Wednesday, April 16, 2025

मैं फिर भी तुमको चाहूंगा...

 


रात के साढ़े तीन बजे हैं। नींद? वो तो जैसे न जाने कब की रूठ गई है। बाहर सब कुछ थम सा गया है — सड़कों पर सन्नाटा है, खिड़की के पार कोई हलचल नहीं, पर अंदर... दिल के भीतर भावनाओं का तूफान मचा है। ये बेचैनी, ये उलझन... जैसे एक-एक सांस भी भारी लग रही हो। सोचता हूं, क्या इस पूरी दुनिया में कोई और भी होगा, जो इसी वक्त मेरी तरह करवटें बदल रहा होगा? क्या कोई और दिल भी ऐसे ही तड़प रहा होगा? शायद होगा...हर कोई तो खुशकिस्मत नहीं होता कि जिसे वो चाहे, उसे पा भी सके।

कहते हैं — प्रेम ना तो इरादों से उपजता है, और ना ही किसी कोशिश से मिटता है। उसे भुलाना चाहो, तो यादें और भी गहराने लगती हैं। वो जो पल तुम्हारे साथ बीते, जो आँखों से नहीं, रूह से महसूस किए — उन्हें भूलना आसान नहीं। बिना रोये, हंसी का असली मजा नहीं आता और बिना विरह के, प्रेम की तीव्रता का। 

गहरे प्रेम की अनुभूति के बारे में अब तक केवल किताबों-फिल्मों में ही सुन रखा था। हकीकत में आज जाना। अरसे बाद तुमसे हुई मुलाकात के बाद दिल में उठे भावनात्मक तूफान की तीव्रता का आलम इस कदर था कि उसे बयां करना मेरे लिए संभव ही नहीं। तुमसे अलग होते हुए कुछ छूटता हुआ महसूस किया मैंने... मन तुमसे दूर होने को किसी कीमत पर तैयार नहीं... फिर भी तुम्हें विदा किया। उसके बाद तुमसे बात करने के इंतजार में हर क्षण तुम्हारे कॉल का इंतजार किया। मन में अजीब तरह के खयाल आने लगे और फिर एक दिन भी ठीक से गुजरा नहीं और तुमसे फिर मुलाकात करने की तीव्र इच्छा के आगे सारी दूरियां-बाधाएं छोटी लगने लगी। 

लगभग पूरी रात मैंने बैचेनी में करवटें लेकर सुबह के इंतजार में काटी। सुबह होते ही मैं उड़कर तुम्हारे पास पहुंच जाना चाहता था। और देखो ना.. मैं सच में लगभग उड़कर ही तुम्हारे पास पहुंचा था। मेरी गाड़ी अपने आप हवा से बात कर रही थी। नहीं जानता, यह सब कैसे हो रहा था। मैं लगभग दौड़ते हुए तुम्हारे पास पहुंचा था। तुम्हें देखकर लगा... जैसे खोई हुई सांस वापस मिल गई हो। 

अचानक मुझे अपने सामने देखकर तुमने क्या महसूस किया, नहीं मालूम, पर तुमने गौर किया हो तो जब तुमने पूछा कि, कैसे आना हुआ तो मेरा गला रुंध गया और मेरे मुंह से शब्द नहीं निकल सके थे। दोनों आंखों में पानी भर आया था। काश तुम मेरी भीगी पलकों में छिपे जवाब पढ़ पाती.. काश मैं बता पाता कि तुमसे एक मुलाकात की चाहत में मैंने पूरी रात कैसे काटी... ऑफिस में तुम्हारी असहज स्थिति दो देखते हुए बड़ी मुश्किल से खुद को रोक पाया। पर, सच तो यह है कि... बिना यह सोचे, कि तुम क्या सोचोगी, उस वक्त भावनाओं के इस तूफान के शांत होने तक मैं तुमसे लिपटकर जार-जार रोना चाहता था। 

शायद..। नहीं यकीनन... मेरी जिन्दगी में मैंने पहली दफा अपने आप को इतना कमजोर पाया। इतना कि तुमसे विदा लेकर पहली बार तुम्हें मुड़कर देखने की हिम्मत नहीं हुई। डर था कि भीगी पलकों की कौरों पर अटके आंसू कहीं गिर न पड़ें। आंखों में आंसू, होंठों पर थरथराहट... और दिल में ऐसा तूफान, जिसे थामना अब मेरे बस में नहीं था और फिर वही हुआ, बाहर आकर गाड़ी में बैठते ही मेरे सब्र का बांध छलक गया। मैं अपने आपको रोक नहीं पाया, और फिर मैंने कोशिश भी नहीं की। मैंने उन आंसुओं को बह जाने दिया। शीशे में अपने आप को फफक कर रोते.. सिसकते देखा... बेतहाशा... बेसुध...। एक घंटे का सफर दो घंटे से भी अधिक समय का हो गया। रास्ता था कि कटने का नाम नहीं ले रहा था और कोई दिलासा देने वाला शख्स भी पास में नहीं था। यूं भी प्रेम के लम्बे कठिन तपते रास्तों में आंसु पौंछने वाले कब किसके पास होते हैं। दुख-दर्द-पीड़ा-तड़प-अकेलापन सब इन्हें तोहफे में मिलते हैं। और देखों ना, वहां से लौटने के बाद आज भी तुम्हें एक कॉल करने की फुरसत नहीं मिली। बहरहाल, रात के आखिरी पहर में YouTube ने मेरी हालत पर गाना सजेस्ट किया है... ऐसा लगता है जैसे यह मशीनें इंसान होती जा रही है और हम मशीनें।

दर्द.. दिलों के कम हो जाते.... 

मैं और तुम गर हम हो जाते... 

कितने हसीं आलम हो जाते.... 

मैं और तुम गर हम हो जाते....


लेकिन नहीं...

तुम वहीं हो, मैं यहां।

तुम अपने ख्यालों में, और मैं तुम्हारे ख्यालों में।

एक तरफ़ा, अधूरा... मगर अब भी पूरा।


और इस टूटे हुए दिल के साथ, मैं अब भी बस यही कह सकता हूं —

मैं फिर भी तुमको चाहूंगा...

Tuesday, April 15, 2025

ये इश्क की है साजिशें, लो आ मिले हम दोबारा



https://youtu.be/YL4_cwdKZBU?si=1EbLFUksYqAVyab-

चल दिया

दिल तेरे पीछे पीछे
देखता, मैं रह गया
कुछ तो है तेरे मेरे दरमियाँ
जो अनकहा सा रह गया
मैं जो कभी कह ना सका
आज कहता हूँ पहली दफा

दिल में हो तूम
आँखों में तुम
पहली नज़र से ही यारा

दिल में हो तुम
आँखों में तुम
पहली नज़र से ही यारा
ये इश्क की है साजिशें
लो आ मिले हम दोबारा

दिल में हो तूम
आँखों में तुम
पहली नज़र से ही यारा
पहली नज़र से ही यारा

सरफिरा सा मैं मुसाफिर
पांव कहीं ठहरे ना मेरे
फिर मेरी आवारगी को
आने लगे खाब तेरे

हो.. सरफिरा सा मैं मुसाफिर
पांव कहीं ठहरे ना मेरे
फिर मेरी आवारगी को
आने लगे खाब तेरे
ये प्यार भी क्या कैद है
कोई होना ना चाहे रिहा

दिल में हो तुम
आँखों में तुम
पहली नज़र से ही यारा
ओ.. ये इश्क की है साजिशें
लो आ मिले हम दोबारा

दिल में हो तूम
आँखों में तुम
पहली नज़र से ही यारा
पहली नज़र से ही यारा

तेरे बिन ये सारे मौसम
बेरंग थे बे मजा थे
शामिल नहीं थी तू जिनमें
वो सारे पल बे वजह थे

वो ज़िन्दगी है ही नहीं
जो मैं तेरे बिना जी लिया

दिल में हो तुम
आँखों में तुम
पहली नज़र से ही यारा
ओ.. ये इश्क की है साजिशें
लो आ मिले हम दोबारा

दिल में हो तूम
आँखों में तुम
पहली नज़र से ही यारा
पहली नज़र से ही यारा

Sunday, April 13, 2025

पहली छुअन, जो मेरी रूह तक उतर गई...।

जबसे तुमसे मिलकर लौटा हूं, मन जैसे वहीं ठहर गया है—तुम्हारी उसी मुस्कान में, जिसने मेरी बरसों की उदासी मिटा दी.. तुम्हारी आंखों की उस चमक में... जिसमें मैंने बरसों बाद फिर से खुद को देखा... तुम्हारी पहली छुअन में.... जो मेरी रूह तक उतर गई...। तुमसे मिलना मेरे लिए कोई साधारण क्षण नहीं था। यह जैसे बरसों से सूखे पड़े एक मन के आंगन में बारिश की तरह था। तुमसे हुई मुलाकात के बाद मैं इतना खुश हूं, इतना खुश हूं, इतना खुश, जितना कि उन दिनों हुआ करता था। 

जब तुमने कहा कि तुम आज शाम मेरे शहर आ रही हो, उसी पल मैं तुमसे मिलने अपने घर से निकल गया था। पता था कि तुम शाम तक आओगी और शाम होने में अभी काफी देर है, पर अपनी सबसे अजीज-अज-जान लड़की से मिलने की उत्सुकता में मुझसे इंतजार हो नहीं पाया। सूनी सड़कों पर धीमे-धीमे गाड़ी चलाते हुए मधुर गानों पर गुनगुनाते हुए मैं तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा। बरसों बाद आज तुम सिर्फ मुझसे मिलने आ रही हो। यह बात ही मुझे रोमांचित किए जा रही थी। शहर की सरहद पार करने पर आए तुम्हारे फोन ने मेरे इस रोमांच को सातवें आसमान तक पहुंचा दिया कि तुम भी मुझसे मिलने के लिए उतनी ही बैचेन हो, जितना कि मैं। इस दौरान मैं सोचता रहा कि वह कौनसी चीज है, जिसके कारण दो शख्स बस मिलने के लिए इतनी शिद्दत से बैचेन हो जाते हैं। 17 बरस पहले मेरी जिन्दगी में केवल तुम्हारा आना ही संभवत: एक घटना है, जिसके कारण मैं प्रकृति यानी सुपरपॉवर के अस्तित्व पर विश्वास कर सकता हूं। अन्यथा तो मुझे ईश्वर या उसके होने पर ज्यादा भरोसा रहा नहीं है। लेकिन हमारे बीच कुछ तो ऐसा है, जिस पर हमारा ज्यादा कंट्रोल नहीं है। यह प्रकृति से मुझे मिला वह तोहफा है, जिसके लिए मैं जीवनभर शुक्रगुजार रहूंगा। यह रिश्ता किसी पूर्व जन्म का, किसी अधूरी कहानी का सिलसिला मालूम होता है।

बहरहाल, जब तुम आई तो मैं तुम्हारे पास आने के लिए कितना बैचेन था, उसे ठीक से बयां करना संभव नहीं। तुम सड़क के दूसरी तरफ थी और सड़क पर गुजरते ट्रैफिक के कारण मुझे कुछ क्षण इंतजार करना पड़ा, वह भी मुझसे हो नहीं रहा था। उन चंद लम्हों का इंतजार जैसे सदियों सा लंबा हो गया था। मैं सांसें थामे सिर्फ तुम्हें देख रहा था। गाडिय़ों की आवा-जाही से बचकर मुझे कुछ ही पल लगे होंगे तुम्हारे पास आने में। और फिर तुम्हें पास बैठे देखकर जो महसूस हुआ, ओह, वह अद्भुद अनुभव था। तुम्हें देखकर मैं सबसे पहले तुमसे कहना चाहता था कि सालों बाद भी तुम उतनी ही खूबसूरत हो.. बेहद खूबसूरत हो... जैसे वक्त ने तुम्हें छुआ ही न हो। तुम्हारी आवाज़, तुम्हारी आंखें, तुम्हारा मेरे सामने होना—सब कुछ सजीव था, सपने जैसा। 

हां, यह सब मेरे लिए सपने जैसा ही तो है। तुमसे मिलना अब सपनों के सच होने जैसी ही असीमित खुशी देता है। 15 बरस बीत गए उन बातों को, जो मुझे कल की सी लगती है। आज जब तुमने मेरे साथ कॉलेज जाकर वहां हर कौने में बिखरी उन यादों को सहलाया तो जैसे कुम्हलाया-मुरझाया सा मेरा मन वापस हरा हो उठा। 

30 जुलाई, 2008 को हुई हमारी पहली मुलाकात वाली जगह जाने पर हमेशा अच्छा लगता ही है, पर उस वक्त और अच्छा लगा जब मुझे पता चला कि उस दिन की हर बात, हर एहसास, आज भी तुम्हारी यादों में भी वैसे ही ताजा है, जितनी की मेरी। पहली मुलाकात का दिन और नोटिस बोर्ड के पास उस जगह की स्मृति हमारे मन में जितनी मजबूती से दर्ज है, उतनी तो शायद फोटो खींचने पर भी नहीं रहती। कुछ यादें हम कभी भी मिटाना नहीं चाहते। इसीलिए वह हमारी स्मृति में अमिट हैं। यकीनन वो जैसे वक्त की किताब में रखा कोई खास पन्ना था, जिसे हम दोनों ने मिलकर फिर से पढ़ा। पता नहीं क्यों, लेकिन मेरा मन कहता है कि तुम भले ही इसे स्वीकार न करना चाहो, पर मेरी तरह तुम्हारे मन ने भी कभी-न-कभी, कहीं-न-कहीं इन यादों से मोहब्बत की है। ऐसा न होता तो कोई शख्स इतने बरसों बाद इन यादों को सहलाने-बहलाने क्यों आता। कितना अजीब है ना, वक्त गुजरता गया, उदास मौसम बदलते रहे, और फिर तुम्हारे साथ बिताए चंद लम्हों ने मेरे अंदर फिर से बहार ला दी। 

मैं सोचता हूं—तुम इतने सालों बाद क्यों आईं? क्यों यादें सहलाने आईं? क्या तुम्हारे भीतर भी वही हलचल थी, जो मेरे भीतर थी? क्या मेरे जैसा ही कोई अधूरापन तुममें भी था? मैं यह सवाल पूछना नहीं चाहता, क्योंकि मुझे डर है, तुम्हारा जवाब मेरी दुनिया हिला सकता है। मैं उस खामोश यकीन में जीना चाहता हूं, जिसमें तुम्हारा प्यार मेरे साथ है—बिना कहे, बिना सुने... सिर्फ महसूस करके।

हमेशा की तरह आज भी मैं तुम्हारी सभी बातें सुनना चाहता था। मैं जी भरके तुम्हें निहारना चाहता था। मैं तुम्हारे करीब बैठना चाहता था। बिल्कुल करीब। हां, मैं तुम्हें छूना चाहता था। जब तुम रोई तो तुम्हारे चेहरे को अपने हाथों में लेकर तुम्हारी आंखों की कोर पर निकल आए आंसुओं को पौंछना चाहता था। सच तो यह है कि उस पल मैं तुम्हें गले लगाना चाहता था। पर मैं ऐसा कर नहीं पाया। मुझे नहीं लगता कि मैं यह कभी कर भी पाऊंगा। क्योंकि तुम्हारे खूबसूरत हाथों में सजे सोने के कंगन हाथ में लेकर देखने के दौरान हुए स्पर्श ने अहसास कराया कि तुम्हारी छुअनभर से मुझे कंपन महसूस होती है। एक मीठी-सी सिहरन पूरे शरीर में जाती है, जैसे तुम्हारी छुअन ने मेरे मन के सबसे गहरे तारों को छेड़ दिया हो। इससे पहले ऐसा महसूस कभी किया नहीं मैंने।

तुम्हें तो पता ही होगा कि मेरा मन हमेशा से इस सवाल का जवाब ढूंढता रहा है कि— क्या तुमने मुझसे कभी-न-कभी, कहीं-न-कहीं, एकाध क्षण के लिए....? लेकिन मैं तुमसे कभी इस सवाल का जवाब जानना नहीं चाहता। डर लगता है कि कहीं तुमने ना कह दिया तो मैं क्या करूंगा। इस खुशफहमी के बिना मैं कैसे जी पाऊंगा। वैसे भी जब खामोशी, आंसू और स्पर्श से अभिव्यक्ति हो जाती है तो फिर इजहार-ए-मोहब्बत महज औपचारिकता ही तो है। 

लेकिन मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि-उस वक्त मेरा अंदाजा यकीन में बदल गया कि तुम्हारे अंदर भी प्यार का गहरा सागर है। जब तुमने मुझे अपने पर्स में झांकने का हक दिया, भला लड़कियां कब अपना पर्स किसी ओर को देखने देती हैं। उस वक्त भी, जब तुमने बड़े प्यार से मुझे अपने कानों में पहनने वाले झुमके दिखाए, (मुझे याद हो आया कि मैंने पहली बार तुम्हारे लिए ही झुमके खरीदे थे।) और.. और उस वक्त भी, जब पहली दफा मैंने तुम्हारी ऊंगली को छुआ और तुमने गुस्सा नहीं किया। तुमने मुझे छूने दिया। मुझे वह स्पर्श अब भी बेहद रोमांचित करता है। उस वक्त भी, जब तुमने अपने सोने के कंगन हाथों में पहनकर दिखाए। तुम्हारे खूबसूरत हाथों में पहने जाने के बाद वह कंगन और भी सुंदर लगने लगे थे। उस वक्त भी, जब तुमने मुझे अपने सूटकेस में तह करके रखे गए कपड़ों के बीच रखे परफ्यूम को निकालकर अपने हाथ पर लगाकर उसकी खुशबू को महसूस कराया। उस वक्त भी, जब तुमने मेरे हाथ में पहनी घड़ी की ओर ध्यान दिया। उस वक्त भी, जब तुमने मेरे शर्ट के बटन की तारीफ की। मुझे याद नहीं कि आज से पहले कब तुमने मुझे इतने गौर से देखा है। उस वक्त भी, जब मैंने तुम्हारे लिए कार का दरवाजा खोला... जब मैंने सड़क पर गिरती तुम्हारी चुन्नी को संभाला... जब तुमने मेरा पसंदीदा गाना गुनगुनाया...., जब तुमने रेस्टोरेंट में अपना फोन मेरे पास छोड़ा.... जब तुम्हारे साथ कॉफी पीने की मेरी बरसों पुरानी ख्वाहिश पूरी करने के लिए तुमने कॉफी ही ऑर्डर की..... जब तुमने कॉलेज में नोटिस बोर्ड की उस जगह को छुआ, जहां हम पहली दफा मिले, जहां हमने एक साथ प्रोग्राम किया, जहां हमने बेमतलब के झगड़े किए, जहां हमने वह वक्त गुजारा जो जीवन के सबसे हसीन-तरीन लम्हे थे। तुम्हें मेरे साथ वहां देखकर मेरी आंखों में खुशी के आंसू निकल आए थे। जहां पर बिखरी तुम्हारी यादों को चुनने अक्सर मैं जाया करता हूं। 

यकीनन तुम्हारे साथ बिताई यह शाम महज एक मुलाक़ात भर नहीं थी। यह मेरे लिए जीवन में फिर से रुमानियत के अहसास को जगाने की वजह बनी है। तुमने महसूस किया होगा, कल जब शाम ढल गई और तुम्हारे जाने का वक्त हो गया तो भी मैं तुमसे विदा नहीं लेना चाहता था। मैं तुमसे अलग नहीं होना चाहता था। तुमने प्यार भरे अंदाज से मेरा सीट बेल्ट खोलकर जब मुझे जाने के लिए कहा और फिर मुझसे फोन पर बात करने को कहा, तो यकीन हो चला कि मेरी तरह तुम्हारा भी बातों से जी नहीं भरा। मैं तुम्हारे पीछे-पीछे तुम्हारे घर तक आया था। मैं संभव होने तक हर पल को तुम्हारे साथ जीना चाहता था। हर पल बेशकीमती जो था। क्योंकि न चाहते हुए भी तुमसे विदा लेने के दौरान पल भर तुम्हारी आंखों में झांका—तो मुझे यकीन हो गया कि कुछ रिश्ते वक्त नहीं मिटा सकता। वे रिश्ते जो आत्मा से जुड़े होते हैं, वह दुनियावी पहचान के भी मोहताज नहीं होते। प्रेम के रिश्तों में शब्दों से ज्यादा खामोशी बोलती है। सच्चा प्रेम मुलाकातों का मोहताज तो नहीं होता। तुमसे रात को फिर बात करने की उम्मीद में मैं रातभर जागता रहा और बरसों बाद हुए इस रुमानी अहसास को अपनी उंगुलियों के सहारे लैपटॉप पर उतारता रहा। सच कहूं तो मुझे रातभर नींद आई ही नहीं। शिद्दत से किसी चीज को चाहो तो फिर चाहत पूरी हो ही जाती है, जैसे कि अगले दिन तुम थकी होने के बावजूद मेरी जिद पर फिर मुझसे मिलने आ गई। अब मेरी तुमसे यही इल्तिजा है कि तुम गाड़ी धीमे चलाया करो, क्योंकि तुम्हारी जिंदगी सिर्फ तुम्हारी नहीं, बल्कि उसमें कुछ पल मेरे हिस्से के भी हैं। अब मैं हर दिन तुम्हें और भी ज़्यादा चाहने लगा हूं। यह बेपनाह मोहब्बत वक्त के साथ बढ़ती ही जा रही है। मुझे नहीं पता हमारे बीच आने वाला समय कैसा होगा, या जि़न्दगी हमें कहां ले जाएगी। लेकिन एक बात मैं तुम्हें फिर से कह देना चाहता हूं, जो आज भी उतनी ही सच्ची है जितनी पहले थी कि—ऐ अजीज-अज-जान लड़की, तुम मेरे लिए इस सदी की, इस दुनिया की सबसे खूबसूरत रूह हो। अगर कभी तुम थक जाओ, उलझ जाओ या अकेली महसूस करो तो बस एक बार मेरी तरफ देख लेना। मैं तुम्हें वहीं खड़ा मिलूंगा। हर बार। हमेशा।

तुम्हारा ही,

हमेशा

Sunday, November 17, 2013

...और वो तेरी बाहों की दुनिया


प्रिय...
अच्छा हुआ। तुम आ गईं। बस एक ही बात कहनी थी तुमसे कि तुम याद आती हो मुझे। अकेलेपन में..... जहां तुम्हारा अहसास मेरे साथ रहता था। दुनिया की भीड़ में..... जहां मैं तुम्हें दूर से पहचान लिया करता था। और उस सूनी सड़क पर... जहां अक्सर टहलते हुए मैं फोन पर तुमसे बतियाता रहता था। कॉलेज में... जहां अक्सर हम झगड़ा करते रहते थे। क्लास में.... जहां मेरा ध्यान तुमसे हटता ही नहीं था। रेलवे स्टेशन पर.. जहां ट्रेन को तुम्हें साथ ले जाते देखकर अपने अंदर कुछ टूटता हुआ सा महसूस किया था मैंने। और वो अनजाने शहर में चार मार्च का दिन.... जहां नाराजगी की सभी दीवारों को गिराते हुए करीब साल भर बाद हम बीती यादों में खो गए थे। तुम्हारे साथ ने वो दिन मेरे लिए अविस्मरणीय बना दिया था। उस दिन जब तुमने बिना किसी औपचारिकताओं के मुझे अपने दिल का हाल सुनाया था। तब कितनी अपनी सी लगी थी तुम मुझे। बताना मुश्किल है मेरे लिए। उस दिन विपरीत परिस्थितियों के चलते तुम्हें पहली बार इस तरह रोते हुए देखा था मैंने। बड़ी मुश्किल से खुद को रोने से रोका था मैंने। हां, पलकें गीली हो गई थीं। सच कहूं, तो उस वक्त... मैं भी तुम्हें गले लगाकर रोना चाहता था। और उस वक्त भी जब.... जब मैं तुम्हें हॉस्टल के पास छोडऩे के बाद विपरीत दिशा में जाने के लिए मुड़ गया था। फिर पलटकर वापस आया था तुम्हारे पास। बाय करने के लिए। तुमने शायद गौर नहीं किया, पर मैं तुम्हें गले लगाने के लिए ही पलटकर आया था। लेकिन नहीं कर पाया मैं ऐसा। वो दिन, तुम्हारे साथ... और वो रात, ट्रेन में तुम्हारी यादों के साथ ही काटी थी मैंने। दिन-रात के किसी भी पहर में ऐसा कोई पल था ही नहीं। जिसमें तुम मेरे साथ नहीं थी। सच कहूं तो तुम्हारे जाने के बाद इस शहर से और इस जगह से मुझे कोई मोह नहीं रहा। पर तुम्हारी यादों से गहरा लगाव मुझे यह जगह छोडऩे नहीं देते। मैं कभी-कभी उस अतीत में लौट जाना चाहता हूं। जहां मैं तुम्हारे सपने देखता था। और अक्सर आज भी मैं उस कॉलेज में.. उस क्लास में... नोटिस बोर्ड के पास.. तुम्हारी गली में... मेरे ऑफिस के बाहर सूनी सड़क पर....रेलवे स्टेशन पर.. जहां-तहां बिखरे तुम्हारी यादों के टुकड़ों को चुनता रहता हूं। इन दिनों मैं जहां हूं, वहां बेचैनियां हैं। इतनी की फुरसत के लम्हे भी काटते हैं मुझको। मैं हर बीत गए पल को कितना भी मुड़ कर देखूं, किन्तु तुमको वहां नहीं पाता। बस एक साया है तुम्हारा। तुम हजारों किलोमीटर दूर जहां रहती हो, वहां से कोई सुकून का एक टुकड़ा मुझे भेज दो। सुकून की करवटें जो तुम अपने साथ ले गईं थी। उनमें एक हिस्सा मेरा भी है। बिस्तर की सलवटों में जो कई दिन उलझे हैं। उनमें से एक दिन मेरे लिए भी भेज देना। बालकनी में कॉफी के मध्य ठहरी होगी तुम्हारी हंसी। उसका एक टुकड़ा भेज देना। और भेज देना, वो बेपरवाह रातों की किस्सागोई। वो अहसासों की गठरी...और वो तेरी बाहों की दुनिया। जो सदा मेरे लिए एक ख्वाब ही रही है। आज जब तुम मेरे साथ... मेरे सामने बैठी हो... तो क्या ये बांहों की दुनिया मेरी हो सकती है..? क्या मैं कुछ देर तुम्हें गले लगाकर रो सकता हूं...?

Saturday, August 3, 2013

अनकही रहेंगी, अनकही सी बातें

मेरे इस सृजन संसार की रचयिता तुम ही हो। मेरी सृजनात्मक में निखार लाने का श्रेय तुमको ही है। जो शब्द मैंने लिखे हैं, उनकी प्रेरणा तुम ही हो। तुम्हारे लिए लिखे गए मुझे इन शब्दों से बेहद लगाव है। तुम यकीन नहीं करोगी पर सच यही है कि जितनी खुशी और उत्सुकता मुझे तुमसे बात करने में होती है। तकरीबन उतनी ही खुशी और उत्सुकता मुझे तुम्हारे लिए लिखी गई इन कहानियों को पढऩे से भी होती है। आज भी जब भी नेट शुरू करता हूं तो एक टेब में ब्लॉग ही खुला रहता है। हमेशा। नियमित रूप से। दिन में एक बार तो इन कहानियों को पढ़ ही लेता हूं मैं। अजीब है, पर सच है। इनको पढ़े बिना मन नहीं लगता मेरा। कुछ अधूरा सा लगता है। वो बातें जो मैं तुमसे कहना चाहता था पर किसी वजह से वो अनकही रह गई थी। हालांकि उनको कहने का जरिया ही था यह। पर फिर भी मैंने यह सारे लफ्ज तुमको खुशी देने के लिए लिखे थे। तुमको तकलीफ देने के लिए नहीं। मैं तुमको ऐसी कोई चीज देना चाहता था, जो तुमको इस पूरी दुनिया में मेरे अलावा और कोई नहीं दे सकता। मेरी नजर में यह चीज शब्द ही थे। एक ही उद्देश्य था कि तुम इनको पढ़ो तो बीती यादें जीवंत हो जाए। तुम मुस्कुराने लगो। पर शायद मैं गलत था। मेरे शब्दों ने तुम्हें तकलीफ दी है। जो मैं नहीं चाहता था। सो अब न मैं लिखूंगा। न तुम पढ़ोगी। न तकलीफ होगी। मेरे शब्द अब किसी का दिल नहीं दुखाएंगे। अब सारी बातें अनकही रहेंगी।

Tuesday, July 30, 2013

कभी समेटेगा वो मुझे पागलों की तरह...।

30 जुलाई। मेरी जिन्दगी का सबसे खास या फिर अहम दिन। मेरे लिए यही फ्रेंडशिप डे होता है। तुमने भी इस खास दिन अहमियत समझी है। इस बात की खुशी है मुझे। यूं तो अब तुमसे बात करने की कोई खास इच्छा या वजह बची नहीं है मुझमें, पर फिर भी इस अहम मौके पर तुमसे बात करने......तुम्हारी आवाज सुनने की तलब हुई थी। पर मेरे कहने के बावजूद आज तुमने मुझसे बात नहीं की। मेरे कहने के बावजूद.... तुमने बात, नहीं की। हालांकि यह जरूरी नहीं कि जैसा मैं चाहूं, वो तुम भी चाहो। मैं मानता हूं कि केवल मेरे चाहने भर से मैं तुमसे बात नहीं कर सकता। इसके लिए तुम्हारी इच्छा का होना भी जरूरी है। यह दिन मेरे लिए स्पेशल है, तुम्हारे लिए नहीं। इसलिए मैं तुम्हारे बात करने या नहीं करने को लेकर इतना अफसोस महसूस नहीं कर रहा हूं। पर यह सच है कि यह दिन साल में बस एक बार आता है, जिसकी हर बात मेरी यादों के खजाने को भरती जाती है। देखते-देखते पांच बरस बीत गए उन बातों को। कॉलेज की वो अलसाई सी दोपहर। तुम्हारे इंतजार में अक्सर मैं पहले ही पहुंच जाता था वहां। उन दिनों तुम्हारे पास एक ब्लेक रंग का मोबाइल था। मैं अक्सर यह देखने की कोशिश में रहता कि तुमने अपने मोबाइल में मेरे नम्बर किस नाम से सेव कर रखे हैं। यह अलग बात है कि मेरी यह कोशिश कभी कामयाब नहीं हुई। पता नहीं कौनसी दुनिया थी वो मेरी-तुम्हारी। जो कभी 'हमारी' नहीं हुई।
खैर.. वो बीती यादें अब बस एक सुनहरा अध्याय बनकर रह गई है मेरे लिए। पर फिर भी हर 30 जुलाई की तरह आज जब कॉलेज गया तो गेट पर सिटी बस को देखकर ठिठक सा गया मैं। ऐसा लगा कि तुम उसमें जाओगी। पर अब तुम उसमें नहीं जाती। अंदर प्रवेश किया तो लगा कि तुम बस मेरे आगे-आगे ईयरफोन लगाकर जोर-जोर से मोबाइल पर बात करते हुए जा रही हो। अक्सर ऐसा ही तो होता था। क्लासरूम के पास गया तो लगा कि तुम अंदर बैठी हो। बस मेरे जस्ट आगे की सीट पर। या यूं कहूं कि मैं जस्ट तुम्हारे पीछे की सीट पर। और फिर झगड़ा शुरू हो गया। यह भी तो एक वजह होती थी उन दिनों नाराजगी की। उन आखिरी दिनों में जब तुम्हारे पास स्कूटी आ गई थीं तो तुम्हारे चेहरे पर अजीब से खुशी महसूस की थी मैंने। शुरुआत में कितना डरते-डरते तुम स्कूटी चलाती थी। हा...हा...। और पता है जब मैं नोटिस बोर्ड के पास खड़ा था तो वहीं पर एक लड़की एक लड़के से कुछ पूछ रही थी। दोनो काफी देर तक गुफ्तगु कर रहे थे। वो अपनी बातों में खोये थे और मैं कुछ ही कदम की दूरी पर खड़ा उनको निहार रहा था। पता नहीं क्यूं मेरे चेहरे पर एकदम से हल्की सी मुस्कुराहट आ गई। उनको इत्मीनान से बतियाते देखकर यूं लगा जैसे वो लड़का मैं हूं और वो लड़की तुम। जैसे कुछ भी नहीं बदला उस नोटिस बोर्ड के पास। आज भी। मैं इंतजार करता हूं। तुम आती हो। एक-दूसरे से मिलते हैं, पर बात नहीं करते। गुस्सा होते हैं, पर एक-दूसरे का खयाल रखते हैं। जैसे आज भी सब कुछ वैसा ही है उस नोटिस बोर्ड के पास। उस क्लास के पास। जैसे सब कुछ वैसा ही है। उन दिनों (या फिर आज भी) तुम्हारा किसी और से बात करना सहन नहीं होता था मुझसे। पता नहीं क्या हो जाता था मुझे। मेरे लिए तुम्हारी दोस्ती सदा गर्व का विषय रही और तुम्हारे लिए मेरी दोस्ती शायद इसके बिल्कुल विपरीत वाला शब्द। यह बात मुझे शुरू से पता थी। पर मैंने इसे बदलने का संकल्प ले लिया था कि तुम्हारे लिए भी मेरी दोस्ती एक दिन गर्व का विषय बनेगी।

मैं टूटा हूं, जिसके हाथों से गिरकर।
मुझे यकीन है, कभी समेटेगा वो मुझे पागलों की तरह।।
 

Monday, June 10, 2013

Meri aashiqui ab tum hi ho...

Kyunki tum hi ho, ab tum hi ho
Zindagi ab tum hi ho..
Chain bhi, mera dard bhi
Meri aashiqui ab tum hi ho...

Friday, May 24, 2013

बस तुम्हें देखने की हसरत..!

...तो तुम नहीं मिल पाई मुझसे..। कोई बात नहीं. मैं जानता हूं, तुम्हारी व्यस्तताएं और मजबूरियां। पर मैं भी उतना ही जिद्दी हूं. अपनी धुन का पक्का। तुम्हें बस एक नजर देखने के लिए चला आया रेलवे स्टेशन. तुमने बताया था कि 23 को वापस जाओगी. और उस दिन इंटरनेट पर देखा तो एक ही ट्रेन थी तुम्हारे शहर के लिए...और वो भी सुबह-सवेरे। मैं तड़के 4.30 बजे पहुंच गया था रेलवे स्टेशन। यहां-वहां सब जगह देखा। मगर तुम नहीं थी। थक-हारकर वापस आ गया। तुम्हें फोन/एसएमएस नहीं किया। तुम्हारे टोकने के बाद नहीं करने का वादा जो कर लिया अपने आप से। खैर.....जैसे-तैसे सूचना जुटाई कि तुम्हारी ट्रेन सात बजे है। रेलवे स्टेशन के अंदर प्रवेश किया तो नजर पड़ी इलेक्ट्रोनिक बोर्ड पर जो तुम्हारी ट्रेन बिल्कुल सही समय पर बता रहा था। उस वक्त मेरी घड़ी में 6.51 हो चुके थे। मैं प्लेटफॉर्म पर भागते हुए सीढ़ीयां चढ़कर प्लेटफॉर्म नं. 3 पर पहुंचा। और आरक्षण चार्ट देखा तो तुम्हारा नाम नहीं था। उफ्फ...6.53 हो चुके थे तब तक। अब मैं इधर-उधर झांकता हुआ। खुद को दूसरों की नजरों से बचाता हुआ तुम्हें ढूंढ रहा था। एक बार डर भी लगा कि तुमने मुझे देख लिया या किसी और ने मुझे देख लिया तो पता नहीं क्या हो जाएगा। मुझे वहां नहीं होना चाहिए। पर मैं खुद को रोक नहीं पाया। मैं पूरी ट्रेन में लगभग दो बार आगे से पीछे तक तुम्हें तलाश कर चुका था। स्पेशली सैकण्ड एसी या थर्ड एसी में भी। जो भी होगा जल्दबाजी में गौर नहीं कर पाया। सारे कोच पर लगी आरक्षित सूचियों को दो-दो बार पूरा पढ़ चुका था। एक तो गर्मी और ऊपर से भाग-दौड़ ने मुझे पसीने से तरबतर कर दिया। फिर वही हुआ जो अक्सर ऐसी मुश्किल परिस्थिति में हो ही जाता है। भगवान को मुझ पर तरस आया और एक खिड़की के पास मुझे वही प्यारा सा...सुंदर सा...चेहरा नजर आया। जिसको मैं 30 जुलाई 2008 से चाहता रहा हूं। एकदम से मेरे कदम ठिठक गए। मैं एक क्षण भी वहां नहीं रुका। भय था, मुझे वहां कोई देख लेगा तो न जाने क्या अर्थ लगाएगा। मैं अगले ही मिनट प्लेटफॉर्म नं. 3 से 1 की ओर दौड़ लगा रहा था। और वहां तक पहुंचते ही 7.00 बजे गए और ट्रेन तुम्हें साथ लेकर जाने के लिए रवाना हुए जा रही थी। मैं उस वक्त प्लेटफॉर्म नं. 1 पर खड़ा तुम्हें बाय कर रहा था। तुम चलीं गई और मैं वहीं खड़ा रह गया। सच बताऊं तो अक्सर जब मैं रेलवे स्टेशन जाता हूं तो मुझे वहां तुम्हारा अक्स नजर आता है। और अक्सर तुम्हारा अक्स देखने के लिए मैं वहां चला जाता हूं।