Sunday, June 12, 2011

कुछ तुम भी कह लेते, कुछ हम भी...

रिश्तों की हकीकत ये कुछ ऐसे निभा लेते
ना हमने बुलाया था तो तुम ही बुला लेते


दिल में शिकवे थे अगर, आते तो कभी एक दिन
कुछ तुम भी कह लेते, कुछ हम भी सुना लेते


गुमसुम से ना रहते फिर रातों में अक्सर
डरते जो कभी ख्वाबों में, हम तुम को बुला लेते


उजड़ा सा है आँगन भी, है बिना लिपा चूल्हा
तुम साथ अगर होते इस घर को सजा लेते


ना हमने बुलाया था तो तुम ही बुला लेते
कुछ तुम भी कह लेते, कुछ हम भी सुना लेते।

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