याद करोगी...!
शायद तब एहसास करोगी.
मेरे प्यार के छांव तले,
जब ये गुजरे दिन याद करोगी.
यूं तो जीवन की राहों में
कितने साथ मिले और बिछड़े हैं.
और ना जाने कितने तेरे मेरे बीच खड़े हैं.
अंतर्मन से मैं हूं तेरा.
एक दिन ये एहसास करोगी.
जिस दिन तुम अपना समझोगी.
तब मिलने की चाह करोगी.
मेरे दिल में बसे प्रेम का,
जिस दिन तुम विश्वास करोगी.
शायद तब एहसास करोगी.