Saturday, December 15, 2012

थपथपाने.. समझाने... बहलाने... के दिन..!!!

देखो ना.... ये फिर दिसम्बर आ गया....। मगर इस दिसम्बर और उस दिसम्बर के सर्द दिनों में कितना फर्क है ना.... दिसम्बर के उन आखिरी दिनों में तुमने मेरे दिल पर दस्तखत किए थे....और इस दिसम्बर के बाद.... मैं फिर पहले जैसा ही हो जाऊंगा....। तन्हा.... अकेला.... खामोश.....। जबसे मुझे पता चला है.... कि तुम मुझे छोड़कर जाने वाली हो, तो मैं तुम्हारी इन गहरी आंखों में डूब जाना चाहता हूं....। मैं तुम्हें एक बार जोर से गले लगाना चाहता हूं..... इन दिनों मेरी आंखें बेहद उदास रहने लगी हैं.... एक अजीब रिक्तता ने मुझे आ घेरा है.... नि:संदेह यह मेरे लिए आत्मिक संघर्ष का दौर है.... मन में संशय भी उपजता है कि कहीं यह खाली हाथ रह जाने के दिन तो नहीं और फिर अगले ही क्षण.... मैं मन को थपथपाने..... समझाने.... बहलाने.... की कोशिश करता हूं.... किन्तु वह केवल मुस्कुरा कर रह जाता है. शायद कहना चाहता हो.... बच्चू इश्क कोई आसान शह नहीं।

लेखन मेरे लिए प्रथम था, शेष सुखों के बारे में मैंने कभी सोचा नहीं. .... उन्हीं बाद के दिनों में मुझे यह आंतरिक एहसास हुआ - न जाने कब से मुझे तुम्हारी निकटता अच्छी लगने लगी थी....। बावजूद इसके कि हमारे मध्य महज़ औपचारिक बातें हुई थीं..... वह भी बामुश्किल दो-चार दफा..... किन्तु रुठने-मनाने की 'नौटंकी' करते-करते वह आंतरिक चाहना मन की ऊपरी सतह पर तैरने लगी थी.... और मैं प्रेमपाश में हर दफा ही.... तुम्हारी ओर खिंचा चला जाता रहा....। वे ठिठुरती सर्दियों के जनवरी के दिन थे..... जब तुम्हारी आंखों में भी मैंने अपने लिए चाहत पढ़ी थी.... फिर जब-जब तुम मेरे सामने आई.... उन सभी नाजुक क्षणों में मेरे मन में प्रेम का अबाध सागर उमड़ पड़ता.... जो सभी सीमा रेखाओं को तोड़ता हुआ तुमको अवश्य ही भिगोता रहा होगा.... बहरहाल.... दिसम्बर-जनवरी के वे बीते दिन, मेरे दिल की डायरी में सदैव जीवित रहेंगे.... जिन दिनों में, तुम मेरी आत्मा का....मेरी जिंदगी का अहम् हिस्सा बन गई थीं....। :)

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