Saturday, August 3, 2013

अनकही रहेंगी, अनकही सी बातें

मेरे इस सृजन संसार की रचयिता तुम ही हो। मेरी सृजनात्मक में निखार लाने का श्रेय तुमको ही है। जो शब्द मैंने लिखे हैं, उनकी प्रेरणा तुम ही हो। तुम्हारे लिए लिखे गए मुझे इन शब्दों से बेहद लगाव है। तुम यकीन नहीं करोगी पर सच यही है कि जितनी खुशी और उत्सुकता मुझे तुमसे बात करने में होती है। तकरीबन उतनी ही खुशी और उत्सुकता मुझे तुम्हारे लिए लिखी गई इन कहानियों को पढऩे से भी होती है। आज भी जब भी नेट शुरू करता हूं तो एक टेब में ब्लॉग ही खुला रहता है। हमेशा। नियमित रूप से। दिन में एक बार तो इन कहानियों को पढ़ ही लेता हूं मैं। अजीब है, पर सच है। इनको पढ़े बिना मन नहीं लगता मेरा। कुछ अधूरा सा लगता है। वो बातें जो मैं तुमसे कहना चाहता था पर किसी वजह से वो अनकही रह गई थी। हालांकि उनको कहने का जरिया ही था यह। पर फिर भी मैंने यह सारे लफ्ज तुमको खुशी देने के लिए लिखे थे। तुमको तकलीफ देने के लिए नहीं। मैं तुमको ऐसी कोई चीज देना चाहता था, जो तुमको इस पूरी दुनिया में मेरे अलावा और कोई नहीं दे सकता। मेरी नजर में यह चीज शब्द ही थे। एक ही उद्देश्य था कि तुम इनको पढ़ो तो बीती यादें जीवंत हो जाए। तुम मुस्कुराने लगो। पर शायद मैं गलत था। मेरे शब्दों ने तुम्हें तकलीफ दी है। जो मैं नहीं चाहता था। सो अब न मैं लिखूंगा। न तुम पढ़ोगी। न तकलीफ होगी। मेरे शब्द अब किसी का दिल नहीं दुखाएंगे। अब सारी बातें अनकही रहेंगी।

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