कि कितनी शामें उदास आंखों में काटनी है...
कि कितनी सुबह अकेलेपन में गुजारनी है
बता के जाओ...कि कितने सूरज अजीब रास्तों को देखना है.
कि कितने महताब सर्द रातों में निकालने हैं.
बता के जाओ...कि चांद रातों में वक्त कैसे गुजारना है.
खामोश लम्हों में तुझको कितना पुकारना है.
कि कितने मौसम एक-एक करके जुदाइयों में गुजारने हैं.
बता के जाओ...कि पंछियों ने अकेलेपन का सबब पूछा,
तो क्या कहना है.
बता के जाओ...कि मैं किससे से तेरा गिला करूंगा.
बिछड़ के तुझसे, मैं किससे मिला करूंगा.
बता के जाओ...कि आंख बरसी तो कौन मेरे आंसू पौंछा करेगा.
उदास लम्हों में दिल की धड़कन कौन सुना करेगा.
बता के जाओ...कि किस पे है अब एतबार करना.
बता के जाओ...कि मेरी हालत पर चांदनी खिलखिला पड़ी
तो मैं क्या करूंगा.
बता के जाओ...कि मेरी सूरत पर जहां मुस्करा पड़ा
बता के जाओ...कि तुमको कितना पुकारना है.
बिछड़ के तुझसे, ये वक्त कैसे गुजारना है.
चले जो हो तो बता के जाओ....
कि लौटना भी है या..... :(
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